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भीषण गर्मी के कारण गाय-भैंस और बकरी के दूध उत्पादन में 5 % तक की गिरावट… 

हीट स्ट्रोक से पशुओं में भारी तनाव, लंगड़ा, स्मॉल पॉक्स तथा गला घोंटू रोग अधिक हो जा रहा है.

अनुज शर्मा, मुजफ्फरपुर

भीषण गर्मी के बीच सिर्फ़ इंसान ही परेशान नहीं हैं, बल्कि गर्मी का असर पशुओं पर भी पड़ रहा है.  उत्तर बिहार के तिरहुत और दरभंगा प्रमंडल में दूध उत्पादन में करीब पांच प्रतिशत तक की कमी आई है. जिसका कारण डेयरी पशुओं (गाय, भैंस, बकरी ) में अधिक तापमान से तनाव का बढ़ना है.  गर्मी का यह असर दूध उत्पादन में गिरावट तक ही सीमित नहीं है. दुधारू पशुओं में हाई फीवर आदि गर्मी जनित रोग भी बढ़ गया है. दो फीसदी पशुओं की फर्टिलिटी (गर्भाधान) भी प्रभावित हुई है. सरकार हर साल इन दोनों प्रमंडल में 121.28 लाख पशुओं का टीकाकरण कराती है. इस संख्या के हिसाब से करीब 2.42 लाख पशु तनाव में हैं. गर्मी जनित बीमारी से जूझ रहे हैं. बड़े डेयरी संचालक इस तनाव के असर को कम करने, पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए शेड में पंखे और कूलर तक लगा रहे हैं.

मुजफ्फरपुर के सरैयागंज टॉवर चौक के पास एक दुकान पर रस्सी को लेकर दुकानदार से मोलभाव कर रहे बबलू राय बताते हैं कि पशुओं के डॉक्टर ने सलाह दी है कि भैंसों को जंजीर में न रखें. गर्मी बहुत पड़ रही है. जंजीर की जगह मुलायम रस्सी से उनको बांधें. गर्मी से पशुओं पर क्या असर पड़ा है ? इस सवाल के जवाब में वह कहते हैं ” उनकी एक भैंस आठ लीटर से सीधे पांच लीटर दूध पर आ गयी है.

चारा भी कम खा रही है. थोड़ा आक्रामक हो गयी है ” . बबलू के साथ आये एक अन्य किसान कहते हैं कि वह अपने पशुओं को दो से तीन बार नहला रहे हैं. टीन शेड के ऊपर बोरा डाला है उसे दो से तीन घंटे में गीला कर शेड के तापमान को नियंत्रित रखने की कोशिश कर रहे हैं. ” गर्मी के ऐसे मौसम में पशुओं की देखभाल करना बहुत मुश्किल है. दुधारू पशु पर्याप्त भोजन नहीं कर रहे हैं.

दूध उत्पादन में करीब पांच प्रतिशत की गिरावट आई है. ” सीतामढ़ी के जिला गव्य विकास पदाधिकारी जितेन्द्र कुमार बताते हैं. कुमार पर शिवहर और मुजफ्फरपुर जिला का भी प्रभार है. एक अन्य अधिकारी के मुताबिक  मधुबनी, सीतामढ़ी और पूर्वी चंपारण में दुग्ध उत्पादन सबसे अधिक घटा है. राज्य के कुल दूध उत्पादन में इन तीनों जिलों की भागीदारी 16.1 फीसदी के करीब है. यहां भैंसों की संख्या अधिक है. गर्मी से गाय के मुकाबले भैंस अधिक प्रभावित हुई हैं.

