GI Tag Products Of Bihar: बिहार की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत में कई अनमोल वस्तुएं शामिल हैं जिन्हें उनकी खासियत और गुणवत्ता के लिए भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त हुआ है. इस टैग से यह साबित होता है कि ये उत्पाद केवल बिहार के खास इलाकों में ही अपनी असली पहचान और बिशेषता के साथ पाए जाते हैं. GI टैग मिलने से न केवल इन उत्पादों की सुरक्षा होती है बल्कि स्थानीय कारीगरों और किसानों को भी आर्थिक लाभ मिलता है. जिससे बिहार की पारंपरिक कला, कृषि और कारीगरी को बढ़ावा मिलता है. बिहार में अब तक 13 उत्पादों को GI टैग मिल चूका है.
मधुबनी पेंटिंग
मधुबनी पेंटिंग बिहार राज्य के मिथिला क्षेत्र की एक प्रसिद्ध लोक कला है, जिसे प्राकृतिक रंगों और पारंपरिक आकृतियों से कपड़े, कागज़ या दीवारों पर बनाया जाता है. यह कला सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. मधुबनी पेंटिंग को इसकी विशिष्टता और पारंपरिक तकनीक के भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्राप्त हुआ है.
शाही लीची, मुजफ्फरपुर
मुज़फ्फरपुर की शाही लीची बिहार का एक मशहूर और मीठा फल है. इसका स्वाद बहुत अच्छा होता है, इसका छिलका गुलाबी और अंदर का गूदा बहुत रसीला होता है. यह लीची खास तरह की मिट्टी और मौसम में ही उगती है, जिससे इसका स्वाद और भी खास हो जाता है.
जर्दालु आम, भागलपुर
जर्दालु आम बिहार के भागलपुर जिले की एक प्रसिद्ध आम की किस्म है, जो अपने अनोखे खुशबू, मीठे स्वाद और पतले छिलके के लिए जानी जाती है. यह आम केवल खास मौसम और मिट्टी में ही अच्छी तरह से उगता है, जिससे इसका स्वाद और क्वालिटी बेहतरीन होती है.
मगही पान
मगही पान बिहार की एक खास किस्म का पान है. जो अपने मुलायम पत्तों, कम रेशे और मीठे स्वाद के लिए जाना जाता है. यह पान मुख्य रूप से नालंदा, नवादा और शेखपुरा जिलों में उगाया जाता है.
मगही पान का स्वाद इतना अच्छा होता है कि इसे अक्सर बिना तंबाकू या चूना डाले ही खाया जाता है.
2018 में GI टैग मिलने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मगही पान की मांग में वृद्धि हुई है, और यह अब विदेशों में भी एक्सपोर्ट किया जाता है.
कतरनी चावल, भागलपुर
कतरनी चावल बिहार के भागलपुर और बांका जिलों की एक पारंपरिक और सुगंधित धान की किस्म है. इसकी खासियत सिर्फ स्वाद में ही नहीं, बल्कि इसकी खुशबू और बनावट में भी है. कतरनी चावल पकने पर एक खास प्रकार की मीठी और हल्की खुशबू छोड़ता है, जो इसे बिरयानी, खीर और खास पकवानों के लिए उपयुक्त बनाता है. इसका नाम “कतरनी” इसलिए पड़ा क्योंकि इसकी बालियां छोटी और हल्की मुड़ी हुई होती हैं, जो दिखने में ‘कटी हुई’ जैसी लगती हैं.
मिथिला का मखाना
मिथिला मखाना बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र की एक प्रसिद्ध और पारंपरिक फसल है, जिसे कमल के बीजों से तैयार किया जाता है. इसकी खेती खासतौर पर दरभंगा, मधुबनी, सुपौल और सहरसा जैसे जिलों में की जाती है. मिथिला मखाना अपनी उच्च गुणवत्ता, कुरकुरेपन और पोषण से भरपूर गुणों के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है. 2020 में मिथिला मखाना को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त हुआ, जिससे इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली और स्थानीय किसानों को आर्थिक रूप से लाभ हुआ.
सिलाव का खाजा
सिलाव का खाजा बिहार के नालंदा जिले के सिलाव की एक पारंपरिक और प्रसिद्ध मिठाई है, जो अपनी परतदार बनावट, कुरकुरे स्वाद और लंबे समय तक ताज़ा रहने की क्षमता के लिए जानी जाती है. यह मिठाई मैदा, चीनी और शुद्ध घी से बनाई जाती है, और खास तकनीक से इसकी कई परतें तैयार की जाती हैं, जो इसे खाने में बेहद हल्का और स्वादिष्ट बनाती हैं.
