दीपक राव, भागलपुर
कतरनी के बाद दूसरा सुगंधित धान मालभोग-तुलसी मंजरी को जीआई टैग दिलाने की तैयारी शुरू हो गयी है. इसे लेकर मालभोग धान उत्पादक संघ को सहयोग करने के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर फेसिलेटर बना है. इतना ही नहीं जीआई रजिस्ट्री कार्यालय, चेन्नई भेज दिया गया है.
मालभोग धान उत्पादक संघ से जुड़े जगदीशपुर के प्रगतिशील किसान राजशेखर ने बताया कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से बिहार सरकार से विशिष्ट उत्पाद के तहत मालभोग उत्पादक संघ के नाम से रजिस्ट्रेशन करा लिया गया. ऐसे में जीआई टैग दिलाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी. उन्होंने बताया कि कतरनी धान का पौधा लंबा होता है जो आंधी में गिरने का डर रहता है, जबकि मालभोग धान का पौधा सामान्य होता है. इस धान की क्षति कम होती है.
प्रदेश के चार जिलों में होता है उत्पादन
प्रदेश के चार जिलों में मालभोग-तुलसी मंजरी धान का उत्पादन होता है. इसे लेकर संबंधित किसानों के साथ बीएयू के वैयार किया गया है. इस मैप में स्पष्ट किया गया है कि बांका के रजौन, अमरपुर, बौंसी, बाराहाट, धौरेया, शंभुगंज, भागलपुर के सन्हौला, गोराडीह, जगदीशपुर, नाथनगर व शाहकुंड, मुंगेर के असरगंज व तारापुर एवं लखीसराय के लखीसराय, रामगढ़ व हलसी में मालभोग धान का उत्पादन होता है.
कतरनी से अधिक सुगंधित होता है
मुंगेर तारापुर के मालभोग धान उत्पादक किसान सुबोध चौधरी ने बताया कि मालभोग-तुलसी मंजरी धान कतरनी से अधिक सुगंधित है. इसकी बड़ी विशेषता है, इस धान के आकार में दूसरा धान नहीं होता, जिससे इसमें मिलावट की गुंजाईश नहीं है. यह कतरनी से थोड़ा छोटा व मोटा है. इसका नया चूड़ा कतरनी से अधिक स्वादिष्ट होता है. सरकार की ओर से कतरनी के बाद मालभोग की खेती को बढ़ावा देना सराहनीय कदम है. सुगंधित धान जिसके जरिये किसानों की आय दोगुनी करने की तैयारी है. इसका हाइब्रिड भी तैयार नहीं हो पाया है.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के पीआरओ डॉ राजेश कुमार ने बताया कि मालभोग को जीआई टैग दिलाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है. इससे पहले किसान समूह की ओर से सोसाइटी रजिस्ट्रेशन कराया गया है. यह जीआई टैग दिलाने में मदद करेगा. मालभोग धान को जीआई टैग के लिए चेन्नई रजिस्ट्री ऑफिस भेजा गया है. विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से मालभोग धान के उत्पादक क्षेत्र का मैप तैयार कराया है. यह प्रदेश के चार जिलों में मूलरूप से उपजाया जाता है. बीएयू के पीआरओ
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