Darbhanga News: दरभंगा. लनामिवि के पीजी हिंदी विभाग की ओर से सोमवार को साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की जयंती पर विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार की अध्यक्षता में संगोष्ठी हुई. विभागाध्यक्ष प्रो. कुमार ने कहा कि दलित साहित्य ने ही हिन्दी साहित्य में सबसे पहले यथार्थवाद को साकार किया है. ओमप्रकाश वाल्मीकि या अन्य दलित साहित्यकारों की रचनाओं में सामाजिक यथार्थ का सबसे प्रामाणिक चित्रण देखने को मिलता है. इसकी मिसाल ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा ‘जूठन’ है. यह आत्मकथा भारतीय समाज के वीभत्स यथार्थ को बेहद प्रामाणिकता से अभिव्यक्त करती है. बाल्मीकि ने दलित जीवन के सांस्कृतिक पक्ष को कभी अनदेखा नहीं किया. दलित वर्ग के सांस्कृतिक पक्ष की उपेक्षा कर हम उनके यथार्थ को पूर्णता में समझ ही नहीं सकते. दलित साहित्य महज सिलेबस और परीक्षाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सुंदर और स्वस्थ जीवन दृष्टि के लिए हम सबके लिए जरूरी है. साहित्य में आंबेडकर आवश्यक आलोचना दृष्टि है.
सताये लोगों की आवाज हैं ओम प्रकाश वाल्मीकि- डॉ सुमन
डॉ सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि सिर्फ कवि, कहानीकार और चिंतक नहीं, बल्कि देश के सदियों से सताए हुए लोगों की आवाज हैं. बहिष्कृत समाज को केवल समाज से ही बाहर नहीं रखा गया बल्कि साहित्य, संस्कृति और भाषा के क्षेत्र से भी वर्जित रखा गया है. ओमप्रकाश वाल्मीकि की रचनाओं में जो प्रतिरोध है, उसे समझना होगा. वह आंवेडकर की वैचारिकी पर आधारित प्रतिरोध है. ओमप्रकाश भली-भांति जानते हैं कि इस देश के वास्तविक सर्वहारा कौन हैं, जिनके नेतृत्व में वर्चस्वशाली सत्ता को ध्वस्त करने के लिए निर्णयकारी संघर्ष होगा. उनकी रचना–संसार का नायक वही सर्वहारा दलित वर्ग है. डॉ आनंद प्रकाश गुप्ता ने कहा कि ओमप्रकाश ने करोड़ों शोषितों की पीड़ा को वाणी दी. डॉ मंजरी खरे ने कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि ने साहित्यिक जगत में नई लकीर खींची है. संचालन कंचन रजक तथा धन्यवाद ज्ञापन समीर ने किया. मौके पर रोहित कुमार, सुभद्रा कुमारी, अमित कुमार, बबीता कुमारी, अंशु कुमारी, जयप्रकाश कुमार, पुष्पा कुमारी, राजवीर पासवान, धीरज कुमार आदि ने भी विचार रखा.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है