सरकारी डेयरी को होने वाली आपूर्ति में 50 हजार लीटर से अधिक की कमी
तिरहुत और दरभंगा प्रमंडल में 3393 हजार टन के करीब दूध का सालाना उत्पादन होता है. यानि प्रत्येक माह का औसतन दुग्ध उत्पादन 282.80 हजार टन मान लिया जाये तो तिरहुत और दरभंगा प्रमंडल में 5 फीसदी के हिसाब से 14.14 हजार टन दूध की गिरावट हुई है. मुजफ्फरपुर और उससे सटे आधा दर्जन जिलों में सुधा डेयरी के लिए दूध संग्रहण (खरीद) करने वाली कोर टीम के सदस्य अवधेश कुमार बताते हैं कि अभी 2.6 लाख लीटर दूध ही मिल पा रहा है. करीब 50 से 60 हजार लीटर दूध घटा है. यह गिरावट मुजफ्फरपुर में 20 हजार लीटर की है. सीतामढ़ी में करीब 10 हजार लीटर की है. किसी जिला में यह संख्या 7 हजार है. सुधा के अलावा अन्य डेयरी के आंकड़ों को भी जोड़ लें तो उत्पादन में गिरावट लाखों लीटर में पहुंच जाती है.

एडवाइजरी जारी, नोडल ऑफिसर नियुक्त
आईसीएआर-राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के निदेशक डॉ. धीर सिंह ने भी सभी राज्यों को आगाह किया है. एक अधिकारी ने बताया कि एनडीआरआई की एडवाइजरी के बाद बिहार सरकार द्वारा सभी जिलों को पशुधन की सुरक्षा के लिए आवश्यक उपाय करने के साथ आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं. पशुपालन विभाग द्वारा तिरहुत और दरभंगा प्रमंडल में जिला स्तर पर नोडल अधिकारी भी नियुक्त किए जा रहे हैं.

भारी तनाव, लंगड़ा, स्मॉल पॉक्स तथा गला घोंटू रोग अधिक
राज्य में पशुओं की सेहत ठीक रहे यह दायित्व सरकार ने पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान बिहार को दे रखा है. इसके पूर्व निदेशक डॉ सुनील वर्मा का कहना है कि हीट स्ट्रोक से पशुओं में भारी तनाव, लंगड़ा, स्मॉल पॉक्स तथा गला घोंटू रोग अधिक हो जा रहा है. दूध के उत्पादन में भी भारी कमी देखी जा रही है. जैसी सूचनाएं मिल रही हैं उसके अनुसार कहीं तीन तो कहीं छह फीसदी तक यह गिरावट है. ” उन्हें हाइड्रेटेड रहना चाहिए, इसलिए जानवरों को हमेशा ताजा और साफ पानी उपलब्ध होना चाहिए. उचित छाया- चाहे प्राकृतिक हो, जैसे पेड़ों द्वारा प्रदान की गई हो, या शेड में, जानवरों के शरीर के तापमान को बनाए रखने में मदद करती है. उन्हें दिन के ठंडे हिस्सों, जैसे सुबह या देर शाम के दौरान अधिक बार खिलाया जाना चाहिए. ” डॉ. वर्मा ने सलाह दी.

दूध उत्पादन में 5 फीसदी तक की गिरावट

पशु वे सुस्त और निष्क्रिय हो जाते हैं. वे अक्सर अपने सिर को नीचे झुकाकर खड़े रहते हैं. ऐसा लगता है मानो वह श्वसन दर और शरीर के तापमान में वृद्धि दिखा रहे हों. उन्हें अधिक पसीना आता है, और ये लक्षण चारा सेवन को कम करते हैं, दूध उत्पादन कम करते हैं और डेयरी पशुओं में गर्भधारण दर कम करते हैं. दूध उत्पादन में 5 फीसदी तक की गिरावट आई है. गर्भाधान क्षमता में दो फीसदी की कमी देखने को मिल रही है. बीमार पशुओं का आंकड़ा भी बढ़ा है.
डॉ अरुण कुमार,  चिकित्सक सह वरिष्ठ पदाधिकारी, पशुपालन विभाग

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RajeshKumar Ojha
Senior Journalist with more than 20 years of experience in reporting for Print & Digital.

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