Bodhi Tree: बिहार के गया जिले में महाबोधि मंदिर परिसर में एक खास पीपल का पेड़ स्थित है, जिसे बोधि वृक्ष कहा जाता है. मान्यता है कि इसी पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. यही वजह है कि यह स्थान बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है.
की जाती है खास देखरेख
बोधि वृक्ष की देखभाल में हर साल लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं. इसकी सेहत की जांच के लिए फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून से वैज्ञानिक साल में 3-4 बार आते हैं. वह पेड़ पर कीटनाशक स्प्रे करते हैं, सूखी और कमजोर टहनियों की कटाई करते हैं और पेड़ की सतह पर विशेष दवा का लेप भी किया जाता है. इस बार देहरादून से आए दो वैज्ञानिक (संतन बर्तवाल और शैलेश पांडे) पिछले दो दिनों से इस पेड़ की जांच कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि कुछ शाखाओं पर मीलीबग्स नामक कीट का हल्का संक्रमण देखा गया है. इस कीट से बचाव के लिए पेड़ पर विशेष स्प्रे किया गया है.
लोहे के 12 खंभों से सहारा
बोधि वृक्ष की टहनियां बहुत विशाल हैं. इन्हें सहारा देने के लिए लोहे के 12 मजबूत खंभे लगाए गए हैं. पेड़ के आसपास की साफ-सफाई और दवा के छिड़काव का खास ध्यान रखा जाता है, ताकि इसे कोई बीमारी न लगे.
बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र
बोधि वृक्ष बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पूजनीय है. लोग इसके पत्तों को अपने साथ ले जाते हैं और उनकी पूजा करते हैं. पेड़ से गिरी टहनियों को मंदिर समिति सुरक्षित रखती है. इतिहासकारों के मुताबिक, मौजूदा बोधि वृक्ष चौथी पीढ़ी का पेड़ है. पहले तीन वृक्ष या तो काट दिए गए या प्राकृतिक आपदा का शिकार हो गए. वर्तमान वृक्ष को साल 1880 में लार्ड कनिंघम के प्रयासों से श्रीलंका के अनुराधापुरम से लाकर लगाया गया था. आज यही पेड़ श्रद्धा और संरक्षण का प्रतीक बना हुआ है.
(मानसी सिंह की रिपोर्ट)
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