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सावधान: दिल के मर्ज से जूझ रहा बचपन

दिल की बीमारी अब सिर्फ बड़े लोगों को नहीं हो रही, छोटे-छोटे बच्चे भी इस गंभीर परेशानी से जूझ रहे हैं.

आनंद तिवारी, पटनादिल की बीमारी अब सिर्फ बड़े लोगों को नहीं हो रही, छोटे-छोटे बच्चे भी इस गंभीर परेशानी से जूझ रहे हैं. पिछले एक साल में पटना समेत पूरे बिहार में 12 हजार 500 से ज्यादा बच्चों में अलग-अलग तरह के हृदय रोग मिले हैं. सबसे ज्यादा मामले बच्चों के दिल में छेद और वॉल्व में खराबी के सामने आये हैं. कुछ बच्चों की धड़कन भी सामान्य से काफी तेज पायी गयी है. इन बच्चों की पहचान राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के तहत इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान (आइजीआइसी), आइजीआइएमएस और जिलों में लगे चार स्क्रीनिंग कैंपों में हुई. डॉक्टरों का कहना है कि समय रहते इलाज हो, तो बच्चों की जान बचायी जा सकती है. जिन बच्चों के दिल में छोटा छेद पाया जाता है, उसे डिवाइस बटन से बंद किया जा रहा है. लेकिन, अगर छेद बड़ा हो, तो सर्जरी जरूरी हो जाती है.

मां की लापरवाही या जानकारी की कमी भी जिम्मेदार

डॉक्टरों के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान बिना डॉक्टरी सलाह के दवा लेना, धूम्रपान, गलत खानपान और स्वास्थ्य जांच न कराना इसके पीछे की बड़ी वजह है. बच्चे का दिल गर्भ में छठे हफ्ते में ही धड़कने लगता है. ऐसे में अगर मां या परिवार में कोई दिल का मरीज है, तो फीटल इको टेस्ट जरूर कराना चाहिए. इससे पहले ही पता चल सकता है कि बच्चे को दिल से जुड़ी कोई दिक्कत है या नहीं. आइजीआइसी के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ एनके अग्रवालकहते हैं कि जन्मजात हृदय रोग को नजरअंदाज करना ठीक नहीं है. समय पर जांच और इलाज से बच्चे की जिंदगी बच सकती है.

ये लक्षण दिखें तो रहें सतर्क

शरीर का सामान्य रूप से विकास न होनासांस लेने में परेशानी और छाती में बार-बार संक्रमण

ज्यादा पसीना आना और धड़कन तेज होनाथकान, वजन न बढ़ना और शरीर में सूजन

होंठ और नाखून नीले पड़नाबेहोशी के दौरे, नाखूनों का आकार बदलना

कोट

हृदय रोग से पीड़ित बच्चों की पहचान के लिए नियमित शिविर लगाये जा रहे हैं. जरूरत पड़ने पर ऐसे बच्चों को निःशुल्क इलाज के लिए बाहर भेजा जा रहा है.

-डॉ बीके सिंह, नोडल पदाधिकारी, (आरबीएसके), आइजीआइसी

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