परैया. करहट्टा पंचायत का आदर्श ग्राम सिजुआ आजादी के 70 वर्ष बाद भी सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. महज ढाई किलोमीटर दूर गया-पंचानपुर मुख्य सड़क से सटा यह गांव प्रशासनिक उदासीनता का शिकार है. सड़क नहीं होने के कारण गांव की 700 से अधिक आबादी, जिनमें अधिकतर अनुसूचित वर्ग से आते हैं, नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं. इन दिनों गांव के महिला-पुरुष व बच्चे आपस में चंदा इकट्ठा कर श्रमदान से सड़क की मरम्मत में जुटे हैं. यह सिलसिला हर साल बरसात से पहले दोहराया जाता है, लेकिन हर बार मेहनत बारिश की भेंट चढ़ जाती है. सड़क नहीं, तो न शिक्षा, न स्वास्थ्य, न सामाजिक सम्मान गांव की रिंकी देवी ने बताया कि सड़क के अभाव में जीवन दूभर हो गया है. कई पीढ़ियां इसी आस में गुजर गयीं कि सड़क बनेगी, लेकिन आज भी हालात जस के तस हैं. सीमा देवी ने बताया कि बरसात के दिनों में बीमार और गर्भवती महिलाओं को खाट पर लादकर ले जाना पड़ता है, जो बेहद मुश्किल और खतरनाक होता है. श्यामसुंदरी देवी ने अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहा कि सड़क नहीं होने से गांव में अच्छे रिश्ते नहीं आते. लड़के-लड़कियों की शादी तक प्रभावित हो रही है. गया कॉलेज में इंटर की पढ़ाई कर रहे पवन कुमार ने कहा कि सड़क हमारे लिए सपना बन गयी है. इसकी वजह से पढ़ाई भी बाधित हो रही है. चुनाव में करते हैं वादे, बाद में भूल जाते हैं नेता स्थानीय वार्ड सदस्य रूपा देवी ने कहा कि चुनाव के समय नेता गांव में आकर सड़क बनाने का वादा करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई सुध नहीं लेता. पंचायत के मुखिया अरुणोदय मिश्रा ने जानकारी दी कि इस सड़क का डीपीआर दो साल पहले तैयार हो गयी थी, लेकिन आज तक टेंडर नहीं हुआ. गुरुआ और बेलागंज विधानसभा क्षेत्र की सीमा पर होने के कारण यह सड़क प्रशासनिक भ्रम और उपेक्षा की शिकार बन चुकी है. श्रमदान से ही बन रही है ग्रामीणों की राह सड़क न होने के कारण बुजुर्ग, बच्चे, महिलाएं, मजदूर सभी परेशान हैं. ऐसे में ग्रामीण आपसी सहयोग से चंदा इकट्ठा कर, खुद गड्ढों को भर रहे हैं और सड़क को किसी तरह आवागमन योग्य बना रहे हैं. गांव के लोगों की मांग है कि प्रशासन जल्द से जल्द इस सड़क का निर्माण शुरू कराये, ताकि उन्हें भी सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन मिल सके.
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