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प्रेमचंद ने स्त्रियों को बनाया रचनाओं का नायक : परिचय दास

एमयू के हिंदी और पत्रकारिता विभाग की ओर से प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में विचार गोष्ठी आयोजित

एमयू के हिंदी और पत्रकारिता विभाग की ओर से प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में विचार गोष्ठी आयोजित

वरीय संवाददाता, बोधगया.

मगध विश्वविद्यालय के हिंदी और पत्रकारिता विभाग की ओर से प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में साहित्य और प्रेमचंद विषयक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में नव नालंदा महाविहार के हिंदी विभाग से प्रो रवींद्रनाथ श्रीवास्तव उर्फ परिचय दास शामिल हुए. उनकी धर्मपत्नी और सुप्रसिद्ध भोजपुरी चित्रकार डॉ वंदना के अतिरिक्त एमयू मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो रहमत जहां, पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो विनय कुमार, संस्कृत विभाग से डॉ ममता मेहरा, उर्दू विभाग से डॉ तरन्नुम जहां भी वक्ताओं के रूप में उपस्थित रहे, जिनका स्वागत हिंदी और पत्रकारिता विभागाध्यक्ष प्रो ब्रजेश कुमार राय ने किया. इस अवसर पर हिंदी विभाग के विद्यार्थियों और शोधार्थियों ने भाषण प्रतियोगिता ने भी भाग लिया, जिसके विजेताओं को हिंदी भवन के उद्घाटन के दिन कुलपति की ओर से पुरस्कृत किया जायेगा. परिचय दास ने प्रेमचंद की रचनाओं की विशेषता बताते हुए कहा कि प्रेमचंद ने सिर्फ यथार्थ का अंकन नहीं किया, बल्कि उसके भीतर नैतिक विवेक भी पैदा किया, जो वास्तव में किसी भी अच्छे साहित्य का काम होना चाहिए. हिंदी भाषा को कठिन संस्कृत और अरबी फारसी शब्दों से मुक्त कर उन्होंने जनता को राह पकड़ाई और एक प्रकार से उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं में क्रांति पैदा की. साहित्य की अनिवार्य तरलता प्रेमचंद में खूब मिलती है. बाद में रेणु ने इसी सहज भाषा में खूब रस भी पैदा किया. उन्होंने तुलनात्मक साहित्य का उदाहरण देते हुए प्रेमचंद के बरक्स उड़िया के सीताकांत महापात्र और गोपीनाथ महंती का उल्लेख भी किया. उन्होंने बताया कि प्रेमचंद व शरतचंद्र ने एक ऐसे समय में स्त्रियों को अपनी रचनाओं का नायक बनाया, जब स्त्रियां बिल्कुल हाशिए की वस्तु समझी जाती थी. आज भी अनेक मजदूरों का पलायन हमारा जीता जागता यथार्थ है और इसीलिए प्रेमचंद प्रासंगिक हैं. उन्होंने कहा कि साहित्य प्रचार अथवा प्रोपेगेंडा नहीं होना चाहिए, बल्कि व्यापक सामाजिक संवेदना से जुड़ने का माध्यम बने रहना चाहिए. प्रेमचंद किसी विचारधारा के नहीं, विचार के प्रति प्रतिबद्ध लेखक हैं, जिनमें अनेक विचारधाराओं के प्रभाव मिलते हैं. इसीलिए, डॉ धर्मवीर की ओर से सामंत का मुंशी होने के उनके आरोप निहायत गलत है. क्योंकि, प्रेमचंद की रचनाएं उनकी जनता की पीड़ाओं के लिए प्रतिबद्ध होने और संवेदना के साधारणीकृत होने की निशानी है.

प्रेमचंद की रचनाओं का शिक्षकों ने किया उल्लेख

मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो रहमत जहां ने अंग्रेजी साहित्य में मुल्कराज आनंद की रचनाओं, गांधी के प्रभाव और प्रेमचंद के साहित्य से उनकी तुलना पर अपने विचार प्रकट किये. प्रो विनय कुमार ने तत्कालीन भारत की विषमता के प्रेमचंद के साहित्य पर पड़े प्रभाव का उल्लेख किया. संस्कृत विभाग की डॉ ममता मेहरा ने साहित्य की सुंदर परिभाषा देते हुए प्रेमचंद की उनके विधाओं में रचे गये उनके साहित्य से श्रोताओं का विस्तार से परिचय कराया. उर्दू विभाग की डॉ तरन्नुम जहां ने उर्दू साहित्य से शुरू हुई प्रेमचंद की यात्रा को रेखांकित करते हुए उर्दू के समकालीन और बाद के अनेक साहित्यकारों पर पड़े प्रेमचंद के प्रभाव का उल्लेख किया. यह बताया कि उर्दू में कैसे प्रेमचंद ने एक बिल्कुल नयी राह निकाली. प्रो ब्रजेश कुमार राय ने स्वागत वक्तव्य में प्रेमचंद की अनेक प्रसिद्ध पंक्तियों का हवाला देते हुए उनकी अतिलोकप्रियता के कारणों की ओर संकेत किया. डॉ परम प्रकाश राय ने मंच संचालन व डॉ अम्बे कुमारी ने स्वरचित कविता के माध्यम से धन्यवाद ज्ञापन किया. डॉ अनुज कुमार तरुण द्वारा मुख्य अतिथि से दलित साहित्य और प्रोपेगेंडा साहित्य पर प्रश्न किया गया. केसरी कुमार ने भी साधारणीकरण संबंधी प्रश्न पूछे जिसका धैर्यपूर्वक उत्तर परिचय दास द्वारा दिया गया. इस अवसर पर डॉ राकेश कुमार रंजन, डॉ किरण कुमारी सहित विद्यार्थी उपस्थित रहे.

छह अगस्त को प्रतिभागी होंगे सम्मानित

भाषण प्रतियोगिता में अभिषेक, माला, केसरी, प्रियंका, सुमित्रा, मृणालिनी, दीपक, रविरंजन, ब्रजेश, नेहा, सृष्टि ने भाग लिया. निर्णायक मंडल में शामिल प्रो आनंद कुमार सिंह, डॉ ममता मेहरा और डॉ तरन्नुम जहां ने विजेताओं का निर्णय किया जिनकी घोषणा और पुरस्कार वितरण छह अगस्त को होने वाले हिंदी भवन के उद्घाटन समारोह में किया जायेगा.

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