कैलाशपति मिश्र/ पटना. निलंबित आईएएस अधिकारी संजीव हंस के मामले में की जांच में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को बिहार में निर्माण कार्य विभागों में चल रहे कमीशनखोरी के बड़े रैकेट का पता चला. ईडी की रिपोर्ट के आधार पर विशेष निगरानी इकाई (एसवीयू) ने 30 अप्रैल को एक दलाल रिशु श्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, उसमें रिशुश्री के कारनामों के बारे में खुलासा किया गया है. एफआईआर के अनुसार रिशु श्री टेंडर मैनेज करने से लेकर बिल पास करवाने तक में फिक्स्ड कमीशन लेता था.
टेंडर का खेल
टेंडर अपने फेवर में करने के लिए अधिकारियों की मिली भगत से टेंडर में कुछ खास टर्म जुड़वा लिया करता था, ताकि रिशु श्री के संपर्क में रहने वाली कंपनियां आसानी से टेंडर मिल सके. इसके लिए रिशु श्री अनुबंध (टेंडर) की कीमत का 8 से 10 प्रतिशत कमीशन लेता था. इस कमीशन का एक बड़ा हिस्सा विभाग के बड़े अधिकारियों और कर्मचारियों को भी जाता था.
बिल पास कराने के एवज में भी 2 से 3.5 फीसदी कमीशन
ईडी द्वारा की जा रही पूछताछ के दौरान रिशुश्री ने कई महत्वपूर्ण जानकारी दी. ईडी के सामने रिशु ने स्वीकार किया कि ठेके के अलावे वह बिल पास कराने के में भी 2 से 3.5 फीसदी कमीशन लेता और देता था. ईडी को उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार के नगर विकास एवं आवास विभाग और भवन निर्माण विभाग के कई अधिकारियों को भी कमीशन दिए हैं.
ईडी की जांच में खुलासा
ईडी की जांच में पता चला कि टेंडर में रिशुश्री ने ऐसी शर्तें रखवाईं जिससे उसके क्लाइंट अहमदाबाद की सेवरोक्स कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को ठेका मिल गया. बाद में रिशुश्री ने अपने स्टाफ संतोष कुमार की कंपनी मातृसेवा कंस्ट्रक्शन को इस प्रोजक्ट का सब-कांट्रैक्ट दिलवा दिया. संतोष रिशुश्री की कंपनी रिलायबल इंफ्रा सर्विस प्राइवेट लिमिटेड में काम करते थे. इस कंपनी को मिले सब-कांट्रैक्ट के जरिए उन्हें इस परियोजना का ठेका दिलवाने के एवज में 8 से 10 फीसदी के करीब कमीशन मिल गया.
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