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कल नाग देवता की होगी पूजा-अर्चना

नागपंचमी. ओरडीह पहाड़ी पर बाहर निकलकर नाग दर्शन देते हैं नाग देवता

नागपंचमी. ओरडीह पहाड़ी पर बाहर निकलकर नाग दर्शन देते हैं नाग देवता

वैदिक काल से सनातन संस्कृति में नागपंचमी व्रत का रहा है खास महत्व माली में नाग पंचमी महोत्सव और वार में होगी नाग देवता की पूजा

प्रतिनिधि, औरंगाबाद/कुटुंबा.

सनातन संस्कृति में सावन शुक्ल पक्ष पंचमी का खास महत्व रहा है. लौकिक परंपरा में भी यह मान्यता सदियों से चली आ रही है. इस दिन सर्पराज नाग देवता की विधिवत पूजा की जाती है. इस बार मंगलवार यानी 29 को मध्य रात्रि तक पंचमी तिथि है. इसी दिन नागपंचमी की पूजा होगी. ज्योतिर्विद डॉ हेरम्ब कुमार मिश्र ने बताया कि इसे तक्षक पूजा भी कहा जाता है. इस पूजा में सर्प जाति के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव व्यक्त करते हुए विधि-विधान से उनकी अराधना की जाती है. इसके साथ ही श्रद्धालु दूध और लावा से सर्पराज को अभिषेक करते हैं. उन्होंने बताया कि वैदिक परंपरा में सदियों से धर्मावलंबी नदी, पहाड़ व बट-वृक्ष के साथ जीव-जंतुओं की पूजा करते आये हैं. पूजा से ही उन्हें सुकून मिलता है. ज्योतिर्विद डॉ मिश्र और आचार्य सुशील कुमार मिश्र ने बताया कि सर्प जाति को भी देवतुल्य मानना सनातन धर्म की महान परंपरा का द्योतक है. पौराणिक काल से ही सर्प देवता की पूजा की परंपरा चली आ रही है. यह पर्व बल, पौरुष, ज्ञान और तर्क शक्ति के परीक्षण का पर्व है. नागपंचमी तिथि को पूरी आस्था के साथ सांपों की पूजा करने से सर्प दंश से होने वाली मौत का भय समाप्त हो जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में अगर काल सर्प दोष हो, तो वैसे जातक को नागपंचमी की पूजा अवश्य करनी चाहिए. इस पूजा में आनंद, वासुकी, पद्म, महापद्म, कुलीर, कर्कट, शंख, कालिया, पिंगल आदि नागों की आराधना की जाती है.

नागपंचमी से जुड़ी कथाएं हैं प्रचलितज्योतिर्विद ने बताया कि धर्म शास्त्र में नागपंचमी से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. मान्यता है कि शेषनाग के फन पर ही यह धरती टिकी हुई है. शेषनाग के करवट बदलने से धरती उथल-पुथल हो जाती है. आचार्य मिश्र बताते हैं कि द्वापर में भगवान कृष्ण यमुना नदी में शेषनाग के मस्तक पर नृत्य किये थे. आज भी नागदेवता के मस्तक पर कृष्ण के चरण पादुका का प्रतिबिंब देखने को मिलता है. सारी सृष्टि का संचार धरती पर ही हुआ है. देवासुर संग्राम में बासुकी नाग की ही रस्सी बनाकर समुद्र मंथन किया गया था. पौराणिक आख्यान के अनुसार, राजा परीक्षित, जन्मेजय और तक्षक से जुड़ी घटनाएं मिलती हैं, जहां आस्तिक मुनि ने सर्प जाति की रक्षा की थी. आज के दिन कई स्थानों पर विस्तृत मेले का आयोजन होता है, जहां मंदिरों में अवस्थित नाग देवता के दर्शन व पूजन के लिए काफी भीड़ लगती है.

माली में नागपंचमी महोत्सव आचार्य राधेकृष्ण पांडेय ने बताया कि सोमवार की रात 11:43 बजे से नागपंचमी तिथि शुरू हो रही है, जो मंगलवार को 12.44 बजे तक रहेगी. उतरा फाल्गुनी नक्षत्र सिंह योग में नाग देवता का पूजन करना श्रेयस्कर है. सावन शुक्ल पक्ष की शुरुआत होते ही देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था बढ़ जाती है. इस महीने में नागपंचमी के साथ-साथ सप्तमी को संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास की जयंती है. ऐसे में भी पूरे महीने तक देवी-देवता की पूजा का दौर जारी रहता है. कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र के माली स्थित बक्स बाबा के मंदिर में नागपंचमी महोत्सव का आयोजन किया जाना है. स्थानीय राज नारायण सिंह ने बताया कि महोत्सव को लेकर मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया गया है. इधर, ओरडीह पहाड़ी पर श्रद्धालु नाग-देवता को दूध लावा से पूजा कर साक्षात दर्शन के लिए बेताब रहते हैं. रघुनंदन पासवान, हरिद्वार पासवान व पूर्व शिक्षक रामाधार राम ने बताया कि श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए नाग देवता बाहर आ जाते हैं. इधर, मदनपुर के वार मंदिर में भी वर्षों से नाग देवता की पूजा होती आयी है. इस दौरान श्रद्धालु भोजन में नमक के प्रयोग करने से परहेज करते हैं. वहां पर आसपास गांव समेत दूर-दराज के हजारों भक्त पहुंचते हैं. पूरा वातावरण भक्तिमय रहता है. विदित हो कि नागपंचमी के साथ सनातन धर्म में पर्व त्योहार की शुरुआत होती है.

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