Yograj Singh on Selectors after 2011 World Cup Win: पूर्व भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह एक बार फिर अपने तीखे बयानों को लेकर चर्चा में हैं. हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने टीम इंडिया को लेकर कई चौंकाने वाले दावे किए और पूर्व चीफ सिलेक्टर मोहिंदर अमरनाथ पर भी गंभीर आरोप लगाए. योगराज का कहना है कि 2011 विश्व कप के बाद एमएस धोनी की कप्तानी में युवराज सिंह सहित कम से कम सात खिलाड़ियों का करियर बर्बाद कर दिया गया. उन्होंने यह भी कहा कि भारत को वनडे विश्व कप का चैंपियन बनने से पहले ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड से करारी हारें झेलनी पड़ीं.
1983 के बाद भारत ने जब दूसरी बार 2011 में वनडे वर्ल्ड कप जीता, तो यह एक ऐतिहासिक पल था, लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि उस विजेता टीम के केवल तीन खिलाड़ियों को ही अगले विश्व कप (2015) में दोबारा खेलने का मौका मिला. योगराज सिंह ने एमएस धोनी को लेकर यह भी कहा कि उनसे कप्तानी छीने जाने वाली थी. योगराज सिंह ने इनसाइड स्पोर्ट्स को दिए गए इंटरव्यू में आरोप लगाया कि चयनकर्ताओं ने बिना ठोस वजह के कई प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को टीम से बाहर कर दिया. उनके अनुसार, गौतम गंभीर, युवराज सिंह, हरभजन सिंह, जहीर खान, मोहम्मद कैफ, वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ जैसे दिग्गजों को 2011 के बाद नजरअंदाज कर दिया गया. इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हार के बाद गंभीर, जहीर, युवराज और हरभजन को टीम से बाहर कर दिया गया, वहीं लक्ष्मण और द्रविड़ ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया.

2011 की चैंपियन टीम से सिर्फ विराट कोहली, एमएस धोनी और रविचंद्रन अश्विन ही ऐसे खिलाड़ी थे जो चार साल बाद ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में खेले गए 2015 वर्ल्ड कप में टीम का हिस्सा बने. बाकी 12 खिलाड़ी उस टूर्नामेंट में चयनित नहीं हुए. योगराज ने आगे कहा कि आपने 2011 विश्व कप के बाद टीम को बर्बाद कर दिया. 7 खिलाड़ियों के करियर को बर्बाद कर दिया गया. यही कारण है कि हम संघर्ष कर रहे हैं. जब एमएस धोनी कप्तान थे, तब हमने 5 सीरीज हारी थीं और जिसके बाद चयनकर्ता उन्हें कप्तानी से हटाना चाहते थे, लेकिन उस समय के बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन ने ऐसा नहीं होने दिया.
इस पर 2012 में एक इंटरव्यू में मोहिंदर अमरनाथ ने कहा था कि जब आप किसी का सम्मान करते हैं तो सवाल नहीं उठाते, लेकिन मेरा सवाल है अगर चयन समिति भारतीय क्रिकेट के हित में फैसले लेना चाहती है, तो उन्हें पूरी स्वतंत्रता क्यों नहीं दी जाती? इससे यह संकेत मिलता है कि चयनकर्ताओं को फैसले लेने की पूरी आजादी मिलनी चाहिए.
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