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आंबेडकर जयंती पर विशेष : कम संसाधन, बड़ी उड़ान, दलित ऑइकन बना रहे बड़ी पहचान

आंबेडकर जयंती पर विशेष साहित्य वो हथियार है जिससे समाज की दशा-दिशा बदली जा सकती है. दलित युवा राकेश प्रियदर्शी ने भी कुछ ऐसी राह चुनी है. वह बताते हैं कि बचपन में ही मां के निधन हो जाने के कारण मेरा जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा.

आंबेडकर जयंती पर विशेष डॉ भीमराव आंबेडकर ने एक समता और सम्मानपूर्ण समाज का सपना देखा था. आज कई युवा अपने संघर्ष और सफलता से साकार कर रहे हैं. समाज के उन तबकों से आने वाले ये युवा, जिन्हें लंबे समय तक हाशिये पर रखा गया, आज अपनी मेहनत, लगन और प्रतिभा से न सिर्फ अपने लिए राह बना रहे हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन रहे हैं.

शिक्षा, नौकरियों, कारोबार, कला, खेल या सामाजिक बदलाव, हर क्षेत्र में दलित युवाओं की यह नयी पीढ़ी डॉ आंबेडकर के विचारों को ज़मीन पर उतारती दिख रही है. आंबेडकर जयंती के अवसर पर हम उन चेहरों को सामने ला रहे हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी पहचान बनायी और अब समाज के लिए ”रोल मॉडल” बन चुके हैं.

खुद बने ब्यूरोक्रेट्स, भाई को भी दिलायी सफलता

बिहटा प्रखंड स्थित सदीसोपुर गांव के दो सगे दलित भाइयों कुंदन कुमार और मनीष कुमार की संघर्षों से भरी और प्रेरणादायक जीवन यात्रा पर बिल्कुल सटीक बैठती है. दलित समाज से आने वाले इन युवकों ने कठिन परिस्थितियों के बावजूद अपनी मेहनत, लगन और आत्मविश्वास से एक ऐसा मुकाम हासिल किया, जो समाज के तमाम युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है.

कुंदन कुमार, जो वर्तमान में पश्चिम चंपारण जिले में अंचल अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं, ने बिहार लोक सेवा आयोग की 66वीं संयुक्त परीक्षा में सफलता प्राप्त की. उनके छोटे भाई मनीष कुमार भी इसी राह पर चलते हुए 69वीं बीपीएससी परीक्षा में चयनित होकर श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी के रूप में बिपार्ड, गया में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं.

इनकी बहन प्रीति कुमारी भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटी हैं. इन तीनों की यह यात्रा आसान नहीं रही. इनके पिता, स्वर्गीय अरविंद कुमार, टाइल्स और मार्बल का कार्य कर परिवार का गुजारा करते थे. 2021 में कोविड काल के दौरान उनका देहांत हो गया, जिससे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा.

आर्थिक तंगी पहले से ही थी, ऊपर से पिता की मृत्यु ने हालात और भी मुश्किल बना दिए. मां उमरावती देवी, एक साधारण गृहिणी होने के बावजूद, बच्चों को आगे बढ़ाने का हौसला नहीं खोया. दोनों भाइयों ने सेल्फ स्टडी को हथियार बनाया और कठिन परिश्रम से सफलता हासिल की. इनकी प्रारंभिक शिक्षा सदीसोपुर के सरकारी विद्यालय में हुई और आगे की पढ़ाई पटना के कॉमर्स कॉलेज से पूरी की गयी.

दलित साहित्य पर छोड़ रहे गहरी छाप, युवाओं को दिखा रहे राह

साहित्य वो हथियार है जिससे समाज की दशा-दिशा बदली जा सकती है. दलित युवा राकेश प्रियदर्शी ने भी कुछ ऐसी राह चुनी है. वह बताते हैं कि बचपन में ही मां के निधन हो जाने के कारण मेरा जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा. बचपन से ही मैं पढ़ने में काफी मेधावी रहा. नौकरी से पूर्व दस वर्षों तक ट्यूशन पढ़ाकर मैंने अपना जीवनयापन किया. कविताएं मैं पांचवी क्लास से ही लिखता रहा, पर ,मेरी पहली कविता 1990 में छपी.

उसके बाद मेरी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगातार छपती रहीं. मेरी कविताएं हंस, कथादेश, दलित साहित्य आदि बड़ी पत्रिकाओं में भी छपी हैं. अपने 35 वर्षों के साहित्यिक जीवन में मुझे साहित्य की दुनिया की अच्छी खासी समझ है. इतने वर्षों में मैं मात्र एक काव्य संग्रह ‘ इच्छाओं की पृथ्वी के रंग’ के नाम से छपवा पाया. साहित्य की दुनिया में काफी राजनीति है. साहित्य की दुनिया में कई स्वर्ण साहित्यकारों ने मेरी मदद की.

1999 में मेरी नियुक्ति बिहार विधान परिषद में हुई ,जहां आज तक मैं कार्यरत हूं . इससे मेरी आर्थिक स्थिति तो ठीक -ठाक हो गयी, लेकिन साहित्य की दुनिया में जो राजनीति है, उससे मैं काफी उपेक्षित महसूस करता हूं. मेरी कोशिश रहती है कि दलित युवाओं का साहित्य के माध्यम से पुर्नजागरण होता रहे.

न्याय दिलाने में मदद, शिक्षा के लिए भी मुहिम

रूपसपुर अभिमन्यू नगर नहर रोड जलालपुर के रहने वाले शान कुमार भी दलित समुदाय से है. इनके पिता दसवीं पास थे. उनकी चाहत थी कि बेटा उनसे ज्यादा पढ़े. बेहतर रिजल्ट आने के बाद उन्होंने समुदाय को न्याय दिलाने का सपना देखा. इसके लिए उन्होंने लॉ की पढ़ाई करने के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी साउथ बिहार में लॉ किया.

यहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद अभी वह पटना हाइकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं. वह बताते हैं कि अब तक दलित समुदाय ऐसे कई लोगों का केस लड़ रहे हैं, जिनके पास फीस देने का पैसा नहीं होता है.

उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर उज्जवल शिक्षा फाउंडेशन संस्था की स्थापना की. इसके तहत वह मुसहर और दलित समुदाय के पास जाकर जागरूकता अभियान चलाते हैं. विभिन्न जिलों में बीआर आंबेडकर स्कूल में अब तक 35 से अधिक दलित बच्चों का दाखिला कराया गया है.

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RajeshKumar Ojha
RajeshKumar Ojha
Senior Journalist with more than 20 years of experience in reporting for Print & Digital.

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