भागलपुरी सिल्क
भागलपुरी रेशम बिहार की एक अनमोल विरासत है, जो अपनी शानदार चमक, मजबूती और मुलायम टेक्सचर के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है. यह रेशमी कपड़ा खासतौर पर भागलपुर जिले में तैयार किया जाता है और पारंपरिक हथकरघा तकनीक से बुना जाता है, जो इसे अनोखा बनाती है. इसकी खासियत और क्षेत्रीय पहचान को ध्यान में रखते हुए इसे भौगोलिक संकेतक (GI) टैग भी प्राप्त है.
सिक्की घास से बने सामान
सिक्की घास से बने उत्पाद बिहार की ग्रामीण कला और पर्यावरण संरक्षण का अनूठा उदाहरण हैं. ये उत्पाद खासकर भागलपुर और आसपास के इलाकों में तैयार किए जाते हैं. जहां स्थानीय कारीगर प्राकृतिक सिक्की घास का उपयोग करके हाथ से बने टोकरे, चटाई, सजावटी वस्तुएं और घरेलू सामान बनाते हैं. सिक्की घास की खासियत इसकी मजबूती, टिकाऊपन और पर्यावरण के प्रति अनुकूलता है, जिससे ये उत्पाद न केवल सुंदर होते हैं बल्कि पूरी तरह से बायोडीग्रेडेबल भी होते हैं.
खटवा एप्लीक
बिहार की एप्लिक कढ़ाई एक पारंपरिक और बेहद खूबसूरत शिल्प कला है, जो खासकर भागलपुर और मधुबनी क्षेत्र में प्रचलित है. इस कला में रंगीन कपड़ों के छोटे-छोटे टुकड़ों को कढ़ाई के ज़रिए बड़े कपड़े पर सटीक और आकर्षक डिज़ाइनों में लगाया जाता है. बिहार की एप्लिक कढ़ाई अपनी विशिष्टता और कला के लिए भौगोलिक संकेतक (GI) टैग की भी पात्र है, जो इसे और भी विशेष बनाता है.
सुजनी कला
सुजनी कला बिहार की एक पारंपरिक कढ़ाई कला है, जो खासतौर पर बेगूसराय और दरभंगा जिलों में प्रचलित है. इस कला में सूती या रेशमी कपड़ों पर रंगीन धागों से सुंदर और जटिल डिज़ाइन बनाए जाते हैं, जो घरेलू वस्त्रों और सजावट के लिए इस्तेमाल होते हैं. सुजनी की खास बात इसकी हाथ से की गई बारीक कढ़ाई है, जो इसे बेहद खूबसूरत और अनोखा बनाती है. यह कला महिलाओं की क्रिएटिविटी को दर्शाती है और बिहार की लोक कलाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है. सुजनी का काम न केवल पारंपरिक है बल्कि आधुनिक फैशन में भी इसकी मांग बढ़ रही है.
मर्चा चावल
मर्चा चावल बिहार की एक विशेष प्रकार की सुगन्धित चावल है, जो मुख्य रूप से भागलपुर और उसके आसपास के इलाकों में उगाई जाती है. यह चावल अपनी अनोखी खुशबू, बेहतरीन स्वाद और मुलायम पकने वाली बनावट के लिए जाना जाता है. इसकी विशिष्टता और क्षेत्रीय पहचान के कारण इसे भौगोलिक संकेतक (GI) टैग मिला है, जो यह साबित करता है कि यह चावल केवल बिहार के विशेष क्षेत्र में ही अपनी असली पहचान और गुणवत्ता के साथ पाया जाता है.
मंजूषा कला
मंजूषा कला बिहार की एक पारंपरिक चित्रकला शैली है, जो खासकर दरभंगा और मधुबनी क्षेत्रों में लोकप्रिय है. इसे ‘ट्रॉपिकल बॉक्स आर्ट’ भी कहा जाता है क्योंकि यह कागज या लकड़ी के बक्सों, दीवारों और कपड़ों पर चूना और प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती है. मंजूषा चित्रों में मिथिला की सांस्कृतिक कहानियां, देवी-देवताओं के चित्र और लोक जीवन के दृश्य प्रमुख होते हैं.
(सहयोगी सुमेधा श्री की रिपोर्ट)
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