Exclusive: जूही स्मिता. मोबाइल रील्स… यानी एक से डेढ़ मिनट का शॉर्ट वीडियो. इन्हें देखते-देखते और बनाते-बनाते कब घंटों गुजर जाते हैं, पता ही नहीं चलता. सोशल मीडिया पर कुछ मिनटों की रील्स बनाने के चक्कर में लोगों की जिंदगी खत्म हो रही है. फिर भी लोग इससे सबक नहीं ले पा रहे हैं. रील बनाने की शुरुआत टिकटॉक ऐप से शुरू हुई, लेकिन भारत में टिकटॉक के बंद होने के बाद लोग फेसबुक और इंस्टाग्राम पर हर तरह के रील डालने लगे. जल्दी पॉपुलर बनना, ज्यादा से ज्यादा लोगों की नजर में आना और लोगों के बीच में अपनी फैन फॉलोइंग बढ़ाना, ये सभी आजकल युवाओं को आकर्षित करने के बड़े कारण बनते जा रहे हैं. यही वजह है कि आजकल युवा वर्ग में रील्स बनाने का चलन तेज़ी से बढ़ा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में औसतन हर भारतीय रोज 40 मिनट रील देखता है. देश की मौजूदा रील इंडस्ट्री करीब 45000 करोड़ रुपए से ज्यादा की है. 2030 तक इंडस्ट्री के 1 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है. 2019 से 24 के बीच रील्स इंडस्ट्री का ग्रोथ 42 फीसदी रहा है.
हर दिन युवा पीढ़ी हादसे के हो रही शिकार
- जनवरी 2025- पटना जिले के बाढ़ रेल थाना क्षेत्र के अंतर्गत अथमलगोला दक्षिणीचक रेल गुमटी के पास रील बनाने के चक्कर में तीन युवक मालगाड़ी से टकराकर जख्मी हो गये थे.
- सितंबर 2024- पटना सिटी में दमड़िया घाट पर पेड़ पर सेल्फी ले रहा युवक गंगा में बह गया था.
- सितबंर 2024- बेतिया के नदी में तीन दोस्त रील बना रहे थे, जिसमें दो डुब गए थे.
- अगस्त 2024- मोतिहारी में रील बनाने के चक्कर में तीन दोस्त ट्रक से टकराने के बाद मौत हो गयी थी.
- जून 2024- आरा में गंगा दशहरा में रील बनाने के चक्कर में डुबकर मौत हो गयी थी.
- दिसंबर 2022- मरीन ड्राइव में स्टंट के दौरान बाइक सवार और उसकी दोस्त की जान चली गयी.
नोट- इस तरह के ना जाने कितने मामले है जो पूरे देश में होते रहते हैं. इनसे सबक लेने के बजाय लाइक्स और सब्सक्राइब करवाने के चक्कर में युवा बिना सोचे-समझे रिस्क ले रहे हैं. जरूरत है एक बाउंड्री सेट करने की. जिसमें घर, समाज और शैक्षणिक संस्थानों को जिम्मेदारी लेनी होगी.
रील बनाने के साइड इफेक्ट्स
- रील बनाना एक लत है. रिस्क टेकिंग फैक्टर बढ़ा है.
- अपनों से दूर हो जाना और उनके साथ टाइम स्पेंड न करना.
- वर्चुअल वर्ल्ड में ज्यादा समय बिताने के चलते रियल लाइफ में कॉन्फिडेंस कम हो जाता है. चार लोगों के बीच उठने-बैठने में परेशानी होती है, जिससे डिप्रेशन भी हो जाता है.
- रील्स बनाने और देखने के चलते कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम्स भी हो रही हैं.
- रील्स का प्रयोग इतना बढ़ गया है कि बच्चे का ब्रेन सोने और जागने के टाइम में फर्क नहीं कर पा रहा.
- जो लोग रील्स को घंटों स्क्रोल करते हुए देख रहे हैं, उनमें अंगूठे में टेढ़ापन, दर्द, जॉइंट ब्रेक होने की शिकायतें भी हो रही हैं. कई बार अंगूठे में कापल टर्नल सिंड्रोम भी हो जाता है. जिसमे आपका अंगूठा मुड़ना बंद कर देता है.
- मोबाइल का ज़्यादा प्रयोग करने से इंसोम्निया, स्लीप डिसऑर्डर, एंग्ज़ाइटी की समस्या और स्ट्रेस भी काफी बढ़ गया है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट और क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट
साइकेट्रिस्ट डॉ अर्चना सिंह बताती हैं कि आज की जेनरेशन मोबाइल के साथ बड़े हो रहे हैं. रिएलिटी और वर्चुएलिटी की बीच के अंतर समझना होगा. रील्स के माध्यम से युवा खुद को ऐसा प्रोजेक्ट करते है, जिसमें वह खुद को देखना चाहते जो कि असल जिंदगी में वह नहीं होते हैं. ऐसा नहीं है कि रील्स में क्रिएटिविटी नहीं है लेकिन अटेंशन पाने के लिए युवा रिस्क ले रहे हैं. अभी के समय में युवाओं में सोशल मीडिया एडिक्शन, फियर ऑफ मिसिंग आउट जैसे मामले बढ़े हैं. रिस्क लेते वक्त केमेकिल डोपामाइन रिलिज होता है. एक बार जब यह रिलिज होता है तो आप दुबारा से रिस्क लेते हैं. विभिन्न स्टडी के अनुसार 70-75 प्रतिशत युवाओं में रील्स और सोशल मीडिया के प्रॉब्लमेटिक मामले बढ़े हैं. वहीं एडिकेशन के 50 प्रतिशत मामले हैं.
जरूरी है स्कूलों में मेंटल हेल्थ प्रोग्राम और अभिभावकों के बीच जागरुकता कार्यक्रम कराने की
सोशल मीडिया तकनीकी एक्सपर्ट शंभु सुमन बताते हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पॉपुलर होने का आसान तरीका है. पहली बार नजर में आने के लिए युवा हर रिस्क लेना चाहते हैं. इसके लिए वह पैसे खर्च करने से भी नहीं चुंकते हैं. कुछ अलग कर अपनी पहचान बनाने के लिए रोड, नदी, रेलवे सहित कई रिस्क वाली जगहों पर रील बनाते हैं जो सही नहीं है. रील और रीयल लाइफ के बीच फर्क नहीं कर पा रहे हैं. यहां तक की वह तकनीक के गलत इस्तेमाल करने लगते हैं.