रोहिणी नक्षत्र में सूर्य का प्रवेश करने के साथ धान की खेती के लिए बिचड़ा (नर्सरी) की तैयारी शुरू हो गयी है. किसान बिचड़ा तैयार करने के लिए बीज स्थली तैयार कर रहे हैं.
25 मई को रोहिणी नक्षत्र में हुआ सूर्य का प्रवेश, मृगशिरा व आद्रा में भी कर सकते हैं बिचड़ा बुआई
इस साल सूर्य 25 मई को रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश कर गया और आठ जून तक रहेगा. यह समय नौतपा के रूप में जाना जाता है. रोहिणी, मृगशिरा व आद्रा नक्षत्र में किसानों के लिए बिचड़ा बोआई का समय है. इस बार रोहिणी में अच्छी बारिश हो रही है. खासकर बारिश होने से किसानों के चेहरे खिल उठे हैं. खेतों में पानी जमने लगा तो उनकी उम्मीद जग गयी है और वे खेतों पर बिचड़ा लगा रहे हैं. कृषि विभाग की ओर से आंकड़े के अनुसार इस बार आगात धान की खेती के अनुकूल मौसम है.
खेतों पर निकलने लगे किसानजिले के धान उत्पादक नौ प्रखंडों सबौर, गोराडीह, शाहकुंड, सन्हौला, पीरपैंती, जगदीशपुर, नाथनगर, कहलगांव व सुल्तानगंज के किसान खेतों पर धान की फसल की तैयारी कर रहे हैं. जगदीशपुर के धान किसान राजशेखर ने बताया कि धान की खेती के साथ अरहर की खेती करते हैं. कतरनी धान की खेती में कम पानी में भी अधिक मुनाफा है. शाहकुंड के किसान मृगेंद्र सिंह ने बताया कि खरीफ फसल के तहत धान का बिचड़ा गिरा रहे हैं.मृगशिरा व आद्रा नक्षत्र में भी बिचड़ा डालते हैं भागलपुर जिले के किसानजिला कृषि पदाधिकारी प्रेमशंकर प्रसाद ने बताया कि भागलपुर जिले में किसान मृगशिरा व आद्रा नक्षत्र में बिचड़ा डालते हैं. ऐसे में यदि बारिश शुरू हुई है, तो किसानों और इस क्षेत्र के लिए खुशखबरी है. मक्के की फसल के लिए यह बारिश अमृत के समान है. बारिश के बाद मक्के के पौधे सलामत रहे और उपज अच्छी दें, इसलिए खाद छिड़का जा रहा है. जिले के धान उत्पादक नौ प्रखंडों समेत अन्य प्रखंडों में 52 हजार हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया है. पिछले वर्ष सुखाड़ के कारण किसान चिंतित थे. हजारों किसान बारिश नहीं होने से परेशान थे, लेकिन मौसम में बदलाव के बाद किसानों में उम्मीद जगी थी. समय पर धान की खेती हो गयी. 52 हजार हेक्टेयर भूमि के लिए 5200 हेक्टेयर भूमि में बिचड़ा गिरा सकते हैं.
धान का बिचड़ा तैयार कर सकते हैं किसानबीएयू के पौधा प्रजनन विभाग के कनीय वैज्ञानिक डॉ मंकेश कुमार ने बताया कि जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधा हो, वे धान का बिचड़ा तैयार करने के लिए बीज स्थली तैयार कर सकते हैं. तीन-चार दिनों के अंतराल पर तीन-चार किस्तों में बीज डालें. इससे अलग-अलग जमीन पर अलग-अलग समय में धान की बुआई कर सकते हैं. जहां किसान धान की सीधी बुआई करते हैं, वे कम समय में तैयार होनेवाली किस्मों का प्रयोग कर सकते हैं. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक जो किसान अभी तक अपने खेतों की तैयारी नहीं कर पाये हैं, वे मिट्टी में उपयुक्त नमी रहने पर खेत की जुताई ढाल के विपरीत कर लें. किसान ऊपरी जमीन को प्राथमिकता देते हुए जुताई करें. जो किसान खेतों में देसी खाद का प्रयोग करना चाहते हैं, वे जुते हुए खेत में खाद मिलाकर मिट्टी बिखेर दें. जिन खेतों में दीमक का प्रकोप है, वहां अंतिम तैयारी के समय नीम या करंज की खल्ली अच्छी तरह मिला दें. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो खरीफ फसल की समय पर बुआई के लिए आवश्यकतानुसार उत्तम बीज, बीज का उपचारित करने के लिए फफूंदीनाशी दवा (वेभिस्टीन) का उपयोग करें. ऊपरी खेती में वर्षा की अनियमितता की संभावना देखते हुए अरहर, उरद आदि की खेती कर सकते हैं. मध्यम जमीन में धान, मकई की मध्यम अवधि वाले सीधी बुआई कर सकते हैं. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो मौसम के मिजाज को देखते हुए किसान काम करना शुरू करें तो यह अवसर है. मौसम के मुताबिक एक्सपर्ट जो सलाह देते हैं, उनको ध्यान में रखना बेहतर खेती के लिए आवश्यक है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है