24.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Eid: सिर्फ गया में ही बनती है लखनऊ के नवाबों के सिर पर सजने वाली यह टोपी, पाकिस्तान से इंडोनेशिया तक होती है सप्लाई

Eid: लखनऊ के नवाबों के सिर पर सजने वाली पल्ले वाली टोपी सिर्फ गया में ही बनती है. पूरे देश सहित बांग्लादेश, पाकिस्तान व इंडोनशिया तक सप्लाई होती है.

Eid: जितेंद्र मिश्रा/ गया. लखनऊ के नवाबों के सिर पर सजने वाली पल्ले वाली टोपी की मांग रमजान में काफी बढ़ जाती है. बता दें कि यह टोपी पूरे देश में सिर्फ गया में ही बनायी जाती है और यहीं से पूरे देश सहित बांग्लादेश, पाकिस्तान व इंडोनशिया तक सप्लाई होती है. टोपी पर कढ़ाई के लिए पहले लखनऊ भेजना पड़ता था. लेकिन, अब जिले के टनकुप्पा में इस टोपी पर कढ़ाई हो जाती है. रमजान के साथ यहां सालों भर इस टोपी की बिक्री होती है, पर रमजान में इसकी बिक्री में 60-70 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. शहर में 20 से अधिक जगहों पर टोपी बनाने का काम सालों भर किया जाता है. इनमें बैंक रोड, धामी टोला, सराय मुहल्ला, कठोकर तालाब व नादरागंज मुख्य हैं. वहीं कढ़ाई का काम टनकुप्पा में किया जाता है.

फल्गु नदी का पानी कपड़े को साफ करने व अधिक सफेदी लाने में होता है प्रयोग

गया जिले में टोपियों के एक कारखाने से जुड़े मोहम्मद नेहाल अहमद ने बताया कि इस टोपी का निर्माण यहां आजादी से पहले से किया जा रहा है. फल्गु नदी का पानी कपड़ा को साफ करने व अधिक सफेदी लाने के लिए मशहूर है. इसके चलते यहां पर ही टोपियों का निर्माण किया जाता है. उन्होंने बताया कि पल्ले की टोपियां गया से कोलकाता जाती हैं और फिर वहां से बांग्लादेश और दिल्ली-मुंबई से पाकिस्तान और अन्य देशों में भेजी जाती हैं. इस बार रमजान में 15 करोड़ से अधिक का कारोबार होने की संभावना व्यक्त की जा रही है. नेहाल ने बताया कि होली में भी इस टोपी की मांग अधिक रहती है. इस काम से जुड़े आरिफ मोहम्मद ने बताया कि इस बार रमजान और ईद पर 60 से 70 लाख पल्ले वाली टोपियों की खपत होने की संभावना है. एक कारीगर यहां हर दिन 1200 टोपियों की सिलाई कर लेता हैं. पिछले पांच वर्षों में इस कारोबार में खासा उछाल आया है.

कैसी होती हैं ये टोपियां

पल्ले वाली टोपी में कपड़े के दो भाग कर उसकी सिलाई ऊपरी और साइड के हिस्से में की जाती है. ऊपरी हिस्से की सिलाई खोल दी जाये, तो ये दो हिस्से में हो जाता है. इसे सफेद सूती कपड़े से बनाया जाता है. टोपी बनाने वाले कपड़े को अध्धी कहा जाता है. टोपी की पट्टी पर सफेद धागे से गुल बूटे ”डिजाइन” बनाया जाता है. कढ़ाई युक्त पल्ले वाली टोपी लखनऊ के नवाब भी पहनते थे. टोपी बनाने में कम लागत पर मुनाफा अधिक होता है. कारोबारियों ने बताया कि एक प्लेन टोपी बनाने में आठ रुपये का खर्च पड़ता है. इसकी बिक्री थोक में 12-13 रुपये में हो जाती है. कढ़ाई वाली टोपी बनाने में 15-17 रुपये आता है. थोक में यह टोपी 22-25 रुपये में बिकती है. खुदरा दुकानों में यह टोपी 35 से 45 रुपये में बिक जाता है.

Also Read: Exclusive: हथियार खरीदने के लिये रुपयों की जुगाड़ में मुजफ्फरपुर आये थे भगत सिंह, बेतिया में जुटा था क्रांतिकारियों का जत्था

Radheshyam Kushwaha
Radheshyam Kushwaha
पत्रकारिता की क्षेत्र में 12 साल का अनुभव है. इस सफर की शुरुआत राज एक्सप्रेस न्यूज पेपर भोपाल से की. यहां से आगे बढ़ते हुए समय जगत, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान न्यूज पेपर के बाद वर्तमान में प्रभात खबर के डिजिटल विभाग में बिहार डेस्क पर कार्यरत है. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते है. धर्म, राजनीति, अपराध और पॉजिटिव खबरों को पढ़ते लिखते रहते है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel