– वर्ष 2018 में स्थापित हुए विश्वविद्यालय को अब तक मिले महज दो स्थायी कुलपति
– संस्थापक कुलपति ने तीन महीने पहले ही छोड़ दिया था विश्वविद्यालय, सात साल में दो कुलपति– केवल प्रो आरके सिंह ही पूरा कर पाये हैं अपना कार्यकाल
– प्रभार में रहे है तीन-तीन कुलपति, प्रभार में ही वित्तीय सलाहकार, वित्त पदाधिकारी भी प्रभारीसंवाददाता, पटना
पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी (पीपीयू) की स्थापना के सात साल से अधिक हो गये हैं, लेकिन अभी तक दो स्थायी कुलपति ही मिले हैं, जबकि तीन-तीन कुलपतियों को यहां का अतिरिक्त प्रभार मिल चुका है. इसके कारण विवि के नीतिगत फैसले लंबित हैं. स्थिति यह रही कि संस्थापक कुलपति प्रो गुलाब चंद्र राम जायसवाल ने तीन महीने पहले ही इस्तीफा दिया व अपने मूल विश्वविद्यालय चले गये. पीपीयू का गठन मार्च 2018 को हुआ था. मगध यूनिवर्सिटी के अधीन नालंदा व पटना के 56 सरकारी व गैर सरकारी महाविद्यालय पीपीयू में आ गये. इसके अतिरिक्त अन्य तकनीकी संस्थान भी कार्यरत हैं. संस्थापक कुलपति के इस्तीफे के बाद करीब एक वर्ष तक ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एसपी सिंह को प्रभार दिया गया. इसके बाद प्रो आरके सिंह की नियुक्ति हुई. उन्होंने जनवरी 2025 में अपना कार्यकाल पूरा किया व वापस लौटे. इसके बाद आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शरद कुमार यादव को प्रभार मिला. करीब चार महीने में ही इन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद से बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ इंद्रजीत सिंह को प्रभार दिया गया है. प्रो आरके सिंह का कार्यकाल पूरा होने से तीन माह पहले से ही केवल रूटीन कार्यों की जिम्मेदारी दी. इस कारण पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में सितंबर से ही नीतिगत फैसलों पर रोक है. विशेषज्ञ बताते हैं कि किसी भी बड़े विश्वविद्यालय में हर दिन नयी समस्याएं आती हैं, ऐसे में ज्यादा दिनों तक ऐसी व्यवस्था रहने पर विकास अवरुद्ध हो जाती है. पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिकारी रहे प्रो एके नाग ने बताया कि किसी भी विश्वविद्यालय में छात्र, शिक्षक व विश्वविद्यालय के विकास के लिए स्थायी कुलपति जरूरी है. इसके बिना बेहतर कार्य या जिम्मेवारी तय नहीं की जा सकती है. पीपीयू में सितंबर 2024 से ही केवल रुटीन कार्य चल रहे हैं. इसके कारण कई नीतिगत फैसले लंबित हैं. पीपीयू के एक्सटेंशन सेंटर का मामला हो या कॉलेजों में बगैर शिक्षक पढ़ाई का मामला हो, इन सभी मामलों में कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं. यह तब ही संभव हो पाता है, जब स्थायी कुलपति हो.ये मामले हैं लंबित
– लगभग 50 सेवानिवृत्त शिक्षक व कर्मचारियों का अर्जित अवकाश का भुगतान छह महीना से लेकर एक वर्ष तक है लंबित.– वर्ष 2024 में हुए पीजी नामांकन में गड़बड़ी के खिलाफ गठित जांच समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई लंबित.
– कई संबद्ध महाविद्यालयों की शिकायत व जांच समिति की रिपोर्ट की कार्रवाई लंबित.– कई विषयों में विश्वविद्यालय सेवा आयोग से अनुशंसित शिक्षकों के पदस्थापन का मामला लंबित.
– कर्मचारियों की पदोन्नति लंबित.– अनुकंपा पर नियुक्ति की कार्रवाई लंबित.
– नीतिगत फैसला पूरी तरह बंद.– रूटीन कार्य के अतिरिक्त कार्यों के लिए कार्रवाई लंबित.
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