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bhagalpur news. मूक-बधिर बच्चों के कान में इम्प्लांट की कीमत सात लाख, पटना एम्स हो रहे रेफर

जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) मायागंज के ईएनटी विभाग में अब मूक-बधिर बच्चों के इलाज की तैयारी चल रही है. इस समय जन्मजात सुनने व बोलने में असमर्थ बच्चों की संख्या काफी बढ़ रही है.

जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) मायागंज के ईएनटी विभाग में अब मूक-बधिर बच्चों के इलाज की तैयारी चल रही है. इस समय जन्मजात सुनने व बोलने में असमर्थ बच्चों की संख्या काफी बढ़ रही है. अस्पताल के ईएनटी विभाग के अध्यक्ष डॉ धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि हर माह ओपीडी में इलाज के दौरान औसतन आठ बच्चे मूक-बधिर से पीड़ित मिल रहे हैं. इन्हें स्थायी इलाज के लिए पटना एम्स रेफर कर दिया जाता है. एम्स में बच्चों के कान के पीछे चीरा लगाकर कॉक्लियर इम्प्लांट नामक उपकरण लगाया जाता है. मायागंज अस्पताल के ईएनटी विभाग में इस सर्जरी की पूरी व्यवस्था है. लेकिन उपकरण नहीं हैं. स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखकर कॉक्लियर इम्प्लांट की मांग की गयी है. उपकरण आने के बाद मूक-बधिर बच्चों का ऑपरेशन मायागंज अस्पताल में ही होगा.

सुनायी नहीं देने से बोल भी नहीं पाते : जन्मजात मूक-बधिर बच्चों की मूल समस्या बहरापन है. सुनायी नहीं देने से मूक-बधिर से पीड़ित मरीज आम बोलचाल की भाषा का एक भी शब्द नहीं सीख पाता है. ऐसे में मरीज बोलने में भी असमर्थ हो जाता है.

आरबीएसके योजना से मुफ्त मिलता है इंम्प्लांट :

केंद्र सरकार की आरबीएसके योजना के तहत सात लाख रुपये का इम्प्लांट नि:शुल्क मिलता है. यह ऑपरेशन छह माह से पांच साल तक के बच्चों का होता है. ऑपरेशन के बाद बच्चे सुन पाते हैं. इसके बाद बच्चे धीरे-धीरे बोलता सीखते हैं. कुछ समय के बाद सामान्य बच्चों की तरह स्कूल में पढ़ते हैं. समाज की मुख्यधारा से जुड़ जाते हैं.

मूक-बधिर बच्चों की पहचान

– यदि बच्चा पटाखे जैसी आवाज पर भी प्रतिक्रिया नहीं करता है

– बच्चा तय समय पर मम्मी पापा जैसी बात नहीं कह पा रहा है

– बच्चाें को बोलने में देरी, शब्दों का सही से उच्चारण नहीं करना

– यदि बच्चा दूसरों के साथ संवाद करने में परेशानी महसूस करता है

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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