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सुशील मोदी क्यों नहीं बनना चाहते थे प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष, गोविंदाचार्य ने बताए कई अनछुए राज

सुशील मोदी के 'द सुशील मोदी' बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले के एन गोविंदाचार्य के पास मेकिंग ऑफ सुशील मोदी की पूरी प्रक्रिया से जुड़े कई अनछुए राज हैं. जो सुशील मोदी की सियासत में शुचिता की प्राथमिकता को बताते हैं. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव रहे और वर्तमान में दलगत राजनीति से अलग रचनात्मक कार्यक्रमों में सक्रिय गोविंदाचार्य सुशील मोदी के उभरते छात्र नेता और बुलंदी पर पहुंचते राजनेता के बीच के समूचे घटनाक्रम के साक्षी और भागीदार रहे हैं. 

सुशील मोदी पार्टी फंड जुटाने और उसे मैनेज करने की प्रक्रिया से दूर रहना चाहते थे. इसलिए उन्होंने बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनने का ऑफर ठुकरा दिया था. यह ऑफर उन्हें भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव प्रमोद महाजन ने दिया था. प्रमोद महाजन ने यहां तक आश्वासन दिया था कि पार्टी चलाने में फंड की दिक्कत वे नहीं होने देंगे. फिर भी सुशील जी ने हाथ जोड़ लिया था. यह कहना है भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव रहे के एन गोविंदाचार्य का. फिलहाल दलगत राजनीति से अलग होकर रचनात्मक कार्यक्रमों में सक्रिय गोविंदाचार्य ने प्रभात खबर से बातचीत में सुशील मोदी के राजनीतिक जीवन में शुचिता दिखाने वाले कई अनछुए राज साझा किए. 

गोविंदाचार्य जी कहते हैं कि जब पहली बार सुशील मोदी विधायक बने तो उन्हें राजनीतिक जीवन की पेचीदगियों का अहसास नहीं था. निजी काम से मिलने वालों का लगातार तांता लगा रहता था. उनके स्वागत-सत्कार में खर्च होते थे. पारिवारिक कारोबार में कई लोगों की भागीदारी थी, इसलिए वे उसका पैसा राजनीतिक कार्यों में खर्च नहीं करना चाहते थे. निजी आय के लिए राजेंद्र नगर में एक छोटा सा कंप्यूटर सेंटर था. उससे और विधायक के रूप में मिलने वाले वेतन से खर्च जुटाना मुश्किल होने लगा. अंत में उन्हीं की (गोविंदाचार्य की) पहल पर तय हुआ कि पार्टी के फंड से ही सुशील मोदी के एमएलए ऑफिस को भी चलाया जाय.

मूक और मुखर समुदायों की अलग-अलग बनाई रणनीति 

गोविंदाचार्य कहते हैं कि सियासी आधार के विस्तार के लिए रणनीति बनाने में सुशील जी की कोई सानी नहीं थी. इसके लिए पार्टी की एक बैठक में उन्होंने कहा था कि मूक और मुखर जातियों के बीच अपने समर्थक आधार के विस्तार के लिए समान रणनीति नहीं बनाई जा सकती है.

इसका उदाहरण देते हुए सुशील जी ने कहा था कि नाई बाल काटते समय अपने ग्राहक से बात करते रहते हैं. जबकि लोहार अपने काम के समय ऐसा नहीं करते. इसलिए इन पेशों से आने वाले लोगों  सामाजिक व्यक्तित्व में भी इसकी झलक दिखाई देने लगती है. इसलिए पार्टी के विचारों के जनसामान्य में प्रचार करते वक्त मूक और मुखर जातियों के अलग-अलग वर्ग बनाकर अपील की तरकीब निकालनी चाहिए. बहुत दिनों तक भाजपा में इस पर अमल हुआ. 

सामाजिक न्याय और सामाजिक एकता के संतुलन में दिया सोशल इंजीनियरिंग 

बिहार भाजपा की ओर से सोशल इंजीनियरिंग की पहल का श्रेय भी गोविंदाचार्य जी सुशील मोदी को ही देते हैं. वे कहते हैं कि राजनीति में आम धारणा है कि उनके(गोविंदाचार्य के) बिहार भाजपा के प्रभारी बनकर आने के बाद इसकी शुरुआत हुई, जबकि उसकी पहल 1979 में ही विद्यार्थी परिषद की बैठक में हो गई थी.

गोविंदाचार्य इसका जिक्र करते हुए कहते हैं कि कोर ग्रुप की बैठक में इस बात पर बहस हो रही थी कि विद्यार्थी परिषद को आखिर आरक्षण पर क्या स्टैंड लेना चाहिए. कोई सामाजिक आधार पर तो कोई आर्थिक आधार पर आरक्षण का हिमायती था. आखिर में सुशील मोदी जी के आग्रह पर यह तय हुआ कि सामाजिक आधार पर आरक्षण को प्राथमिकता देते हुए भी आर्थिक आधार पर पिछड़े लोगों के साथ अन्याय नहीं हो.

बिहार में जनता पार्टी की सरकार बनने पर संघ पृष्ठभूमि के मंत्रियों ने इस मुद्दे को आगे बढ़ाया. मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने इसे मान भी लिया, जो आगे चलकर कर्पूरी फॉर्मूला कहलाया. मशहूर वकील शांति भूषण ने कर्पूरी फॉर्मूले के आरक्षण का ड्राफ्ट तैयार किया था. इसी पहल को आगे विस्तार देकर भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग को आकार दिया गया.

सामाजिक न्याय और सामाजिक एकता के बीच संतुलन साधने के लिए इसकी बड़ी जरूरत महसूस की जा रही थी. सोशल इंजीनियरिंग केवल जातियों को साधने के लिए नहीं था, बल्कि गांव और शहर का संतुलन साधने के लिए भी था. सुशील जी का इस बात पर काफी आग्रह रहता था कि शहर में बड़े नेताओं की सभा रात में नहीं होनी चाहिए, इससे गांव के कार्यकर्ताओं को बड़ी कठिनाई होती है.

इस बात पर भी चर्चा हुई कि मंच पर जब केवल सवर्ण दिखेंगे तो बाकी समाज का हिंदुत्व से अपनापन कैसे पैदा होगा. सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से इस पर बिहार के भाजपा नेताओं के बीच सर्व सहमति बनाने में सुशील जी की बड़ी भूमिका थी.

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Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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