वरीय संवाददाता, भागलपुर
मंगलवार को भागलपुर संग्रहालय, भागलपुर के तत्वावधान में मंजूषा कला पर आधारित सात दिवसीय कार्यशाला का समापन हो जायेगा. इसे लेकर सोमवार को संग्रहालय अध्यक्ष डॉ सुधीर कुमार यादव की अध्यक्षता में बैठक हुई. इसी क्रम में कार्यशाला में शामिल मंजूषा कलाकारों को प्रमाण पत्र वितरण पर चर्चा हुई. कार्यशाला में राज्य पुरस्कार प्राप्त कलाकारों समेत अन्य नामचीन कलाकार शामिल हुए. संग्रहालयाध्यक्ष डॉ सुधीर कुमार यादव ने कहा कि मंजूषा कला पर आधारित पेंटिंग, मूर्ति कला, टेराकोटा, कागज व बांस की लकड़ी से जोड़ कर प्राचीन मंजूषानुमा नाव तैयार कराया गया, जिसका वर्णन लोकगाथा में है.डॉ सुधीर ने कहा कि मंजूषा कला मुख्यतः बिहार के भागलपुर एवं उसके समीपवर्ती क्षेत्रों की लोक चित्रकला है, जो वहां की चर्चित लोक गाथा बिहुला विषहरी पर आधारित है. सती बिहुला सारी बाधाओं को पार कर अपने जीवन को सफल बनायी थी. यह चित्रकला नारी सशक्तीकरण का भी प्रतीक है. एक नारी का जीवन-मृत्यु सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष की गाथा-कथा का सांगोपान चित्रण ही मंजूषा कला का अर्थ है. मौके पर संग्रहालय के प्रधान लिपिक अमिताभ मिश्रा, मंजूषा गुरु मनोज पंडित, डॉ उलूपी झा आदि उपस्थित थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है