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Bihar Politics: कांग्रेस के आइने में जातियों का अक्स, एक समावेशी नेतृत्व की तलाश

Bihar Politics: विधानसभा चुनावों की दस्तक के साथ ही सियासी गलियारों में हलचल तेज है और कांग्रेस इस बार अपने पुराने ढर्रे से अलग एक नये सामाजिक ताने-बाने को बुनने में लगी है. कांग्रेस पार्टी की रणनीति साफ है. ऐसा "आइना" गढ़ा जाये, जिसमें जब राज्य का कोई भी मतदाता झांके तो उसे अपनी जाति, अपने समाज का प्रतिनिधित्व करता चेहरा नजर आये.

Bihar Politics: पटना. कांग्रेस पार्टी की यह रणनीति न सिर्फ जातिगत समीकरणों की समझदारी दिखाती है बल्कि यह भी बताती है कि कांग्रेस अब पुराने “एक नेता, एक वोट बैंक” के युग से आगे निकलकर “हर जाति, हर क्षेत्र, हर वर्ग” की सहभागिता वाले मॉडल को अपना रही है. कांग्रेस नेतृत्व जानता है कि आज का मतदाता न सिर्फ विकास चाहता है बल्कि वह यह भी देखना चाहता है कि उसकी जाति और समुदाय को राजनीतिक पहचान और सम्मान कितना मिला है.

बहुस्तरीय रणनीति पर हो रहा काम

पार्टी एक बहुस्तरीय रणनीति पर काम कर रही है. जिसमें ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, कायस्थ जैसे उच्च जातियों के बीच पहले से स्थापित नेताओं को पुनः सक्रिय किया जा रहा है, तो वहीं पिछड़ी जातियों में यादव, कुशवाहा, बनिया, सोनार जैसे समूहों से नयी पीढ़ी के नेताओं को तराशने की कोशिश की जा रही है.

नवसंवेदनशील राजनीति

कांग्रेस की यह ‘नवसंवेदनशील राजनीति’ सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है. अत्यंत पिछड़ा वर्ग जैसे मल्लाह, नाई, प्रजापति, धानुक, चंद्रवंशी, बढ़ई, नोनिया के भीतर नेतृत्व का नया आधार तैयार किया जा रहा है. यही नहीं, पसमांदा मुस्लिम समुदाय जिसे अब तक राजनीतिक रूप से हाशिए पर समझा जाता रहा, उसमें से भी कांग्रेस नेता खोज रही है, जो स्थानीय स्तर पर विश्वसनीय हों और जनभावनाओं को आवाज दे सकें.

हर क्षेत्र पर फोकस

पार्टी के सूत्र बताते हैं कि नेतृत्व तय करने में अब बड़े नाम ही नहीं बल्कि जमीनी पकड़ और सामाजिक समीकरणों का समन्वय भी देखा जा रहा है. फेस वैल्यू से आगे बढ़कर कांग्रेस अब कम्युनिटी कनेक्ट पर फोकस कर रही है. कोशिश है कि हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व हो . उत्तर बिहार से लेकर मगध, कोसी, चंपारण और सीमांचल तक और हर प्रतिनिधि अपने समुदाय की नब्ज को समझे.

दोहरी जीत पर कर रही काम

कांग्रेस इस प्रयास से दोहरी जीत की उम्मीद कर रही है. एक तरफ जातीय प्रतिनिधित्व के जरिए समुदायों का भरोसा जीतना तो दूसरी ओर संगठन के भीतर नये नेतृत्व की पौध तैयार करना. इससे पार्टी न सिर्फ चुनावी समीकरण साधेगी बल्कि दीर्घकालीन सामाजिक आधार भी मजबूत करेगी.

राह नहीं आसान

हालांकि यह राह आसान नहीं है. जातियों के भीतर आपसी प्रतिस्पर्धा, पहले से स्थापित नेताओं की असुरक्षा और नये चेहरों की स्वीकार्यता जैसे कई सवाल अब भी चुनौती बने हुए हैं. लेकिन कांग्रेस की यह पहल यह संकेत देती है कि वह खुद को महज एक चुनावी मशीन नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन की प्रयोगशाला के रूप में देखना चाहती है. जहां हर जाति को न सिर्फ जगह मिले बल्कि सम्मान और भविष्य की संभावना भी. इस बार कांग्रेस सिर्फ सत्ता नहीं समावेशिता का जनादेश मांगने उतरेंगी. पार्टी एक ऐसा राजनैतिक आइना बने जिसमें हर चेहरा अपनी जगह पा सके.

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