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कर्तव्यहीनता व लापरवाही पर प्रोबेशन पदाधिकारी से शो-कॉज

अदालत ने इस क्रम में किशोर के अभिभावक का एक एफेडेविट आवेदन पाया जिसमें कहा गया है कि संबंधित किशोर का सामाजिक जांच प्रतिवेदन कार्यालय में बुलाकर तैयार किया गया

औरंगाबाद शहर. किशोर न्याय बोर्ड के प्रधान दंडाधिकारी सह अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सुशील प्रसाद सिंह ने जीआर संख्या -582/20 तथा कुटुंबा थाने से संबंधित जेजेबी वाद 1288/25 में किशोर की जमानत याचिका पर सुनवाई की. अदालत ने इस क्रम में किशोर के अभिभावक का एक एफेडेविट आवेदन पाया जिसमें कहा गया है कि संबंधित किशोर का सामाजिक जांच प्रतिवेदन कार्यालय में बुलाकर तैयार किया गया है. किशोर के गृह गये बिना तथा उसके घर के आसपास के लोगों से जानकारी लिये बिना प्रतिवेदन तैयार किया गया है. अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि इस घटना को प्रधान दंडाधिकारी ने कर्तव्य हीनता और कार्य में घोर लापरवाही माना है तथा आपराधिक इतिहास की जानकारी थाना में जाकर नहीं लेने पर न्याय संगत नहीं मानते हुए प्रोबेशन पदाधिकारी गृह एवं सुधार सेवा से सात दिन के अंदर शो-कॉज का जवाब मांगा है. अन्यथा यह मामला जेजेबी धारा 93 के अंतर्गत राज्य सरकार से उचित कार्यवाही के लिए अग्रसारित किया जायेगा.

नाबालिगों का नाम-पता न हो उजागर

औरंगाबाद शहर.

व्यवहार न्यायालय के पैनल अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि नाबालिगों के साथ या नाबालिगों द्वारा हुए अपराध में अधिक से अधिक स्पेशल कानून का लाभ उनकी सुरक्षा के मद्देनजर लगना चाहिए. जो 18 साल से कम उम्र की लड़की का अपहरण का केस न्यायालय में आते हैं उसमें अपहरण का उद्देश्य अनुसंधान का विषय है. अपहृत की बरामदगी के बाद यथाशीघ्र न्यायालय की अनुमति से मेडिकल जांच होनी चाहिए. अपहरण यदि 18 साल से कम उम्र की लड़की का हो तो लड़की की सहमति का लाभ अपहरणकर्ता को नहीं मिलता है. नाबालिग लड़की के अपहरण का कई केस पॉक्सो कोर्ट में दर्ज होता है, लेकिन कुछ केस पॉक्सो एक्ट में दर्ज नहीं कर सिर्फ अपहरण की भादंवि या भानस की धारा में दर्ज हो जाती है, जिससे नाबालिगों का नाम-पता उजागर होता है. उसके और उसके परिवार के निजाता, प्रतिष्ठा, गरिमा और भविष्य प्रभावित हो सकता है. पॉक्सो कोर्ट में नाम-पता उजागर नहीं होता है और पीड़िता भी बहुत सुरक्षित महसूस करती है. पॉक्सो कोर्ट में अभियुक्त को यदि पॉक्सो एक्ट में दोषी नहीं पाया जाता है तो सिर्फ अपहरण के अपराध में सुसंगत धाराओं में सजा सुनाई जाती है. अधिवक्ता ने कहा कि मीडिया में भी नाबालिग बच्चों के साथ हुए अपराध या नाबालिगों द्वारा किए अपराध में संवेदनशीलता और कर्तव्य को ध्यान में रखते हुए उसका नाम-पता सार्वजनिक नहीं करना चाहिए.

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