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सत्ता से सत्यानाश तक: आखिर ‘जंगलराज’ ने कैसे लिखी लालू यादव के पतन की कहानी

बिहार : नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 1990 से लेकर 2004 तक बिहार देश के सबसे अधिक अपराध-प्रभावित राज्यों में गिना जाने लगा. अपहरण और हत्या जैसे अपराधों में बिहार पहले नंबर पर था, और व्यवसायियों का पलायन आम बात बन चुकी थी.

भारतीय राजनीति में कुछ शब्द इतने ताकतवर हो जाते हैं कि वे सिर्फ बहस नहीं, बल्कि राजनीतिक करियर की दिशा तय करने लगते हैं. लालू प्रसाद यादव के लिए ‘जंगलराज’ ऐसा ही एक शब्द बना जो कभी उनके खिलाफ नारेबाजी का हथियार था, तो कभी उनकी पूरी सियासी विरासत पर सवालिया निशान.

लालू प्रसाद यादव
लालू प्रसाद यादव

लालू यादव के राज में था अपराध का बोलबाला

1990 में जब लालू यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने खुद को सामाजिक न्याय का मसीहा बताया. पिछड़े वर्गों को सत्ता में हिस्सेदारी दिलाना उनका मिशन था. लेकिन जल्द ही उनके शासन पर भ्रष्टाचार, जातिवाद और बिगड़ती कानून-व्यवस्था के आरोप लगने लगे. 1995-2005 के दशक में बिहार में अपराध, अपहरण, रंगदारी और माफिया राजनीति का बोलबाला हो गया.  

पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने किया था ‘जंगलराज’ शब्द का इस्तेमाल 

इस बीच पटना उच्च न्यायालय 5 अगस्त 1997 को एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था. उस वक्त न्यायमूर्ति जस्टिस वीपी आनंद और जस्टिस धर्मपाल सिन्हा की बेंच के सामने सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णा सहाय की याचिका पेश हुई थी, जिसमें उन्होंने बिहार के हालात का जिक्र किया था. उस वक्त पटना उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘बिहार में सरकार नहीं है. यहां भ्रष्ट अफसर राज्य चला रहे हैं और बिहार में जंगलराज कायम हो गया है.’ दरअसल, बिहार के लिए पहली बार जंगलराज शब्द का इस्तेमाल पटना उच्च न्यायालय ने किया था, जिसके बाद यह शब्द आम हो गया और लालू-राबड़ी राज के लिए राजनीतिक चलन में आ गया

सीएम नीतीश कुमार
सीएम नीतीश कुमार

कोर्ट ने शब्द दिया नेताओं ने लपका  

2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने इसी शब्द को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया और कहा, “अब बिहार को जंगलराज से निकालकर सुशासन देना है.” इस नैरेटिव का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि लालू यादव की छवि एक ‘जननेता’ से बदलकर ‘अराजक प्रशासक’ के रूप में बनने लगी और  2005 में आरजेडी को बिहार के लोगों ने सत्ता से बाहर कर दिया और नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ मॉडल को   हाथों-हाथ लिया. 

लालू यादव और तेजस्वी यादव
लालू यादव और तेजस्वी यादव

आज भी सुनाई देती है ‘जंगलराज’ की गूंज 

आरजेडी बिहार की सत्ता से करीब दो दशक से बाहर है. पार्टी में लालू-राबड़ी का दौर खत्म हो चुका है. पार्टी की कमान अब तेजस्वी के हाथों में हैं. इसके बावजूद सत्ता पक्ष उन्हें लगातार याद दिलाता है कि “तुम उसी जंगलराज की पैदाइश हो.” वहीं, जनता की याददाश्त में ‘जंगलराज’ एक डरावनी छवि बन गई है. अपराधियों के खुलेआम घूमने की, सरकारी ढांचे के ध्वस्त हो जाने की, और आम लोगों के असुरक्षित महसूस करने की. ऐसे में आज भी जब बिहार में चुनाव आता है, तो यह शब्द वापसी करता है और लालू यादव की विरासत को कटघरे में खड़ा कर देता है. ‘जंगलराज’ ने लालू यादव की  छवि पर ऐसा दाग लगाया जो अब उनके बेटे की राजनीति तक पीछा नहीं छोड़ता.  

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Prashant Tiwari
Prashant Tiwari
प्रशांत तिवारी डिजिटल माध्यम में पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में एक्टिव हैं. करियर की शुरुआत पंजाब केसरी से करके राजस्थान पत्रिका होते हुए फिलहाल प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम तक पहुंचे हैं, देश और राज्य की राजनीति में गहरी दिलचस्पी रखते हैं. साथ ही अभी पत्रकारिता की बारीकियों को सीखने में जुटे हुए हैं.

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