औरंगाबाद/कुटुंबा. नदियां प्रकृति की अनमोल धरोहर हैं, लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम इस धरोहर से लगातार दूर होते जा रहे हैं. पर्यावरण असंतुलन, अतिक्रमण, अवैध खनन और शासन-प्रशासन की निष्क्रियता ने रामरेखा जैसी सदानीरा नदियों को भी सूखने पर मजबूर कर दिया है. कभी कल-कल बहती यह नदी आज अस्तित्व संकट से जूझ रही है. एक समय था जब यह नदी नवीनगर और कुटुंबा प्रखंड के सैकड़ों गांवों की हजारों एकड़ भूमि को सिंचाई सुविधा देती थी. किसान इसके जल से जीवन पाते थे. रामरेखा नदी झारखंड की उत्तरी सीमा पर स्थित सधुईया खोह के ठंडा पहाड़ से होता है. यहां से निकलकर यह नदी बैरिया में पुनपुन नदी से मिल जाती है. रास्ते में यह गोरेया घाट, चोरहा, कशियाड़, चितवाबांध, हरिहर, उर्दाना, शिकारपुर, बाघाखोह, बलथर, कलापहाड़, तेंदुआ, रामनगर, खैरा, शिवपुर, बरींआवां, भटकुर, सोहर बिगहा, बोदी बांध होते हुए बैरिया तक पहुंचती है. जहां-जहां नदी बहती है, वहां सिंचाई की व्यवस्था कभी भरपूर हुआ करती थी. ग्रामीण बताते हैं कि बोदी बांध से आज भी कई गांवों में सिंचाई होती है, लेकिन जल का प्रवाह अब सीमित हो चुका है. रामरेखा अब नाला बनकर रह गयी है.
अवैध खनन और अतिक्रमण ने छीना नदी का स्वरूप
नदी के अस्तित्व को सबसे बड़ा खतरा अवैध बालू खनन और अतिक्रमण से है. कलापहाड़ और तेंदुआ गांव के पास नदी के मुख्य हिस्से को माफियाओं ने बेच डाला है. यहां मकान बन रहे हैं और नदी के हृदयस्थल को समतल कर दिया गया है. बरसात के दिनों में यहां जलराशि उमड़ती है, लेकिन बाकी समय यह क्षेत्र वीरान रहता है. शिकारपुर से ओरडीह गांव तक नदी के दोनों किनारे अतिक्रमण की चपेट में हैं. कई लोगों ने नदी की जमीन पर खेती शुरू कर दी है. प्रशासनिक उदासीनता का ही परिणाम है कि वर्षों से सिंचाई की रीढ़ मानी जाने वाली यह नदी आज बेआवाज मर रही है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है