फोटो- गया बोधगया 211- नीदरलैंड में प्रस्तुतीकरण देते सीयूएसबी के शोधार्थी कुमार गंधर्व मिश्रा
सीयूएसबी के शोधार्थी ने विष्णुपद शृंगार में रंगोली से भारतीय कला एवं संस्कृति विषय पर नीदरलैंड में प्रस्तुत किया शोधपत्रवरीय संवाददाता, गया जीनीदरलैंड में आयोजित विश्व के सबसे बड़े गणित और कला सम्मेलन में सीयूएसबी के शिक्षा पीठ के शिक्षक शिक्षा विभाग के शोधार्थी कुमार गंधर्व मिश्रा ने विष्णुपद शृंगार में रंगोली द्वारा भारतीय कला एवं संस्कृति के साथ-साथ गणितीय सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति पर शोध पत्र प्रस्तुत किया. सम्मलेन में विश्वभर के 40 देशों के प्रतिभागियों के बीच चयनित कला आधारित पत्रों में गंधर्व को विष्णुपद शृंगार की शैक्षिक प्रांसगिकता पर प्रस्तुतीकरण के लिए आमंत्रित किया गया था. इस उपलब्धि पर सीयूएसबी के कुलपति प्रो कामेश्वर नाथ सिंह, कुलसचिव प्रो नरेंद्र कुमार राणा, प्रो रविकांत, अधिष्ठाता शिक्षा पीठ एवं विभाग के अन्य प्राध्यापकों ने गंधर्व को बधाई तथा शुभकामनाएं दी हैं. परंपरा के अनुसार, प्रत्येक दिन सायंकाल में भगवान विष्णु के चरण चिह्न (विष्णुपद) का रंगोली से शृंगार किया जाता है जो विभिन्न प्रकार के ज्यामितीय आकृतियों का रूप लेता है. पीआरओ मोहम्मद मुदस्सीर आलम ने बताया कि इन ज्यामितीय आकृतियों का गणितीय अध्ययन गंधर्व मिश्रा ने अपने शोध पर्यवेक्षक डॉ तरुण कुमार त्यागी एवं लेफ्टिनेंट (डॉ) प्रज्ञा गुप्ता के निर्देशन में किया था. विष्णुपद मंदिर में बनायी जाने वाली ये रंगोलियां ज्यामिति में काफी परिपूर्ण हैं, जो साधारण से लेकर उच्च-स्तर ज्यामिति विशेषताओं को दर्शाती हैं तथा विद्यार्थियों के लिए सांस्कृतिक व स्थानीय प्रसंग प्रदान करने के साथ-साथ उनमें गणितीय सृजनात्मकता के संवर्धन का भी अवसर प्रदान करती हैं. सम्मेलन में गंधर्व ने बताया कि कैसे यह शृंगार भारतीय परंपरा का अभिन्न अंग है और किस प्रकार इस शोध का शैक्षिक उपयोग विद्यार्थियों के ज्यामितीय संवर्धन, उनके ज्यामितीय चिंतन के स्तर को पहचानने में तथा ज्यामिति शिक्षण को विद्यार्थियों के लिए रुचिकर बनाने के लिए किया जा सकता है. शोध के प्रस्तुतीकरण के दौरान गंधर्व ने इस रंगोली परंपरा का श्रेय विष्णुपद मंदिर प्रबंधन समिति और शृंगार करने वाले पंडों विशेषकर, विजय गायब, बलदेव व अन्य को धन्यवाद भी ज्ञापित किया है, जिन्होनें इस शृंगार से संबंधित कई जानकारी और अनुभव साझा किये. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनइपी) 2020 के अनुरूप पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परंपरा और सांस्कृतिक पहलुओं को विद्यार्थियों के बीच शामिल करने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है और इस कड़ी में यह शोध और इसके परिणाम काफी प्रासंगिक है.
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