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Bihar News: सिर्फ निगम नहीं… हमरा भी लक्ष्य हो ‘जीरो वेस्ट सिटी’ हम सबकी भागीदारी से ही स्वच्छ बनेगा पटना

Bihar News: पटना नगर निगम ‘स्वच्छता’, ‘अपशिष्ट प्रबंधन’ और ‘पर्यावरण संरक्षण’ के क्षेत्र में लगातार सुधार की दिशा में काम कर रहा है. आधुनिक तकनीकों और योजनाबद्ध तरीके से राजधानी को स्वच्छ व सुंदर बनाने का प्रयास जारी है. ‘स्वच्छ सर्वेक्षण 2024–25’ में पटना को थ्री स्टार रेटिंग और देशभर में 21वीं रैंकिंग मिली है, जो नगर निगम की प्रतिबद्धता को दर्शाती है. हालांकि, यह प्रयास तब तक पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सकता जब तक शहरवासी सक्रिय भागीदारी न निभाएं. यह जानना महत्वपूर्ण है कि हर व्यक्ति औसतन प्रतिदिन लगभग 600 ग्राम ठोस कचरा उत्पन्न करता है. इस बढ़ते कचरे का उचित प्रबंधन तभी संभव है, जब हम सभी स्वच्छता को अपनी जिम्मेदारी समझें.

हिमांशु देव/ Bihar News: पटना नगर निगम स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में लगातार बेहतर काम कर रहा है. स्वच्छ सर्वेक्षण 2024–25 में पटना को थ्री स्टार रेटिंग और देशभर में 21वीं रैंकिंग मिली है, जो नगर निगम की प्रतिबद्धता को दर्शाती है. शहर से प्रतिदिन लगभग 1000 से 1200 टन ठोस कचरा निकलता है, जिसे वैज्ञानिक तरीके से प्रोसेस किया जाता है. रामचक बैरिया में स्थापित आधुनिक संयंत्र में गीले और सूखे कचरे को अलग किया जाता है. वहीं, 514 करोड़ की एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (आइएसडब्ल्यूएम) परियोजना से अब कचरे से बिजली, खाद और गैस बनाने की योजना है, जिससे शहर को ऊर्जा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनाया जा सकेगा. इस बीच, ‘नमामि गंगे’ अभियान के ब्रांड एंबेसडर के रूप में शुभम कुमार को चुना गया है, जो युवाओं को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने की एक अहम पहल है.

75 वार्डों से हटाये गये हैं 658 कूड़ा प्वाइंट

शहर के 75 वार्डों से 658 कूड़ा प्वाइंट को समाप्त किया है. वहीं, वर्तमान में प्रतिदिन 1000 से 1200 टन नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (एमएसडब्ल्यू) उत्पन्न करता है. यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति लगभग 450 से 600 ग्राम कचरा उत्पादन के बराबर है. इस कचरे में मुख्य रूप से जैविक अपशिष्ट, पुनर्चक्रण योग्य सामग्री (कागज, प्लास्टिक, कांच, धातु) और अन्य वस्तुएं शामिल हैं. रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक पटना का दैनिक कचरा उत्पादन 1537 टन तक पहुंच सकता है.

चार साल में स्वच्छता रैंकिंग में 52.27% का उछाल

पटना ने स्वच्छता सर्वेक्षण में लगातार बेहतरीन प्रदर्शन किया है. शहर 2021 में 44वें स्थान पर था, जो 2022 में 38वें, 2023 में 25वें और 2024 में 21वें स्थान पर पहुंच गया है. इस अवधि में पटना की रैंकिंग में 52.27% का उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया गया है. वहीं, पटना ने इस साल नागरिक फीडबैक श्रेणी में चौथा स्थान प्राप्त किया. हालांकि, अभी और सुधार की गुंजाइश है. कई मोहल्लों में कचरा वाहन प्रतिदिन नहीं पहुंचता है, जिससे लोग घरों के छत से सड़क पर कचरा गिरा देते हैं.

गंगा सफाई में अपना योगदान दे रहे शुभम

शहर में सफाई अभियान चला रहे शुभम कुमार को नमामि गंगे का ब्रांड एंबेसडर बनाया जायेगा. इसी सप्ताह इसकी आधिकारिक सूचना जारी कर दी जायेगी. दरअसल, शुभम बिंग हेल्पर फाउंडेशन के संस्थापक है. उन्होंने बोतल फॉर ट्री प्रोटेक्शन अभियान के तहत प्लास्टिक बोतलों को कूड़े से संसाधन में बदला. जिसके चलते 2.6 लाख से अधिक बोतलों से ट्री गार्ड बनाया व करीब 50 हजार पौधों की सहज सिंचाई और सुरक्षा सुनिश्चित हुई. साथ ही, गंगा घाटों पर सात वर्षों से हर रविवार सफाई अभियान और महिलाओं के लिए 44 ड्रेस चेंजिंग रूम की स्थापना की.

डीबीफोट मोड पर कचरे से बनेगी बिजली

नगर निगम ने 514.59 करोड़ रुपये की लागत से एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजना शुरू की है, जो पीपीपी मोड पर लागू हो रही है. इसमें 1600 टन प्रतिदिन क्षमता की सुविधा विकसित हो रही है. परियोजना में 15 मेगावाट का वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट, 700 टीपीडी का कम्पोस्ट संयंत्र, 100 टीपीडी बायो-मीथनेशन और 325 टीपीडी का स्वच्छ लैंडफिल शामिल है. साथ ही, 3 एमआरएफ केंद्र और एक 50 टीपीडी पुनर्चक्रण यूनिट भी बन रही है. निगम अकेले 80% कचरा दे रहा है. डीबीफोट मोड पर 22 साल 6 महीने की अवधि में यह परियोजना संचालित होगी.

