Bihar Chunav 2025: बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है. विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही दल-बदल, बयानबाज़ी और गठबंधन की गोटियां फिर से बिछाई जा रही हैं. इस बार सियासी शतरंज के केंद्र में हैं वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) प्रमुख मुकेश सहनी, जो महागठबंधन से 60 सीटों की मांग कर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा चुके हैं.
लेकिन इस डील का होना आसान नहीं लग रहा. ऐसे में सवाल उठने लगा है—क्या सहनी एक बार फिर पाला बदलेंगे? या 2020 की गलती से सबक लेंगे?
संतोष सुमन का ‘खुला ऑफर’: NDA में लौट आएं सहनी
‘हम’ पार्टी के अध्यक्ष और मंत्री संतोष कुमार सुमन ने इस मौके को भांपते हुए बड़ा बयान दिया है. उन्होंने सहनी को खुला न्योता देते हुए कहा—“अगर मुकेश सहनी एनडीए में आना चाहते हैं, तो उनका खुले दिल से स्वागत होना चाहिए.” सुमन ने न सिर्फ यह दावा किया कि एनडीए ही उनके समाज का भला कर सकता है, बल्कि यह भी जोड़ा कि “निषाद समुदाय अब एनडीए की विकासोन्मुखी विचारधारा के साथ खड़ा है और सहनी को भी उसी धारा में बहना चाहिए.”
क्या महागठबंधन में सम्मान नहीं मिल रहा सहनी को?
सुमन ने अपने बयान में यह भी संकेत दिया कि सहनी महागठबंधन में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. “जहां सम्मान और अवसर नहीं मिल रहा, वहां रुकना ठीक नहीं,”—उनकी यह टिप्पणी राजनीतिक पटल पर एक स्पष्ट संदेश देती है कि सहनी की नाराज़गी गहराई तक है. खासतौर पर जब वो 60 सीटों की मांग कर रहे हों, जो महागठबंधन के लिए मानना मुश्किल लगता है.
NDA की रणनीति: निषाद वोट बैंक को साधने की कोशिश
संतोष सुमन का यह बयान यूं ही नहीं आया. यह दरअसल एनडीए की 2025 विधानसभा चुनाव को लेकर बन रही रणनीति का हिस्सा भी है, जिसमें निषाद समुदाय को फिर से अपने पाले में लाने की कवायद दिख रही है. सहनी की वापसी न सिर्फ निषाद वोट बैंक को मजबूत कर सकती है, बल्कि पूर्वांचल के कई जिलों भोजपुर, कैमूर, रोहताह और बक्सर में असर भी दिखा सकती है.
सहनी की अगली चाल क्या होगी?
सियासत में रिश्ते कभी स्थायी नहीं होते और बिहार की राजनीति तो इसकी मिसाल है. मुकेश सहनी पहले भी एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं, लेकिन 2022 में उन्होंने गठबंधन से नाता तोड़ लिया था. अब दोबारा उसी गठबंधन में लौटने की संभावना बन रही है, लेकिन फैसला खुद सहनी को लेना है.
क्या वो पिछली नाराज़गियों को भूलकर सुमन के प्रस्ताव को स्वीकार करेंगे? या महागठबंधन में रहकर अपनी शर्तों पर लड़ने का जोखिम उठाएंगे? फिलहाल, मुकेश सहनी की राजनीतिक दिशा पर सबकी निगाहें टिकी हैं