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कभी कचरों से जैविक खाद का मॉडल बना था शहर, प्रोजेक्ट हुआ बंद

कभी कचरों से जैविक खाद का मॉडल बना था शहर, प्रोजेक्ट हुआ बंद

गरीबनाथ मंदिर में चढ़ा फूल और बेलपत्र दादर में किया जा रहा डंप

पूसा केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय से दोबारा करार नहीं होने पर बढ़ी समस्या

उपमुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर

गरीबनाथ मंदिर में चढ़ाये गये फूल और बेलपत्र से खाद उत्पादन में गरीबनाथ मंदिर कभी अन्य जिलों के लिये मॉडल बना था. यहां की तर्ज पर दूसरे जिलों में भी मंदिर से निकले हुए कचरे से खाद बनाने की तैयारी शुरू की गयी थी, लेकिन मॉडल बनने वाले शहर में ही कचरे से जैविक खाद का उत्पादन बंद हो गया. इससे कचरा को डंप किया जाना बड़ी समस्या बन गयी है. गरीबनाथ मंदिर का कचरा फिलहाल दादर स्थित गरीबनाथ मंदिर न्यास की जमीन पर डंप किया जा रहा है, लेकिन सावन में कचरे की मात्रा इतनी अधिक हो रही है कि कचरा को डंप करना समस्या बन गयी है. पहले हर सप्ताह यहां से पूसा केंद्रीय विश्वविद्यालय कचरों का उठाव का जैविक खाद का निर्माण करता था. इस खाद की बिक्री होती थी और डिमांड भी काफी थी, लेकिन अब खाद का निर्माण बंद है. पूसा कृषि विश्वविद्यालय ने मंदिर से दोबारा करार नहीं किया है, जिस कारण कचरे को डंप करना पड़ रहा है.

रोज होता था एक सौ किलो खाद का उत्पादन

गरीबनाथ मंदिर के कचरे से रोज एक सौ किलो खाद का उत्पाद होता था. खाद बनाने की प्रकिया में इसमें 100 किलो गोबर मिलाया जाता है. फिर केंचुआ छोड़ा जाता है. करीब 100 किलो खाद रोज बनाया जाता था. बाजार में यह 700 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खाद की बिक्री होती थी. यह खाद दो और पांच किलो के पैकेट में तैयार होता था. इससे विश्वविद्यालय की आय होती थी, लेकिन पिछले साल से खाद का उत्पादन बंद है. पर्यावरण संरक्षण के लिये यह एक अच्छी पहल थी. गरीबनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पं. विनय पाठक ने कहा कि मंदिर के कचरे से जैविक खाद का निर्माण एक अच्छी पहल थी. पूसा केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से मंदिर के कचरे से जैविक खाद बना करता था, लेकिन दोबारा एग्रीमेंट नहीं होने के कारण अब मंदिर में चढ़े फूल और बेलपत्र को डंप किया जा रहा है. सावन में कचरों की मात्रा बहुत हो रही है. इससे डंप करने में परेशानी हो रही है.

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