शशिभूषण कुंवर, पटना बिहार की राजनीति में इन दिनों एक अलग ही खिचड़ी पक रही है. महागठबंधन की रसोई में सीटों का मसाला पूरी तरह तैयार तो नहीं हुआ है, पर ज्यादातर व्यंजन बन चुके हैं. कुछ सीटों पर अब भी सियासी उबाल बाकी है. इस बीच कांग्रेस ने अपनी चालें तेज कर दी हैं और वह भी एकदम खामोशी से. बिहार में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे महागठबंधन की सियासी पटकथा रोचक होती जा रही है. कांग्रेस की यह खामोश चाल क्या उसे सियासत की शतरंज में मात से बचा पायेगी . सूत्रों की मानें, तो कांग्रेस ने 58 विधानसभा सीटों पर अपनी तैयारियों की बिसात बिछा दी है. पर्दे के पीछे से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और महासचिव केसी वेणुगोपाल ने अपनी टीम को मैदान में उतार दिया है. हर एक सीट पर एक-एक अनुभवी ऑब्जर्वर की तैनाती कर दी गयी है, जो जल्द ही अपने-अपने क्षेत्रों में कमान संभालेंगे. मजेदार बात यह है कि ये सभी ऑब्जर्वर ””गुप्त एजेंट”” की तरह काम कर रहे हैं. इनका तो नाम जारी कर दिया गया है, पर न इनका चेहरा, न ही उनका लोकेशन बताया गया है. सब कुछ पूरी तरह गोपनीय है. ऐसे तरीके से कांग्रेस अंदर से पूरी तरह एक्टिव हो चुकी है. माना जा रहा है कि जैसे ही महागठबंधन में सीटों का ””धुंध”” साफ होगा, कांग्रेस के ये ऑब्जर्वर सीधे चुनावी रणभूमि में उतरेंगे. 2020 के विधानसभा चुनाव की कड़वी यादें कांग्रेस को अब भी टीस देती हैं. तब 70 सीटें मिली थीं , लेकिन जीत मिली सिर्फ 19 पर. नतीजा यह हुआ कि महागठबंधन सत्ता की देहरी तक पहुंचकर भी अंदर नहीं जा सका. राजद ने उस हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ते हुए दो टूक कह दिया था कि ज्यादा सीटें मिलीं, पर काम कुछ नहीं किया. यही वजह है कि इस बार कांग्रेस ज्यादा सीटों की मांग में नहीं उलझी है. उसने शुरुआती तौर पर 58 सीटों पर ही अपने सिपाहियों को तैनात किया है. इन सिपाहियों की खासियत यह है कि अधिकतर बिहार से बाहर के नेता हैं. अनुभवी, रणनीतिकार और संगठन को समझने वाले हैं. फिलहाल ये सभी नेता अपने-अपने क्षेत्रों में जाने की तैयारी में हैं, लेकिन तब तक नहीं जब तक सीटों का औपचारिक एलान न हो जाये. टिकट किसे मिलेगा ये भी कांग्रेस खुद तय करेगी. न कोई दबाव, न कोई दिखावा.
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