Ram Navami 2025 राम को लेकर इतने काव्य लिखे गये, वाल्मिकी ने लिखा, तुलसीदास ने लिखा, दक्षिण में कंद रामायण है. न केवल भारत में, बल्कि पूर्व के और देशों में चले जाइये, सब जगह राम कथा अलग-अलग रूपों में है. हमारे यहां लोकोक्ति है कि राम की कथा को सबसे पहले हनुमानजी ने लिखा और उसे हवा में उड़ा दिया, तो जहां-जहां वे पन्ने गये, वहां उन्होंने तरीके से रामकथा लिखा. तो इसमें भाव यह है कि यह एक जगह स्थिर नहीं है, कथा जरूर होगी अयोध्या की, लेकिन वह अयोध्या की कथा नहीं होती है.
राम केवल एक व्यक्ति, परिवार की कथा नहीं है, यह हर परिवार की कथा बन जाती है. लोहिया जी राम पर जोर नहीं देते थे, वे रामायण पर जोर देते थे. राम को अनेक रूपों में लोगों ने देखा. आदिवासियों ने अपने तरीके से देखा, निर्गुण पंथियों में कबीर वगैरह ने अपने तरीके से देखा. कबीर कहते हैं, ‘कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाउं’.
भींगे तो होइहें राम लखन दुनो भाई
समाज के ऊपरी तबके के जो लोग थे, जो कुछ गढ़ सकते थे, उनके पास शब्द थे, मंदिर थे, उन्होंने जो कथा गढ़ी, वह सगुण राम की कथा गढ़ी. और जो मेहनतकश लोग थे, किसान, मजदूर इनलोगों ने निर्गुण राम की कथा गढ़ी. वे राम को दिल में बैठाते हैं. स्त्रियों ने अपने तरीके से राम को देखा. लोकगीतों में इसके कई उदाहरण हैं. घनघोर बारिश हो रही है, और कौशल्या अपने राजमहल में विलाप कर रही हैं कि राम और सीता व लक्ष्मण जो वन में गये हैं, तो कह रही हैं ‘भींगे तो होइहें राम लखन दुनो भाई’.
राम सबके हैं
राजमहल में बैठी हुई मां अपने बच्चों के लिए विलाप कर रही है. यह एक किसान की मां व पत्नी की भी पीड़ा है, जो जानती है कि उसका बेटा, उसका पति खेत में भीगते हुए काम कर रहा है. वह तो सुरक्षित घर में है. तो राम सबके हैं, संपन्न के भी, विपन्न के भी. ए विजन ऑफ इंडिया एक लेख है रवींद्रनाथ टैगोर का, उन्होंने रामकथा की अपने तरीके से व्याख्या की. वे कहते हैं राम चार भाई हैं. दो भाई वशिष्ठ के यहां और दो भाई राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के यहां बक्सर पढ़ने चले जाते हैं.
विश्वामित्र को मालूम हैं कि इन्हें राजा बनना है, तो जो राजनीति की शिक्षा वे दोनों को देते हैं, तो उसके तीन आधार हैं. पहला है अहल्या आधार, मतलब जो हल के अधीन भूमि न हो उसे उसके अधीन लाना, यानी अजोतकर कृषि भूमि को जोतकर बनाना. अर्थात् कृषि उत्पादन को बढ़ाना. दूसरा ताड़का वध, मतलब असामाजिक तत्वों को काबू करना यानी कानून का राज स्थापित करना और तीसरा है सीता विवाह. सीता खेत में मिली थीं, उनकी जाति गोत्र का पता नहीं. विश्वामित्र राम को जोर देते हैं कि तुम्हें सीता से विवाह करना है. राम को वे शिव धनुष उठाने के लिए प्रेरित करते हैं.
इसका मतलब था कि वर्ण और जाति की परंपरा को कमजोर करना. ये सब बातें आज भी राजनीति के लिए महत्वपूर्ण हैं. राम जब गृह कलह के बाद वनवास पर जाते हैं, तो वहां सीता का रावण अपहरण कर लेता है. तो राम कभी अयोध्या से सहायता नहीं मांगते हैं, वे स्थानीय ताकतों को इकट्ठा करके अपने बूते उसका प्रबंध करते हैं. उसी से वे युद्ध करते हैं.
