पंचायती राज विभाग बिहार सरकार की ओर से विभिन्न प्रखंडों में क्षमतावर्धन शिविर लगाया गया था, जिसमें सभी न्याय मित्रों, ग्राम कचहरी सचिव, सरपंच, उप-सरपंच व पंचों को नये भारतीय दंड संहिता के बारे में बताया गया, जो 2023 से भारतीय न्याय संहिता के रूप में परिवर्तित हो गयी है. इस नये संहिता के तहत दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में बदलाव किया गया है. प्रशिक्षण पंचायत वार निर्धारित किया गया था और सफल भी रहा. मास्टर ट्रेनरों का बकाया प्रशिक्षण का पैसा आज तक नहीं मिला है. एक मास्टर ट्रेनर अधिवक्ता डॉ विपुल कुमार ने बताया कि उन्होंने न्याय मित्रों को भागलपुर जिले के कई प्रखंडों में ट्रेनिंग दी, लेकिन विभाग से अभी तक कोई पारिश्रमिक व योगदान राशि नहीं मिली है. वरीय अधिवक्ता तथा न्याय मित्र संतोष कुमार सिंह ने कहा कि सेवाकाल का पैसा तो समय पर मिलता नहीं है, प्रशिक्षण शिविरों का पैसा सरकार कहां से देगी. पांच महीने से न्याय मित्रों की फीस बकाया है. विभाग के इस व्यवहार से सभी न्याय मित्रों में असंतोष है. सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराना चाहिए, क्योंकि सूबे में अब ई ग्राम कचहरी बहुत अच्छे तरीके से काम कर रही है और लगातार निष्पादित केसों की संख्या में बढ़ोतरी है, तो सरकार को भी थोड़ा ध्यान ग्राम कचहरी के न्याय मित्रों तथा ग्राम कचहरी सचिव संविदा के ऊपर भी देना चाहिये.
गोराडीह थाना में भूमि विवाद से जुड़े मामलों का हुआ निष्पादन
गोराडीह थाना परिसर में शनिवार को भूमि विवाद से संबंधित जनता दरबार का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम स्थानीय लोगों की भूमि विवाद से संबंधित समस्याओं को सुलझाने की पहल के तहत आयोजित किया गया, जिसमें थाना के अधिकारी व अंचल के अधिकारी मौजूद थे.जनता दरबार में कुल 12 भूमि विवाद मामलों की सुनवाई की गयी. सात मामलों का ऑन द स्पॉट निबटारा कर दिया गया, जिसमें दोनों पक्षों की सहमति से समझौता कराया गया. शेष पांच मामलों की गहन जांच कर आवश्यक कार्रवाई करने का आश्वासन अधिकारियों ने दिया. जनता दरबार की अध्यक्षता गोराडीह थानाध्यक्ष इंस्पेक्टर संजय कुमार सिंह ने की. अंचल कार्यालय से आये राजस्व कर्मियों व अमीनों ने भी मौके पर मौजूद रह कर दस्तावेजों का परीक्षण किया. अधिकारियों ने बताया कि भूमि विवादों को जड़ से सुलझाने के लिए इस प्रकार के जनता दरबार नियमित रूप से आयोजित की जाती है, ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके और न्यायालयों पर बोझ भी कम हो.
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