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सात दिन के सीएम से सियासत के किंग बने नीतीश, अटल-आडवाणी के एक फैसले ने रचा था बिहार की राजनीति का भविष्य

Bihar Politics: बिहार की सियासत में नीतीश कुमार एक ऐसा नाम बन चुके हैं, जो सत्ता के समीकरणों को तय करने की ताकत रखते हैं. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि कभी सिर्फ 7 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने नीतीश, कैसे राजनीति के शिखर पर पहुंच गए. यह कहानी सिर्फ सत्ता की नहीं, बल्कि रणनीति, समय और अटल-आडवाणी जैसे दिग्गजों के फैसलों की भी है, जिसने नीतीश को बिहार की सियासत का 'किंग' बना दिया.

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार आज जिस मुकाम पर हैं, उसके पीछे एक लंबी कहानी और कुछ ऐतिहासिक फैसले छिपे हैं. 2000 में सिर्फ सात दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार उस वक्त भले ही सत्ता नहीं बचा पाए, लेकिन वही सात दिन उनके पूरे राजनीतिक करियर की दिशा तय कर गए. यह फैसला उस दौर में भारतीय राजनीति के दो दिग्गज- अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का था, जिसे आज कई लोग बीजेपी की “सबसे बड़ी भूल” भी कहते हैं.

अटल-आडवाणी ने नीतीश को बनाया ‘नेता’

1990 के दशक में नीतीश कुमार एक क्षेत्रीय नेता के तौर पर उभर रहे थे. वे समता पार्टी के प्रमुख चेहरा थे, जो उस समय बीजेपी की सहयोगी पार्टी थी. 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू यादव के चारा घोटाले में फंसने के बाद राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई थी.

चुनाव में किसी भी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. आरजेडी 124 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, वहीं बीजेपी ने 67 और नीतीश कुमार की समता पार्टी ने 34 सीटें हासिल कीं. एनडीए गठबंधन को कुल 151 विधायक मिले, जबकि लालू के पास 159 विधायक थे. इस पेचीदा स्थिति में बीजेपी के पास अधिक सीटें होने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया.

सात दिन का मुख्यमंत्री और राजनीति में नया अध्याय

नीतीश कुमार 3 मार्च 2000 को मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनके पास बहुमत नहीं था. उन्होंने सात दिन बाद ही 10 मार्च को इस्तीफा दे दिया. हालांकि यह कार्यकाल बहुत छोटा था, लेकिन इसने उन्हें ‘पूर्व मुख्यमंत्री’ का तमगा दिला दिया और राज्य की राजनीति में उनकी छवि को स्थायित्व दे दिया. इस एक फैसले ने उन्हें बिहार की राजनीति के किंगमेकर से किंग बना दिया.

2005: सत्ता की वापसी और जेडीयू का उदय

2005 तक बिहार दो राज्यों में विभाजित हो चुका था और विधानसभा सीटों की संख्या घटकर 243 रह गई थी. समता पार्टी का जेडीयू में विलय हो गया था. इस बार नीतीश कुमार जेडीयू के नेतृत्व में चुनाव में उतरे. जेडीयू ने 88 और बीजेपी ने 55 सीटें जीतीं, और एनडीए ने बहुमत हासिल किया. नीतीश कुमार ने फिर मुख्यमंत्री पद संभाला, और इस बार उन्होंने अपने विकास मॉडल से जनता का भरोसा जीता.

2010: विकास पुरुष की छवि और जबरदस्त जीत

2010 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार की लोकप्रियता चरम पर थी. जेडीयू ने 141 में से 120 सीटें जीत लीं और बीजेपी सिर्फ 50 पर सिमट गई. यह दौर नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर का शिखर था, जहां उन्होंने न सिर्फ अपने गठबंधन को मजबूत किया, बल्कि राज्य में अपनी साख को भी स्थापित किया.

2014: मोदी युग की शुरुआत और रिश्तों में दरार

2014 में नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में आगमन के साथ ही नीतीश कुमार और बीजेपी के रिश्तों में खटास आ गई. नीतीश ने एनडीए से नाता तोड़ लिया, लेकिन बाद में परिस्थितियों के अनुसार दोबारा गठबंधन किया और फिर अलग भी हुए. उसके बाद फिर भाजपा के साथ आकर आज सरकार में हैं. नीतीश कुमार की राजनीति को देखकर कहा जा सकता है कि वह सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं, जो समय के साथ न केवल खुद को ढालना जानते हैं, बल्कि हालात को भी अपने पक्ष में मोड़ लेते हैं.

क्या बिहार की राजनीति आज कुछ और होती?

अब जबकि बिहार एक बार फिर चुनाव की ओर बढ़ रहा है, सवाल उठता है कि क्या बीजेपी नीतीश कुमार के साथ अपने पुराने रिश्तों को दोहराएगी या इस बार पूरी तरह अपने दम पर सत्ता का रास्ता तलाशेगी. एक बात तो साफ है अगर अटल-आडवाणी ने 2000 में नीतीश कुमार पर दांव नहीं खेला होता, तो आज बिहार की राजनीति शायद कुछ और होती.

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Abhinandan Pandey
Abhinandan Pandey
भोपाल से शुरू हुई पत्रकारिता की यात्रा ने बंसल न्यूज (MP/CG) और दैनिक जागरण जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अनुभव लेते हुए अब प्रभात खबर डिजिटल तक का मुकाम तय किया है. वर्तमान में पटना में कार्यरत हूं और बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को करीब से समझने का प्रयास कर रहा हूं. गौतम बुद्ध, चाणक्य और आर्यभट की धरती से होने का गर्व है. देश-विदेश की घटनाओं, बिहार की राजनीति, और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि रखता हूं. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स के साथ प्रयोग करना पसंद है.

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