580 टन गीले कचरे का बनाया जा रहा खाद

पटना नगर निगम के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन विशेषज्ञ अरविंद कुमार ने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले 360 टन सूखे कचरे को मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी में छांटकर रीसाइक्लिंग योग्य सामानों को बेचता है, जबकि बचे का उपयोग सीमेंट संयंत्रों में किया जाता है. वहीं, 580 टन गीले कचरे को ओडब्ल्यूसी मशीनों और कंपोस्टिंग विधियों से संसाधित कर खाद बना जा रहा है, जिसका उपयोग पौधरोपण और बिक्री के लिए होता है. निर्माण और विध्वंस (सीएंडडी) से निकलने वाले 50 टन कचरे को वर्गीकृत कर रीसाइक्लिंग संयंत्र में ईंट, एग्रीगेट्स और पत्थरों में बदला जाता है, जो नागरिक कार्यों में पुनः उपयोग होते हैं. जबकि, 18 टन घरेलू खतरनाक कचरा और 7 टन स्वच्छता खतरनाक कचरे को एजेंसी के सहयोग से सुरक्षित रूप से निपटाया जाता है.

अपशिष्ट प्रबंधन के लिए 12 आरआरआर सेंटर की हुई स्थापना

निगम ने वेस्ट टू वंडर अभियान के तहत कचरा प्रबंधन और शहर की सुंदरता को बढ़ाने के लिए करीब 70 टन धातु और निर्माण स्क्रैप का उपयोग करके आकर्षक कलाकृतियां बनायी गयी हैं. इसमें जलीय जीव, जानवर व पक्षियों की विशाल मूर्तियां शामिल हैं. ये कलाकृतियां शहर के विभिन्न हिस्सों में स्थापित की गयी हैं. इसके अलावे 12 रिड्यूस, रीयूज, रीसायकल (आरआरआर) सेंटर स्थापित किए हैं. इन सेंटरों पर नागरिक प्लास्टिक, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स और किताबें जैसी अनुपयोगी वस्तुओं को दान कर सकते हैं. दान की गई वस्तुओं को फिर से उपयोग या रीसायकल किया जाता है, जिससे लैंडफिल में जाने वाले कचरे की मात्रा कम होती है और नागरिकों में पर्यावरण-अनुकूल आदतों को बढ़ावा मिलता है.

ऐसे होता है कचरा प्रबंधन

जैविक अपशिष्ट: रसोई का कचरा, सब्जियां, फल, फूल आदि.
पुनर्चक्रण योग्य अपशिष्ट: कागज, प्लास्टिक, कांच, धातु आदि.
अन्य अपशिष्ट: इसमें निर्माण मलबा, चिकित्सा अपशिष्ट और अन्य गैर-पुनर्चक्रण योग्य सामग्री शामिल हैं.

पटनाइट्स ध्यान दें- सूखे व गीले कचरे को ऐसे रखें अलग-अलग

नगर निगम की ओर से लोगों से अपील की जा रही है कि वे सूखे व गीले कचरे को अलग-अलग रखें, ताकि उसका निपटारा करने में परेशानी न हो. ऐसा करने से शहर में साफ सफाई की व्यवस्था बेहतर हो सकती है.

  1. गीला कचरा : हरे कलर के डस्टबिन में रसोई का कचरा, फल के छिलके, सड़े फल, सब्जी, बचा भोजन, अंडे के छिलके आदि को डालना होता है.
  2. सूखा कचरा : नीले रंग के डस्टबिन में डायपर, सेनेटरी नैपकिन, पट्टियां, टिशू पेपर, रेजर, प्रयोग में लाई हुई सिरिंज, ब्लेड, स्लाइन की बोतलें आदि को कागज में लपेटकर सूखे कचरे वाले डस्टबिन में डालना होता है.
  3. रीयूज्ड कचरा : रिसाइक्लिंग होने वाले पदार्थ जैसे प्लास्टिक, बोतलें, कागज, कप, प्लेट, पैकेट, डिब्बे, बॉक्स, पुराने कपड़े आदि को अलग डस्टबिन में डालें.

आरआरआर से समझे वेस्ट मैनेजमेंट का तरीका

R (रीयूज) : किसी भी चीज को बेकार समझ कर ना फेंकें.हर चीज का फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है. बस इसमें क्रिएटिविटी करने की जरूरत है.
R (रिड्यूस) : आप अगर सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद कर दें और इसकी जगह पर्यावरण फ्रेंडली उत्पादों का इस्तेमाल करें जैसे कपड़े या जूट का थैला, कागज के लिफाफे आदि.
R ( रीसायकल ) : ऐसे चीजें जिन्हें रिसाइकिल किया जा सकता है. इन चीजों में लोहा, एलुमिनियम, कांच, टाइल्स, कपड़ा आदि है. -मनीष कुमार की रिपोर्ट

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Radheshyam Kushwaha
Radheshyam Kushwaha
पत्रकारिता की क्षेत्र में 12 साल का अनुभव है. इस सफर की शुरुआत राज एक्सप्रेस न्यूज पेपर भोपाल से की. यहां से आगे बढ़ते हुए समय जगत, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान न्यूज पेपर के बाद वर्तमान में प्रभात खबर के डिजिटल विभाग में बिहार डेस्क पर कार्यरत है. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते है. धर्म, राजनीति, अपराध और पॉजिटिव खबरों को पढ़ते लिखते रहते है.

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