मनोज कुमार/ Bihar Politics: पटना. बिहार विधानसभा चुनाव की आहट शुरू हो गयी है. दलितों का नेता बनने और उनको अपने पाले में करने के लिए पार्टियां जुट गयी हैं. जदयू, भाजपा कई कार्यक्रमों और योजनाओं से दलितों में पैठ बनाने की कोशिश में है. राजद, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने की बहस को हवा देकर दलित वोटरों को अपने पक्ष में करने के मुहिम में लगी हुई है. कांग्रेस ने राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर दलित आधारित राजनीति शुरू की है. एनडीए में शामिल लोजपा आर और हम पार्टी के बीच दलितों का नेता बनने की तकरार शुरू हो गयी है. दलित राजनीति का सिंहासन खाली मानकर सभी इस पर विराजमान होने की रेस में जुट गये हैं.
1977 के बाद कांग्रेस का आधार वोट खिसका
बिहार में दलित वोटर कभी कांग्रेस के आधार मतदाता माने जाते थे. 1977 के बाद कांग्रेस का दलित आधार दरक गया. बाबू जगजीवन राम ने कांग्रेस छोड़ दी. आरक्षित सीटों पर कांग्रेस के दो विधायक ही जीत पाये. दलित आंदोलन नयी राह देखने लगे. मंडल कमीशन के बाद पिछड़ी जाति से आने वाले नेताओं की बिहार की राजनीति में धमक बढ़ी. नब्बे के दशक में दौर बदल गया. लालू प्रसाद का उभार हुआ. बिहार में पिछड़ों के साथ दलितों का गठजोड़ हो गया. लालू प्रसाद ने खुद को दलितों के नेता के रूप में प्रोजेक्ट किया. राजद के 15 साल के शासन के बीच में ही लालू प्रसाद का चारा घोटाला में नाम आया. 2000 के बाद तेजी से राजनीतिक समीकरण बदलने लगे. राजनीति में प्रयोग शुरू हुए. राजनीति पिछड़ा व अतिपछड़ा केंद्रित हो गयी. उस दौर में रामविलास पासवान सरीखे नेता थे. मगर, उनकी छवि पासवान नेता के रूप में ज्यादा उभरी.
पिछड़ों के साथ जुड़ गया दलित आंदोलन
कांग्रेस के विरोध में 1977 में बनी सरकार की विफलता और फिर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने आरक्षित सीटों पर वापसी जरूर की . तब अविभाजित बिहार में 48 सीटें आरक्षित थीं. इसमें 1980 में 24 और 1985 में कांग्रेस ने 33 सीटें जीत लीं. मगर, ये जीत अस्थायी थी. 1980 की जीत जनता सरकार की असफलता और 1985 की जीत में इंदिरा गांधी की हत्या से उमड़ी सहानुभूति जुड़ी हुई थी. 1985 के बाद कांग्रेस की ओर दलितों के पूर्व की तरह जुड़ने के संकेत नहीं मिले. यह दौर सामाजिक बदलाव से गुजर रहा था. दलित आंदोलन नयी राह देखने लगे. दलितों में वर्गीकरण देखा जाने लगा. कई जगहों पर दलितों का आंदोलन पिछड़ों के साथ जुड़ गया.
2020 के चुनाव में आरक्षित सीटों पर दलों में कड़ी टक्कर
परिसीमन के बाद राज्य में दो एसटी और 38 एससी के लिए आरक्षित सीटे रह गयी हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में इनमें जदयू को सात और भाजपा को 11 आरक्षित सीटों पर जीत मिली थीं. कांग्रेस को पांच, राजद को नौ, माले को तीन और सीपीआई को एक सीट पर जीत मिली थी. हम पार्टी तीन सीटों पर जीती थी. वीआइपी से भी एक उम्मीदवार आरक्षित सीट पर जीता था.