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Chhath Puja: सदियों पुराना देव मंदिर कभी ब्रिटिश अखबारों की बना था सुर्खियां, यहां द्रौपदी ने भगवान सूर्य को दिया था अर्घ्य

Chhath Puja: वैसे तो बिहार में कई सूर्य मंदिर हैं. लेकिन देश के सबसे प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में से एक औरंगाबाद जिले के देव में स्थित सूर्य मंदिर है. यह मंदिर कभी ब्रिटिश अखबारों की सुर्खियों में भी था. इस मंदिर पर पढ़िए औरंगाबाद से सुजीत कुमार सिंह की विशेष रिपोर्ट...

Chhath Puja: औरंगाबाद जिले का देव सूर्य मंदिर और सूर्य कुंड तालाब छठ व्रतियों की आस्था का केंद्र है. देव सूर्य मंदिर का महत्व हजारों साल पुराना है. द्रौपदी ने भी यहीं भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया था. सूर्य मंदिर के निर्माण को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन आज तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि मंदिर कितना पुराना है. कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण त्रेता युग में हुआ था. मंदिर की संरचना में आज भी कोई बदलाव नहीं हुआ है.

ब्रिटिश अखबारों की सुर्खियों में भी रहा यह मंदिर

1870 में ब्रिटिश नागरिक और पत्रकार पेप ने इस जगह की तस्वीर ली थी. 1790 में ब्रिटिश नागरिक डेनियल ने भी इस जगह की तस्वीर बनाई थी. अगर दोनों तस्वीरों की बात करें तो पेप की तस्वीर करीब 154 साल पुरानी है, जबकि डेनियल की पेंटिंग 234 साल पुरानी है. ऐसा भी कहा जाता है कि सूर्य मंदिर ब्रिटिश अखबारों की सुर्खियों में भी रहा है.

किसने बनवाया सूर्य मंदिर और कुंड?

सूर्य मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित सूर्य कुंड तालाब के बारे में कहा जाता है कि यह पापों और रोगों का नाश करता है. कहा जाता है कि त्रेता युग में प्रयाग के राजा ऐल ने मंदिर के साथ ही सूर्य कुंड तालाब का निर्माण कराया था. वे कुष्ठ रोग से पीड़ित थे. जिस स्थान पर सूर्य कुंड तालाब स्थित है, वहां पहले पानी से भरा एक गड्ढा हुआ करता था. इसमें स्नान करने के बाद राजा ऐल का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था, जिसके बाद उन्होंने सूर्य कुंड तालाब का निर्माण कराया था. ऐसा भी कहा जाता है कि सूर्य मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था.

समुंद्र से जुड़ा है सूर्यकुंड तालाब

ज्योतिष व रिटायर्ड शिक्षक शिवनारायण सिंह ने बताया कि देव में स्थित सूर्यकुंड तालाब सीधे समुंद्र से जुड़ा है. इसी कारण देव में दो-तीन किलोमीटर के क्षेत्र में पानी खारा मिलता है. मंदिर के आसपास व देव बाजार में विभिन्न जलाशय व चापाकल से निकलने वाले पानी का स्वाद भी खारा है. अगर, समुद्र में किसी प्रकार की हलचल होती है, तो उसका सीधा असर सूर्यकुंड तालाब में देखने को मिलता है.

देवार्क के गुंबद पर पड़ती है सूर्य की पहली किरण

तीन ऐसे स्थान हैं, जहां सूर्य विद्यमान रहते हैं. इनमें ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर, बिहार का देव सूर्य मंदिर और पाकिस्तान का मुल्तान सूर्य मंदिर शामिल हैं. इन तीनों स्थानों का वर्णन भविष्य पुराण में मिलता है. ज्योतिषाचार्य शिवनारायण सिंह बताते हैं कि भविष्य पुराण में जम्बूद्वीप पर इंद्र वन, मित्र वन और मुंडीर वन का जिक्र है, जहां सूर्योदय के बाद सूर्य की पहली किरणें सीधे पहुंचती हैं.

प्राचीन काल में देव को इंद्र वन, कोणार्क को मित्र वन और मुल्तान को मुंडीर वन के नाम से जाना जाता था. इन तीनों स्थानों पर स्थित सूर्य मंदिर में विराजमान बिरंचि-नारायण का सबसे पहले सूर्य की रोशनी से अभिषेक किया जाता है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय इन तीनों स्थानों का नजारा देखने लायक होता है.

इसे भी पढ़ें: कैसे जन्मा लोकआस्था का महापर्व छठ, जानिए पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर से…

जीवित देवता ही नहीं, चिकित्सक भी हैं सूर्य

सूर्य बतौर चिकित्सक उपासकों के असाध्य रोगों का निवारण कर उन्हें पूर्ण स्वस्थ करते हैं. छठ महापर्व में विशेष लाभ मिलता है. अथर्ववेद में उल्लेख है कि सूर्य की किरण क्षय रोग, घुटने, कंधे, मस्तक का दर्द, चर्म रोग, पीलिया और हृदय रोग के लिए लाभकारी है. नेत्र रोगों का नाश होता है व नेत्र ज्योति में वृद्धि हो जाती है. सूर्य उपासना से कुष्ठ जैसे असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं. मेडिकल साइंस भी इस बात की पुष्टि करता है. सर्जन डॉ रोजश रंजन की मानें, तो सूर्य के ताप से शरीर को कैल्शियम, फास्फोरस प्राप्त होता है. सूर्य की किरण में निहित विटामिन डी से दांत व हड्डी सुदृढ़ होती है.

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Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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