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शरीर और मन के लिए अमृत समान है मसाज

हर साल सात अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस और आठ अप्रैल को विश्व मसाज दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर, आयुर्वेद में शरीर की देखभाल और उपचार के महत्वपूर्ण अंग के रूप में मसाज की भूमिका को विशेष रूप से उजागर किया जाता है.

विश्व मसाज दिवस आज

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पटना़ हर साल सात अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस और आठ अप्रैल को विश्व मसाज दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर, आयुर्वेद में शरीर की देखभाल और उपचार के महत्वपूर्ण अंग के रूप में मसाज की भूमिका को विशेष रूप से उजागर किया जाता है. आयुर्वेद के अनुसार, अभ्यंग (मसाज) स्वस्थ जीवन और रोगों से बचाव के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपाय है, जिसका महत्व जन्म से लेकर मृत्यु तक है. आयुर्वेद में इस प्रकार की चिकित्सा को संशोधन और संशमन चिकित्सा माना जाता है. पंचकर्म चिकित्सा में मसाज को एक स्तंभ के रूप में देखा जाता है, जो स्वास्थ्य को बनाए रखने और शरीर से रोगों को दूर करने के लिए अत्यधिक प्रभावी है. पंचकर्म चिकित्सा का कोई विकल्प नहीं पाया गया है, जो शरीर और मन की संपूर्ण शुद्धि कर सके. इसी विषय पर अमृत आयुर्वेद एवं पंचकर्म चिकित्सा केंद्र, शेखपुरा, पटना में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज एवं अस्पताल पटना के पूर्व प्राचार्य डॉ (प्रोफेसर) दिनेश्वर प्रसाद ने आयुर्वेदिक मसाज के लाभ और उसकी प्रक्रिया पर अपने विचार प्रस्तुत किये.

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आयुर्वेदिक मसाज के लाभ

1. तनाव और चिंता में राहत : आयुर्वेदिक मसाज मानसिक तनाव को कम करता है और शरीर को शांत करता है.

2. रक्त संचार में सुधार : यह रक्त संचार को बेहतर करता है, जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है.

3. त्वचा को पोषण : औषधीय तेल त्वचा में गहराई से प्रवेश करते हैं और उसे मुलायम और चमकदार बनाते हैं.

4. नींद में सुधार : नियमित मसाज अनिद्रा (नींद की समस्या) को दूर करता है.

5. वात-पित्त-कफ संतुलन : यह तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करता है.

6. डिटॉक्सिफिकेशन : शरीर से विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है.

7. संधियों और मांसपेशियों की ताकत बढ़ाता है : यह गठिया और दर्द में राहत प्रदान करता है.

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आयुर्वेदिक मसाज की प्रक्रिया

आयुर्वेदिक मसाज की प्रक्रिया में व्यक्ति के दोष (वात, पित्त, कफ) के अनुसार औषधीय तेलों का चयन किया जाता है. इसके बाद, तेल को गुनगुना किया जाता है, ताकि यह त्वचा में अच्छे से अवशोषित हो सके. मसाज सिर से पांव तक धीरे-धीरे और दबाव के साथ की जाती है. मसाज के बाद, व्यक्ति को कुछ देर विश्राम करने की सलाह दी जाती है, ताकि तेल का प्रभाव गहरा हो सके. फिर 30 मिनट बाद उबटन या हर्बल पाउडर से स्नान किया जाता है, जिससे त्वचा तरोताजा हो जाती है. – वात के लिए : तिल का तेल- पित्त के लिए : नारियल या चंदन तेल- कफ के लिए : सरसों का तेल

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पंचकर्म चिकित्सा में अभ्यंगम का स्थान महत्वपूर्ण

पंचकर्म चिकित्सा में अभ्यंगम का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है. यह प्रक्रिया दीपन, पाचन, लंघन और अन्य प्रक्रियाओं के साथ संयुक्त होती है, जैसे कि आभ्यंतर स्नेह, सोना बाथ (स्टीम बाथ), वमन, विरेचन, आस्थापन वस्ति, शिरो विरेचन (नस्य कर्म), और अन्य क्रियाएं यह संपूर्ण शरीर को डिटॉक्स करता है और शरीर के अंदरूनी तंत्र को पुनः सजीव करता है. पंचकर्म के बाद, शरीर और मन में एक नई ऊर्जा का संचार होता है और रोगी को निरोगी बनाए रखने में मदद मिलती है. यदि हम अपनी जीवनशैली में नियमित रूप से आयुर्वेदिक मसाज और पंचकर्म चिकित्सा को शामिल करें, तो हम न केवल स्वस्थ रह सकते हैं, बल्कि कई प्रकार के रोगों से बचने और उपचार करने में भी सक्षम हो सकते हैं. स्वस्थ रहने के लिए यह एक प्रभावी और प्राकृतिक उपाय है, जो आयुर्वेद में वर्णित है।

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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