नौ अगस्त को पं.बंगाल के मिदनापुर और सिलदा से पहुंचेगा जत्था 11 अगस्त को सेंट्रल जेल में जाकर देंगे खुदीराम बोस को श्रद्धांजलि उपमुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर अमर शहीद खुदीराम बोस की शहादत को नमन करने और उनके प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए इस वर्ष पं. बंगाल की बेटियां मुजफ्फरपुर में एक अनूठी पहल करने जा रही हैं. पं. बंगाल से प्रकाश हलधर के नेतृत्व में महिलाओं का जत्था नौ अगस्त को यहां पहुंच रहा है. यह 11 अगस्त को शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा जाकर खुदीराम बोस की शहादत दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे, लेकिन इससे पूर्व नो अगस्त को रक्षाबंधन के दिन बंगाल की बेटियां खुदीराम बोस स्मारक स्थल जाकर शहीद खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को राखी बांधेंगी. ऐसा पहली बार होगा, जब दोनों शहीदों को राखी बांध कर शहीद के प्रति प्रेम को अर्पित किया जायेगा. इसको लेकर वहां की बेटियां काफी उत्साहित हैं. मेदिनीपुर और सिलदा की अन्य बेटियां भी यहां आने वाली टीम को राखियां दे रही हैं. प्रकाश हलधर के नेतृत्व में आ रहा जत्था शहीद खुदीराम बोस को प्रेरणापुंज मानने वाले प्रकाश हलधर 1995 से हर वर्ष 11 अगस्त को यहां आकर खुदीराम बोस को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. इस बार भी कई लोगों के साथ यहां पहुंच रहे हैं. इनके नेतृत्व में यहां बंगाल की कई बेटियां भी आ रही हैं. जो खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगी. राखी बांधने की यह पहल न केवल शहीदों के प्रति सम्मान का प्रतीक है, बल्कि यह देश की एकता और अखंडता का भी संदेश देती है. यह बताता है कि कैसे बंगाल की संस्कृति और परंपराएं, मुजफ्फरपुर की ऐतिहासिक भूमि से जुड़कर एक नई मिसाल कायम कर रही है. यह पहल आने वाली पीढ़ियों को भी शहीदों के बलिदान से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करेगी. यह राखी केवल धागों का बंधन नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और देशभक्ति का अटूट बंधन होगा मुजफ्फरपुर खुदीराम बोस की कर्मभूमि खुदीराम बोस की कर्मभूमि मुजफ्फरपुर रही है, स्वतंत्रता संग्राम का पहला बम धमाका खुदीराम बोस ने ही किया था. कंपनीबाग में जज किंग्सफोर्ड को मारने के लिये खुदीराम बोस ने 30 अप्रैल 1908 को बम फेंका था, उस समय उनकी उम्र मात्र 18 वर्ष थी. पूसा से खुदीराम बोस को गिरफ्तार किया गया था और 11 अगस्त, 1908 में सेंट्रल जेल में उनको फांसी दे दी गयी थी. खुदीराम बोस सिर्फ शहीद नहीं, बल्कि एक प्रेरणा और गौरव के प्रतीक हैं. उनके प्रति लोगों की भावनाएं आज भी उतनी ही जीवंत हैं, जितनी 117 साल पहले थीं
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