Bihar News: बिहार के भागलपुर का मशहूर कतरनी चावल अब देश ही नहीं, विदेशों में भी अपनी खुशबू, स्वाद और मुलायमपन के लिए जाना जा रहा है. खास बात ये है कि इस चावल को जीआई टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग) मिल चुका है, जिससे इसकी मांग और कीमत दोनों में अच्छी बढ़ोतरी हुई है. पहले इस खास किस्म के चावल की खेती सिर्फ 500 एकड़ जमीन पर होती थी, लेकिन अब ये आंकड़ा बढ़कर 3000 एकड़ तक पहुंच गया है. इससे अब किसानों की आमदनी में भी बढ़ोतरी हुई है.
पहले त्योहारों तक था सीमित
कुछ साल पहले तक कतरनी चावल और इससे बना चूड़ा केवल त्योहारों और खास मौकों पर बिकता था. किसानों को न तो सही दाम मिलते थे, न ही बाजार. इसी वजह से बहुत कम किसान इसकी खेती करते थे. लेकिन, अब जीआई टैग मिलने के बाद से हालात बदले हैं. अब किसान कतरनी चावल की खेती में दिलचस्पी ले रहे हैं. पहले यह चावल सिर्फ 500 एकड़ में उगाया जाता था लेकिन, अब इसकी खेती 3000 एकड़ तक पहुंच गई है और इसकी कीमत भी अच्छी मिल रही है. साथ ही बाजार भी बड़ा हुआ है. इससे किसानों को अच्छा मुनाफा हो रहा है और इलाके की आर्थिक स्थिति भी बेहतर हो रही है.
किसानों की बढ़ी कमाई
सरकार और कृषि विभाग ने किसानों को अच्छे बीज दिए, खेती के नए तरीके सिखाए और बाजार से जोड़ने में मदद की. इसका असर साफ दिख रहा है. पहले कतरनी चावल की कीमत 60–80 रुपये प्रति किलो थी, जो अब बढ़कर 150 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है. इससे किसानों की आमदनी में भी बड़ा सुधार हुआ है.
क्या है कतरनी चावल की खासियत ?
कतरनी चावल की खासियत की बात करें तो, इसकी खुशबू और मिठास इसे खास बनाती है. चावल बहुत मुलायम होता है और खीर बनाने के लिए सबसे बेहतर माना जाता है. इससे बना चूड़ा इतना नरम होता है कि बिना भिंगोए ही खाया जा सकता है.
भागलपुर का ही कतरनी चावल क्यों है फेमस ?
वैज्ञानिकों की माने तो, भले ही कतरनी चावल की पैदावार कई जगहों पर होती है. लेकिन, भागलपुर के कतरनी चावल की खुशबू और स्वाद एकदम अलग ही होती है. इसकी वजह यह बताई जाती है कि, भागलपुर में काली दोमट मिट्टी में इसकी पैदावार की जाती है, जिसके कारण यहां के करतनी चावल में एक अलग ही स्वाद आता है. अब कतरनी चावल सिर्फ एक अनाज नहीं, बल्कि एक ब्रांड बन चुका है. किसान खुश हैं क्योंकि उन्हें बाजार और पैसा दोनों मिल रहे हैं.
(मानसी सिंह की रिपोर्ट)