औरंगाबाद ग्रामीण. केंद्र सरकार द्वारा संस्थागत प्रसव कराने की जिम्मेदारी सभी सरकारी अस्पतालों को दी गयी है, ताकि बिना किसी शुल्क के उन्हें सही तरीके से प्रसव कराये जा सके और जन्म प्रमाणपत्र निर्धारित सीमा 21 दिन के अंदर निर्गत किया जा सके. इसके बावजूद इस कार्य में लापरवाही बरती जा रही है. जिन बच्चों का जन्म निजी क्लिनिक या फिर घर पर हुआ है और उन्हें जन्म प्रमाणपत्र की आवश्यकता है, तो वे दर-दर की ठोकरें खा रहे है. हजारों रुपये खर्च करने के बाद भी उन्हें सही समय पर जन्म प्रमाणपत्र नहीं मिल पाता है. इसका उदाहरण जिले का मॉडल अस्पताल यानी सदर अस्पताल है, जहां पर एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों जन्म प्रमाणपत्र मनमानी रुपये लेकर निर्गत किये गये है. जब यह मामला डीएम श्रीकांत शास्त्री के संज्ञान में आया तो उनके द्वारा जांच टीम गठित कर सदर अस्पताल से निर्गत किये गये जन्म प्रमाण पत्र की जांच करायी गयी. पाया गया कि कई प्रमाणपत्र फर्जी पाये गये है. इस पर डीएम द्वारा कड़ा रूख अपनाया गया. जन्म प्रमाणपत्र निर्गत करने वाले कार्यपालक सहायक को तत्काल प्रभाव से पदमुक्त कर दिया गया. इसके बाद उनके जगह पर सदर अस्पताल में कार्यरत कार्यपालक सहायक साहिल कुमार को जन्म प्रमाण पत्र बनाने की जिम्मेवारी सौंपी गयी, लेकिन साहिल कुमार पदभार ग्रहण करने के बाद जन्म प्रमाणपत्र बनाने की जिम्मेवारी ली तो उन्होंने पाया कि यहां पर काफी खामियां है और कई प्रकार की गड़बड़ियां पहले की गयी है जिसे देखते हुए उसने उक्त जगह से तत्काल प्रभाव से हटाने के लिए अनुरोध पत्र सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ सुरेंद्र कुमार सिंह को शुक्रवार को सौंप दिया. इसके बाद उपाधीक्षक ने उक्त आवेदन के आधार पर कार्यपालक सहायक को जन्म प्रमाण पत्र से विमुक्त करने हुए निबंधन काउंटर पर तत्काल प्रभाव से भेज दिया. वहीं, सदर अस्पताल के कार्यालय में कार्यरत कार्यपालक सहायक सुशील कुमार को जन्म प्रमाण पत्र केंद्र पर निर्गत करने के लिए प्रतिनियुक्ति किया है. इधर, उपाधीक्षक डॉ सुरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि जब निर्गत जन्म प्रमाण पत्र की जांच करायी गयी तो कई प्रमाण पत्र फर्जी पाये गये. इसे देखते हुए सुशील कुमार को नयी जिम्मेदारी दी गयी है. यदि इनके द्वारा भी किसी प्रकार की फर्जी प्रमाण पत्र निर्गत की गयी तो उनके ऊपर भी विभागीय कार्रवाई की जायेगी. इधर, लगातार दो कार्यपालक सहायक को जन्म प्रमाण पत्र काउंटर से हटाये जाने के बाद फर्जी रूप से प्रमाण पत्र बनवाने वाले बिचौलियों व आशा कार्यकर्ताओं के बीच हड़कंप व्याप्त हो गया है. ज्ञात हो कि जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के नाम पर बिचौलियों द्वारा पांच सौ से लेकर दो हजार रुपये तक कि अवैध वसूली की जाती थी और जन्म प्रमाण पत्र निर्गत करने वाले कार्यपालक सहायक को नाम मात्र का सेवा शुल्क दिया जाता था.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है