Exclusive: जूही स्मिता/पटना. गेम इंडस्ट्री में हाल के वर्षों में हुए बिक्री के आंकड़ों को देखे तो इसमें काफी बढ़ोतरी आयी है. ऑनलाइन गेम खेलने वालों की तादाद बढ़ रही है. ऊपरी तौर पर देखने से ये महज आंकड़े लगते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं. पिछले कुछ वर्षों में गेम इंडस्ट्री का स्वरूप जिस ढंग से बदला है, वह चिंताजनक है. मौजूदा समय में 85 प्रतिशत गेम हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं. हिंसा आधारित गेम्स की लोकप्रियता भी खासी ज्यादा है. इसका असर यह है कि बच्चों और किशोरों में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ रही है. सामान्य गेम्स खेलने वाले बच्चों के मुकाबले हिंसा आधारित गेम खेलने वालों बच्चे के दो गुना झगड़े होते हैं. पिछले साल राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के एक सर्वे रिपोर्ट आयी थी. यह सर्वे जुलाई से अगस्त 2024 में किया गया था. इस सर्वे में ऑनलाइन गेम खेलने में बिहार देश भर में पहले स्थान पर है.
राज्य के 78.65 फीसदी किशोर खेलते हैं ऑनलाइन गेम
राज्य के 78.65 फीसदी किशोर ऑनलाइन गेम खेलते हैं, इसमें सबसे ज्यादा सात साल से 17 साल आयुवर्ग के बच्चे शामिल थे. यह बच्चे 24 घंटे में सात से आठ घंटे इसमें समय बिताते हैं. देश भर में दूसरे स्थान पर यूपी और महाराष्ट्र था. इन दोनों राज्याों के 75 फीसदी बच्चे ऑनलाइन गेम खेलते हैं. ज्यादा खेले जाते है हिंसक गेम- सामान्य खेलों के मुकाबले ऐसे गेम्स, जिनमें किसी दुश्मन या फिर किसी को मारना होता है, उनकी पहुंच ज्यादा होती है. युवा इन खेलों की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं. शीर्ष खेलों में 10 से 9 स्थानों पर ऐसे ही खेल है. जाहिर है कि ज्यादा खेले जाने का इन गेम्स में पैसा भी है. इसी वजह से गेम्स बनाने वाली कंपनियां ऐसे खेलों पर ज्यादा ध्यान देती है. ब्लू व्हेल चुनौती, चोकिंग गेम, गैलर चुनौती, दालचीनी चुनौती, टाइड पॉड चुनौती, अग्नि परी, मरियम का खेल, पांच उंगली पट्टिका, पबजी, लीग ऑफ लिजेंड, डोटा 2, एपेक्स लिजेंड जैसे दर्जनों खेल शीर्ष खेलों की किसी सूची में आपको नजर आ जायेंगे.
ऑनलाइन खेलों में हिंसा ज्यादा
गेम्स की दुनिया का एक सच यह भी है कि ऑफ लाइन खेलों के मुकाबले ऑनलाइन खेलों में हिंसा ज्यादा है. मल्टी प्लेयर खेलों में अपनी जगह बनाने, किसी को मारने, किसी जगह को तबाह करने जैसे टारगेट होते हैं और इनमें समयसीमा भी होती है. इस वजह से बच्चों की इनमें दिलचस्पी ज्यादा होती है. अपने प्रतिद्वंदी को हराकर उन्हें आत्मसंतोष की प्राप्ति होती है.
हथियारों के प्रति बढ़ जाता है प्रेम
हिंसक गेम्स खेलने वाले बच्चों को हथियार के प्रति प्रेम बढ़ जाता है. गेम्स के विभिन्न स्टेज में आधुनिक बंदूकों से लेकर लड़ाकू विमानों और टैंक तक की जानकारी दी जाती है. बच्चे इन्हें चलाते हैं और एक-दूसरे से इनके बारे में बातचीत भी करते हैं.
इन खेलों से उत्पन्न होती है कई सारी समस्याएं
अनिद्रा- खेलों का टारगेट पूरा न करने वालों में अनिद्रा आम समस्या है. टारगेट पूरा करने के लिए रात-रात भर गेम खेलते हैं बच्चे. यहां तक खाने पर भी ध्यान नहीं देते.
गुस्सा- ऑनलाइन गेम्स में हार-जीत के बाद आसपास कोई नहीं होता, इसलिए बच्चे अपनी हार से गुस्सेल होते चले जाते हैं.
झगड़े- शोध के मुताबिक ऑनलाइन हिंसक गेम्स खेलने वाले बच्चों के अपने अन्य साथियों से झगड़े ज्यादा होते हैं.
तनाव- बच्चे गेम्स को लेकर तनाव में रहते हैं. अपने साथियों से बर्ताव ठीक नहीं रहता, हर बात पर तीखी प्रक्रिया देते हैं.
सामाजिक विलगाव- ऐसे बच्चों को लगता है कि हर बात का इलाज सिर्फ हिंसा है. वे खुद को दूसरों से अलग कर लेते हैं. लोगों और सामाजिक समारहों से दूरी बना लेते हैं. अपनी दुनिया में रहना पसंद करते हैं.
चीखना-चिल्लाना- हिंसक गेम्स खेलने वाले बच्चे शोर के आदी होते है, वे हर वक्त चीख कर अपनी बात साबित करना चाहते है.
ऑनलाइन क्लासेज की बात कर बच्चे ग्रुप में खेल रहे गेम्स
कोरोना के बाद से हर बच्चे के हाथों में आज मोबाइल फोन है. ऑनलाइन क्लासेज की बात कर बच्चे ग्रुप में गेम्स खेल रहे हैं. गेम्स खेलने के मामले पिछले एक साल में बढ़े हैं और यह अधिकांश 8-18 साल के बच्चे होते हैं. अभी के पैरेंट्स वर्किंग है और वह खुद ज्यादा समय फोन पर रहते हैं. कोशिश करें बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं और उनके दिनचर्या पर भी ध्यान दें. अगर उनके बर्ताव में कुछ बदलाव दिखे तो इस पर बात करें. मोबाइल इस्तेमाल को लेकर समय निर्धारण करें और जरूरत पड़ने पर एप लॉक रखें.
डॉ बिंदा सिंह,क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट
केस 1- पुनाईचक की रहने वाली प्रिया(काल्पनिक नाम) कक्षा दसवीं की छात्रा है. पिछले तीन साल लगातार वीडियो गेम खेल रही है. हाल ही में उसने लीग ऑप लिजेंड खेलना शुरू किया. जिसके बाद उसके बर्ताव में बदलाव आने लगा. हर वक्त अपनी छोटी बहन को मारना, मां से दुर्व्यवहार, स्कूल में टीचर और फ्रेंड्स से ऊंचे आवाज में बात करने लगी. गेम खेलने से मना करने पर खुद को कमरे में बंद कर लेती थी. काउंसेलिंग में उसे एंगर मैनेजमेंट थेरेपी और इनसाइट ओरिएंटेड थेरेपी दी जा रही है.
केस 2- अनुज(काल्पनिक नाम) कक्षा सतावीं में फेल हो गया. फेल होने का कारण लगातार पबजी गेम खेलना था. खुद को रूम में बंद कर गेम खेलते वक्त आवाजे निकालता था. गुस्सा करना, लोगों से दूरी बनाना उसकी आदत हो गयी थी. कई बार उसकी वजह से माता-पिता में झगड़ा भी होता था. काउंसेलिंग में सबसे पहले माता-पिता को फैमिली थेरेपी दी गयी उसके बाद बच्चे की काउंसेलिंग जारी है.
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