रामलीला देखकर एक व्यक्ति क्यों भावुक होता है, क्योंकि वह देखता है कि एक गरीब की स्त्री की तरह राम की पत्नी का भी अपहरण होता है और उसके लिए जो वह संघर्ष करते हैं, वह लड़ाई हथियारों के साथ नहीं होता है. इसलिए तुलसीदास लिखते हैं ‘रावण रथी विरथ रघुवीरा’. लेकिन राम की जीत होती है. यही तो संदेश है रामायण का. लोहिया रामायण मेले की बात करते थे, उस रामायण मेले से एक राजनीतिक ताकत निकलने की भी उम्मीद थी. उन्होंने बताया कि उनका रामायण मेला किस तरह से आधुनिक और समाजवादी समाज बनाने में भी सहायक हो सकता है.
राम मर्यादाओं के नायक हैं
राम मर्यादाओं के नायक हैं, वे अपने वचन से हिलते नहीं. वे दुख और सुख दोनों में सम्यक भाव रखते हैं. कहीं विचलित नहीं होते. आह्लादित रहते हैं. वे रासलीला या तांडव नहीं कर सकते. वे मर्यादीत होते हैं. एक राजा को कैसा होना चाहिए, वे वैसा व्यवहार करते हैं. हमें राम, शिव और कृष्ण को अलग-अलग नहीं, एक कड़ी में देखना चाहिए. राम पूरी सम्यकता में इसके प्रतीक हैं कि हमें समाज में कैसे रहना है, जहां सब कुछ संभव हो, और सबकुछ सौंदर्य, मनोहरता, शुभता की ओर प्राप्ति हो. हमारे जीवन में राम हैं. हमें कल्याण भाव रखना है, हमें संकुचित नहीं होना है, उसे विस्तार देना है.
राम एक भील स्त्री सबरी से संवाद कर रहे हैं, उसकी जूठी बेर खा रहे हैं. एक राजकुमार सबरी का आतिथ्य स्वीकार करता है. अहिल्या को उसके पति गौतम ऋषि ने त्याग दिया था. ऐसी स्त्री को जिसे पति ने त्याग दिया है, वैसी परित्यक्ता को बहुत अशुभ समझा जाता है. राम वहां जाते हैं, और उसकी गतिशीलता वापस आ जाती है. यह प्रतीक ही है कि उससे पहले अहिल्या पत्थर बन गयी थी, कहने का मतलब यह कि उसमें अगति आ गयी थी, लोगों ने आना-जाना बंद कर दिया था, राम जब आये तो उसमें फिर गति आ गयी, लोग आने-जाने लगे. राम अहिल्या को समाज के साथ फिर जोड़ते हैं.
एक स्त्री का स्त्रीत्व क्या होता है?
दूसरी ओर, तुलसीदास ने सीता की अग्नि परीक्षा का प्रसंग नहीं रखा है. वे अपनी पत्नी से इतना प्रेम करते हैं वे इस हिस्से को रामचरित मानस में शामिल नहीं कर सके. लेकिन जो वाल्मिकी की जो रामायण है उसमें यह प्रसंग है. अग्निपरीक्षा के पहले सीता राम से प्रश्न करती हैं, एक स्त्री का स्त्रीत्व क्या होता है? जब विवाह होता है तो उस समय स्त्री अपने स्त्रीत्व को अपने पति को सौंप देती है और पत्नीत्व ओढ़ लेती है.
स्त्रीत्व की रक्षा का भाव आप पर था, और आप ऐसा नहीं कर सके तो इसमें मेरा क्या दोष है. अगर आपने मुझे भी हथियार उठाने की इजाजत दी होती या सिखाया होता तो मैं रावण से निपट लेती, लेकिन मुझे तो तुमने निशस्त्र कर रखा था. मैंने अपने पत्नीत्व की रक्षा मैं रावण के यहां भी करती रही. तुम यह देखो कि यह शंका तुम्हारे मन में क्यों हुई. दुनिया में शायद ही किसी स्त्री का इतना निर्भीक संवाद रहा हो.
रामकथा हर परिवार की कथा है
रामकथा राम व रावण युद्ध तक ही सीमित नहीं होती, वह आगे तक जाती है. राम भी यदि कहीं विचलित होते हैं, तो आगे की शक्ति लव-कुश के तौर पर प्रकट होती है. लव-कुश आते हैं और राम के अश्वमेघ के घोड़े को थाम लेते हैं. रामकथा का रचयिता बताता है कि राम जब राजा बनते हैं, तो उनमें भी जब विकार आता है तो उसके जवाब के लिए उन्हीं के बेटे लव-कुश तैयार बैठे हैं, जो घोड़े को थामते हैं. इसलिए रामकथा एक ऐसा काव्य है, जिसका दूसरा उदाहरण नहीं मिलता. यह सामाजिक संदेश देता है, यह एक परिवार की कथा, हर परिवार की कथा बन जाती है. रामकथा निरंतरता के साथ आजादी का संदेश देता है.