Prabhat Exclusive, दीपक राव, भागलपुर: एक ओर भागलपुर की मिट्टी में उपजे कतरनी चावल व जर्दालू आम की खुशबू विदेशों में फैल रही है. वहीं दूसरी ओर यहां के कृषि से जुड़े वैज्ञानिक भी इस क्षेत्र में नित नये आयाम गढ़ रहे हैं. बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के उद्यान-फल विभाग में चेयरमैन रहे डॉ नरेश कुमार ने 28 सालों तक 139 आम पर रिसर्च किया. छह आम विकसित करके खुद को सुपर मेंगो मैन के रूप में स्थापित कर दिया. बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की ओर से प्रकाशित उनकी पुस्तक कम्पेंडियम ऑफ मेंगो वेराइटल वेल्थ ऑफ बिहार में उनकी छह विकसित आमों की कहानी दर्ज है.
इन छह आमों को विकसित करने में पायी सफलता और विशेषता पर दंग हैं राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञ
78 वर्षीय आम के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ नरेश कुमार ने बताया कि उन्होंने छह आम सुंदर लंगड़ा, अलफजली, जवाहर, सबरी, सुभाष और मेनका आम की प्रजाति को विकसित किया. 1980 में सुंदर लंगड़ा आम प्रजाति को विकसित किया. देखने में लंगड़ा अर्थात मालदह के रूप में लगता, लेकिन ऊपर से लालिमा लिये हुए था, जो कि आमलोगों को आकर्षित करता है. यह गुलाब खास की तरह दिखता है. वहीं 1980 में ही अलफजली को रिलीज किया, जो कि फजली से बेहतर क्वालिटी का होता है. यह देरी वाली वेराइटी फजली जैसा ही है. इसे अलफांजों से सेट किया गया.
जवाहर 1989 में विकसित किया गया. यह नियमित फलन वाला आम है, जो कि बौना किस्म आम्रपाली की तरह है. यह अल्टरनेट वेराइटी नहीं है. हर साल आता है. सबरी 1989 में रिलीज हुआ. गुलाब खास और बंबई के शंकरन से निकला है. स्वाद बंबई जैसा होता है, जबकि रंग गुलाब खास का लिया हुआ है. सुभाष आम का आकार लंगड़ा अर्थात मालदह की तरह है. फल का रंग जर्दालू की तरह पीला और स्वाद भी जर्दालू से ही मिलता है. इसका मिठास भी 24 प्रतिशत है. मेनका लेट वेराइटी है. लेट वेराइटी में रंगीला आम की कमी को पूरा किया. गुलाबी रंग का होता है. भागलपुर में लेट वेराइटी में रंगीला आम नहीं है. पकने के बाद अधिक दिन तक टिकता है.
शोध व विकसित आम का प्रोजेक्ट तैयार करने की है दिलचस्प कहानी
डॉ नरेश कुमार ने बताया कि उनके द्वारा किये गये शोध व विकसित आम का प्रोजेक्ट के रूप तैयार करने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. 1978 में शुरू किये गये शोध का काम 2006 में पूरा हो गया था. इसी बीच में 1998 में आइसीआर के एडीजी डॉ डीएस राठौर भागलपुर आये और फिर उनके घर आ गये. उन्होंने खुद का विकसित किया हुआ आम चखने के लिए दिया. उन्होंने टीएसएच समेत अन्य जानकारी मांगी, तो तुरंत दे दिया. इसी क्रम में अपना शोध पेपर दिखाया. जिसे देखकर दंग रह गये. फिर 2003 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वरीय पदाधिकारी ने प्रोजेक्ट के लिए बड़ी राशि दिलायी.
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विमोचन समारोह में नहीं मिला आमंत्रण
डॉ नरेश कुमार ने बताया कि उनकी पुस्तक को पिछले साल 20 जून को बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की ओर से प्रकाशित करायी गयी, लेकिन उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला. इसे लेकर पटना में विमोचन समारोह हुआ. विमोचन खुद राज्यपाल सह कुलाधिपति के हाथों कराया गया. यह उनके जीवन के लिए गौरव का क्षण रहा और उनकी सफलता को सुनहरे पन्नों में अंकित करने वाला अवसर था.
उनके लिए सबसे बड़ी टीस रही कि विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से इस समारोह में आमंत्रित तक नहीं किया गया. जब उन्होंने अपनी प्रकाशित पुस्तक की जानकारी ली, तो कहा गया कि हां उनकी पुस्तक प्रकाशित हो गयी और एक पुस्तक सामान्य रूप से दे दिया गया. जबकि उन्होंने अनुरोध किया था कि किसी मौके पर यह पुस्तक उन्हें दिया जाना चाहिए था.
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