– भागलपुर संग्रहालय की ओर से मंजूषा कार्यशाला के चौथे दिन संग्रहालय अध्यक्ष डॉ सुधीर कुमार यादव ने प्रतिभागियों को किया प्रोत्साहित
वरीय संवाददाता, भागलपुर
भागलपुर संग्रहालय की ओर से मंजूषा कला पर आधारित सात दिवसीय कार्यशाला के चौथे दिन शनिवार को मूर्ति कला व टेराकोटा की झलक दिखी. भागलपुर संग्रहालय अध्यक्ष डॉ सुधीर कुमार यादव ने मंजूषा कलाकारों को प्रोत्साहित किया और कहा कि मंजूषा कला मूलरूप से बिहार के भागलपुर एवं उसके समीपवर्ती क्षेत्रों की लोकचित्र कला है, जो वहां की चर्चित लोक गाथा बिहुला विषहरी पर आधारित है. सती बिहुला सारी बाधाओं को पार कर अपने जीवन को सफल बनायी थी. यह चित्रकला नारी सशक्तीकरण का भी प्रतीक है. अंग क्षेत्र की संस्कृति व लोक कला को बढ़ावा देने के लिए मंजूषा कला के तहत, मूर्ति कला और टेराकोटा को भी बढ़ावा मिल रहा है. इसमें धार्मिक और सामाजिक विषयों को चित्रित किया जा रहा है.पकी हुई मिट्टी से बनी मूर्तियां और कलाकृतियां हैं टेराकोटा
टेराकोटा, पकी हुई मिट्टी से बनी मूर्तियां और कलाकृतियां होती हैं, जो अक्सर धार्मिक या सजावटी उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाती हैं. इस कार्यशाला में कलाकार केवल पेंटिंग नहीं, बल्कि मंजूषा की सजावट के साथ मूर्ति कला व टेराकोटा को भी संग्रहालय के मंजूषा कला दीर्घा में जगह दी जायेगी. क्षेत्रीय लोगों को अपनी पारंपरिक लोककला (मंजूषा कला) को महत्व से अपनी सभी संस्कृति एवं संस्कार के भाव को समझने का अवसर मिल रहा है. कार्यक्रम में संग्रहालय के प्रधान लिपिक अमिताभ मिश्रा, मंजूषा गुरु मनोज पंडित, उलूपी झा आदि का योगदान है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है