Patna News: एक ओर जहां राजधानी पटना विकास के नए-नए मॉडल अपना रही है, वहीं दूसरी ओर बढ़ती आबादी, ट्रैफिक और अतिक्रमण ने शहर की सांसें फुला दी हैं. 1951 में जहां पटना की जनसंख्या मात्र 2.83 लाख थी, वह अब बढ़कर 24.61 लाख हो चुकी है. दानापुर, फुलवारी, खगौल जैसे उपनगरों को मिलाकर वृहत्तर पटना की आबादी 30 लाख के पार पहुंच गई है. लेकिन इतने वर्षों में शहर का क्षेत्रफल सिर्फ 108 वर्ग किमी से बढ़कर 250 वर्ग किमी हुआ है, यानी केवल 2.5 गुना. इसके मुकाबले जनसंख्या 10 गुना बढ़ी है, जिससे हर सुविधा, हर सड़क और हर कोना अब बोझिल हो चुका है.
हर मोड़ पर भीड़, हर घंटे जाम
बीते 20 वर्षों में पटना में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या 3 लाख से बढ़कर 20 लाख हो गई है. जिनमें से 80% वाहन शहरी इलाकों में ही दौड़ते हैं. नतीजा ये कि सुबह ऑफिस टाइम और दोपहर स्कूल टाइम में शहर की कोई ऐसी सड़क नहीं बची जहां जाम न लगे. जगह की कमी के कारण सड़क चौड़ीकरण संभव नहीं हो पाया. फ्लाइओवर से राहत की उम्मीद थी लेकिन अब वहां भी पिक ऑवर में जाम लगने लगा है.
बढ़ती भीड़ के बीच खोती सुविधाएं
तेज जनसंख्या वृद्धि और छोटे प्लॉट पर मकान निर्माण के ट्रेंड ने पार्किंग की भी बड़ी समस्या खड़ी कर दी है. अधिकतर घरों में पार्किंग की जगह नहीं बची, इसलिए लोग सड़कों पर ही गाड़ियां खड़ी कर देते हैं, जिससे रास्ते और भी सकरे हो गए हैं. कई इलाकों में तो घरों की चारदीवारी भी सड़क तक फैला दी गई है.
अतिक्रमण ने बढ़ाई चाल और थाली की दूरी
सड़क किनारे लगाए जा रहे अस्थायी बाजारों ने भी अतिक्रमण की समस्या को गंभीर बना दिया है. गांवों से रोजगार की तलाश में आए लोगों ने फुटपाथ को ठेला-खोमचा से भर दिया, जिससे आम राहगीरों को निकलने में परेशानी होती है. फ्लाइओवर, डबल डेकर रोड और इंटीग्रेटेड ट्रैफिक प्लान्स पर सरकार काम कर रही है, लेकिन बढ़ती आबादी की रफ्तार के आगे ये उपाय भी फीके लगने लगे हैं. अगर यही स्थिति रही तो जल्द ही हर समाधान बेअसर साबित होगा.
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