Bodh Gaya Temple: सुप्रीम कोर्ट ने आज (30 जून) बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 के अधिकारों को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार से साफ इनकार कर दिया. अदालत ने याचिकाकर्ता से संबंधित हाईकोर्ट जाने का आदेश दिया है.
दो जजों की बेंच में उठा मामला
इस दिन जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच साल 1949 के अधिनियम के अधिकारों को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही थी. बता दें कि बिहार के विश्व प्रसिद्ध बोधगया में महाबोधि मंदिर परिसर, यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट, भगवान गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधित चार पवित्र क्षेत्रों में से एक है. मान्यता है कि बोधगया वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई थी.
अनुच्छेद 32 के तहत विचार से इनकार
मिली जानकारी के मुताबिक कोर्ट में 2 जजों की बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील से याचिका में मांगी गई प्रार्थना के बारे में पूछा. इस पर अधिवक्ता ने जवाब देते हुए कहा कि मैंने (याचिकाकर्ता) प्रार्थना की है कि बोधगया मंदिर अधिनियम को अधिकारों के दायरे से बाहर मानते हुए रद्द किया जाना चाहिए. इसका जवाब देते हुए बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता को संबंधित हाईकोर्ट जाना चाहिए. इस दौरान बेंच ने पूछा कि आप हाईकोर्ट के समक्ष ऐसा क्यों नहीं करते? बेंच ने यह भी कहा कि हम संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं. जबकि याचिकाकर्ता के पास हाई कोर्ट जाने की आजादी है.
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किसने उठाया था मुद्दा
ज्ञात हो कि इसी साल अप्रैल में राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 के प्रावधानों में संशोधन की मांग की थी. ताकि महाबोधि महाविहार मंदिर का प्रबंधन बौद्धों को सौंपा जा सके.
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