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जुड़ शीतल : पहला बैशाख पर चूल्हे को आराम, बासी खाकर तालाब कुएं की सफाई में जुटे लोग

Jud sheetal: इस पर्व के कई रूप और पक्ष हैं. इसके बहाने पर्यावरण से लेकर जल संरक्षण तक की पहल की जाती है. पेड़-पौधों की सेवा से लेकर जलस्रोतों तक की सफाई होती है.

Jud sheetal 2025: पटना. मिथिला समेत पूरे उत्तर भारत में नव वर्ष की धूम है. मिथिला में नव वर्ष के मौके पर मनाया जानेवाला लोकर्प जुड़ शीतल को लेकर गांव से शहर तक लोगों में उत्साह है. मिथिला के घर-घर पूरे परंपरागत तरीके से मनाया जा रहा है. सुबह बच्चों के सिर पर घर की बुजुर्ग महिला शीतल जल की थाप दी. पितरों को तर्पण कर जलदान किया गया. तुलसी पर घाट बांधा गया और पेड़ों को पानी डाल कर शीतलता की कामना की गयी. घर घर चूल्हे की वार्षिक मरम्मत की जा रही है. लोग बासी भोजन करने के बाद तालाब और कुएं की सफाई में लग गये हैं. जल पात्रों की सफाई के बाद सामाजिक स्तर पर जल की पूजा की जायेगी. शीतला देवी से पूरे साल शीतलता की कामना की जायेगी और अकाल और सूखा न पड़े इसको लेकर गुहार लगायी जायेगी.

पर्यावरण रक्षा का सामाजिक चेतना का पर्व

इस संबंध में पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि जुड़ शब्द जुड़ाव से बना है. इसका अर्थ फलने-फूलने से भी है. यह पर्व नई फसल यानी रबी की फसलों चना, जौ आदि की कटाई से भी जुड़ा हुआ है. इस सीजन में आम के फल बड़े होने लगते हैं. उसका भी इस पर्व में महत्व है. प्रकृति से गहरे रूप में जुड़ा जुड़ शीतल पर्व मिथिला की संस्कृति का प्रतीक है. इस पर्व के कई रूप और पक्ष हैं. इसके बहाने पर्यावरण से लेकर जल संरक्षण तक की पहल की जाती है. पेड़-पौधों की सेवा से लेकर जलस्रोतों तक की सफाई होती है. पूरे मिथिला में एक दिन चूल्हा बंद कर वातावरण के ताप को कम करने की कोशिश होती है.

बासी भोजन करने की परंपरा

मान्यता के अनुसार जल स्रोतों की सफाई के बाद घर की महिलाएं स्नान करके पहले मरम्मत हुए चूल्हे का पूजन करती हैं. सारे दुखों से छूटकारा एवं परिवार में शांति और शीतलता बनाए रखने की अग्निदेव से प्रार्थना करती हैं. इसके बाद सोमवार की शाम कुलदेवी के पीठ को अर्पित किये हुए बड़ी-भात, सहिजन की सब्जी, आम की चटनी का प्रसाद अपने पूरे परिवार के साथ ग्रहण करती हैं. जुड़ शीतल यानी आपका जीवन शीतलता से भरा रहे. इस दिन अनाज, फल एवं सब्जी दान देने की भी परंपरा है, जिससे साल के पहले दिन समाज का कोई व्यक्ति भूखा न रहे.

घाटो पूजा का मिथिला में खत्म हुआ प्रचलन

इस पर्व के संबंध में मिथिला के बनैली राज घराने के वंशज बाबू गिरिरानंद सिंह कहते हैं कि हम सबके नववर्ष का आज पहला दिन है. हम लोग इस दिन ‘जूड़ शीतल’ पर्व मनाते हैं. जूड़ शीतल मैथिल समाज के लिए नववर्ष का पहिल सूर्योदय, अति विशिष्ट, जल-पर्व है. बाबू गिरिरानंद सिंह कहते हैं कि इसे “बासि पाबनि” भी कहा जता है. आज कल का बना बड़ी और भात आज हम लोग खायेंगे. बासि अन्न गोसाउन भगवती को अर्पित कर प्रसाद रूप में ग्रहण करने की परंपरा रही है. वो मानते हैं कि पहले की तरह आज पूरा समाज मिलकर इनार-पोखर की सफाई नहीं करते हैं, लेकिन जल स्रोतों और जल संग्रह वाले स्थान की सफाई आज भी घर-घर होती है. आज के दिन घाँटो पूजा (घंटाकर्ण-पूजा) की जाती है, जो भाई-बहन के प्रेम का द्योतक है. कभी यह पूजा मिथिला की पहचान थी, लेकिन अब लगभग अप्रचलित हो चुकी है.

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Ashish Jha
Ashish Jha
डिजिटल पत्रकारिता के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश. वर्तमान में पटना में कार्यरत. बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को टटोलने को प्रयासरत. देश-विदेश की घटनाओं और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स को सीखने की चाहत.

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