Famous Sweets Of Bihar: बिहार के सारण जिले के एकमा प्रखंड का आम ढाढ़ी गांव इन दिनों अपनी अनोखी मिठास को लेकर चर्चा में है. इस गांव की पहचान किसी मंदिर, मेले या ऐतिहासिक धरोहर से नहीं, बल्कि एक खास मिठाई से है पेड़ा. यहां की हर मिठाई की दुकान पर सिर्फ पेड़ा ही मिलता है, और यही इस गांव की सबसे बड़ी खासियत बन चुकी है.
हर दिन बिकता है 50 किलो से ज्यादा पेड़ा
गांव की हर गली में जब पेड़े की खुशबू हवा में घुलती है, तो इसका असर दूर-दराज से आए ग्राहकों पर भी होता है. हर दिन यहां की दुकानों से 50 किलो से ज्यादा पेड़ा बिक जाता है. स्वाद ऐसा कि एक बार खाने वाला फिर लौटकर ज़रूर आता है.
आम ढाढ़ी गांव में पहले केवल एक दुकान पेड़ा बनाती थी, लेकिन मांग इतनी बढ़ गई कि आज गांव में दर्जनों दुकानें केवल पेड़ा ही बेचती हैं. कोई रसगुल्ला या लड्डू नहीं, सिर्फ पेड़ा. यह परंपरा यहां की सांस्कृतिक पहचान बन गई है, जो अब पीढ़ी दर पीढ़ी चलती जा रही है.
शुद्धता और सेहत का संगम
यह पेड़ा ताजे गाय-भैंस के दूध से बनाया जाता है, जिसे धीमी आंच पर पकाकर खोवा तैयार किया जाता है. फिर उसमें हल्की मात्रा में चीनी, इलायची और बादाम मिलाकर स्वादिष्ट पेड़ा तैयार होता है. कम चीनी की वजह से यह न केवल स्वादिष्ट बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी माना जाता है.
जेब पर हल्का, स्वाद में भारी
पेड़े की कीमत भी आम लोगों की पहुंच में है 360 रुपया प्रति किलो या 10 रुपया प्रति पीस. इस दाम पर मिलने वाली गुणवत्ता, शुद्धता और स्वाद ही इसे खास बनाते हैं. शादी-ब्याह, पूजा-पर्व या यूं ही किसी सफर के दौरान लोग इसे ज़रूर साथ ले जाते हैं.
दादा-परदादा से चली आ रही मिठास
गांव के प्रसिद्ध दुकानदार अंगद कुमार बताते हैं कि यह परंपरा उनके दादा-परदादा के समय से चली आ रही है. वे आज भी पेड़ा बनाते वक्त सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखते हैं. अंगद मुस्कुराते हुए कहते हैं, “जो एक बार खा लेता है, वह दोबारा ज़रूर आता है.”
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आश्चर्य की बात यह है कि यह पेड़ा केवल बिहार में ही नहीं, विदेशों तक भी पहुंच चुका है. गांव से गुजरने वाले यात्री इसे पैक करवा कर ले जाते हैं, और विदेशों में रहने वाले प्रवासी भी इसे स्वाद की याद के तौर पर अपने साथ ले जाते हैं. (मानसी सिंह)