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Bihar Red Light Area: बिहार की रेड लाइट एरिया की महिलाएं अब बन गईं उद्यमिता की मिसाल, खोइछा से बदल रहीं हैं अपनी पहचान

Bihar Red Light Area: कभी जिन गलियों को सिर्फ 'रेड लाइट एरिया' कहा जाता था, आज वहीं से आत्मनिर्भरता की रौशनी निकल रही है. मुजफ्फतपुर के चतुर्भुज स्थान की महिलाएं, जिन्हें समाज ने वर्षों तक नजरअंदाज किया, अब अपने हुनर से खोइछा बनाकर न सिर्फ रोज़गार कमा रही हैं, बल्कि परंपरा और सम्मान की नई कहानी भी लिख रही हैं. यह सिर्फ बदलाव नहीं, क्रांति है—सुई, धागा और आत्मविश्वास से बुनी गई क्रांति!"

Bihar Red Light Area: कभी जो समाज की हाशिये पर थीं, आज वे ही महिलाएं बिहार के चतुर्भुज स्थान में आत्मनिर्भरता और सम्मान की नई इबारत लिख रही हैं. जहां कभी ‘रेड लाइट’ शब्द उनके नाम के साथ चिपका होता था, आज वही महिलाएं ‘जुगनू रेडीमेड ग्रुप’ के जरिए अपने हुनर से खुद को ही नहीं, पूरे समाज की सोच को बदल रही हैं. अब न कोई पहचान पूछता है, न अतीत टटोलता है—बस देखा जाता है उनका हुनर, उनके हाथों की कलाकारी और उनके बनाए खोइछा का सौंदर्य.

नई पहचान की ओर बढ़ते कदम

2021 में शुरू हुआ ‘जुगनू रेडीमेड ग्रुप’ अब नारी स्वावलंबन का प्रतीक बन चुका है. इस समूह से जुड़ी महिलाएं अब कपड़ों की कतरनों से खूबसूरत खोइछा, पूजा सामग्री, साड़ी और बैग जैसे उत्पाद बना रही हैं.

जरीना (बदला हुआ नाम) बताती हैं— “अब कोई नहीं पूछता हम कौन हैं. जो सामान पसंद आता है, लोग खरीदते हैं और चले जाते हैं.” इनकी बनाई खोइछा आज आकांक्षा मेला से लेकर नवरात्रि के पूजा पंडालों तक डिमांड में हैं.

खोइछा: रिश्तों और समृद्धि का प्रतीक

बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में खोइछा का सांस्कृतिक महत्व गहरा है. मायके से ससुराल जाते वक्त या किसी शुभ अवसर पर सुहागिनों को धान, हल्दी, सुपारी और पैसे से भरा खोइछा देना शुभ माना जाता है.
अब यह परंपरा इन महिलाओं के रोज़गार और आत्मनिर्भरता का माध्यम बन चुकी है.जरीना (बदला हुआ नाम) बताती हैं “जब हमारी मिट्टी से देवी प्रतिमा बन सकती है, तो हमारी बनाई खोइछा क्यों नहीं शुभ हो सकती?” अब ये महिलाएं 50 से ज़्यादा डिज़ाइनों में खोइछा बना रही हैं, जिनकी डिमांड बिहार, झारखंड और बंगाल तक फैल चुकी है.

खोइंछा हो रहा पॉपुलर

नसीमा खातून कहती हैं कि हमने सोचा क्यों नहीं हम पारम्परिक खोइंछा बनाकर उसे डिजाइनर रूप दें. शुरुआत में बड़े कपड़े की सिलाई के बाद बचे कपड़ों के कतरन से हमने बनाना शुरू किया. लोगों ने पसंद किया और मांग बढ़ी तो अब अलग कपड़ा लाकर बनाते हैं. अब यहां बने खोइछे की मांग आस-पास के जिलों में होने लगी है.

मुजफ्फरपुर के रेड लाइट एरिया की महिलाओं का बनाया यह डिजाइनर खोइछा बेटी-बहुओं का मान बढ़ा रहा है अब तो इस डिजाइनर खोइछा की मांग राज्य के बाहर भी होने लगी है. इस इलाके की 20 से अधिक महिलाएं जुगनू से जुड़े हैं. जो अन्य कपड़ों के साथ डिजायनर खोइछा भी बना रही हैं.

आकांक्षा योजना से मिली नई उड़ान

रेड लाइट इलाकों की इन महिलाओं को मुख्यधारा में लाने का श्रेय जिला प्रशासन को भी जाता है. ‘आकांक्षा योजना’ के तहत इन्हें सिलाई, कढ़ाई, डिज़ाइनिंग और मार्केटिंग का प्रशिक्षण दिया गया. अब ये महिलाएं खुद उत्पादन, बिक्री और वितरण का कार्य कर रही हैं. शबनम खातून कहती हैं—”पहले पर्दे के पीछे रहते थे, अब लोग हमारी बनाई चीज़ों की तारीफ करते हैं.”

महिलाओं के बनाए उत्पाद जैसे बैग, पूजा थाली, साड़ियां, सूट और खोइछा अब ‘आकांक्षा हाट’ जैसे आयोजनों में बिकते हैं. डीएम सुब्रत कुमार सेन के अनुसार— “यह पहल ‘लोकल फॉर वोकल’ के तहत ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक सशक्तीकरण और सामाजिक गरिमा प्रदान करने की दिशा में मील का पत्थर है.”

बिहार के मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान से निकली इन महिलाओं की कहानी सिर्फ रोजगार की नहीं, एक मानसिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव की कहानी है. रेड लाइट एरिया की पहचान अब आत्मनिर्भरता, हुनर और सम्मान में बदल चुकी है. जिन्हें कभी समाज ने छुपा दिया था, आज वही समाज उन्हें गौरव से देख रहा है.

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Pratyush Prashant
Pratyush Prashant
कंटेंट एडिटर और शोधकर्ता . लाड़ली मीडिया अवॉर्ड विजेता. जेंडर और मीडिया में पीएच.डी. . हिंदी अखबारों और पत्रिकाओं में नियमित लेखन . यूथ की आवाज़, वूमेन्स वेब आदि में लेख प्रकाशित.

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