रंजन कुमार/ Sawan 2025: बिहार में कई प्रमुख शिव मंदिर है, जहां बाबाधाम के तरह पूजा अर्चना और जलाभिषेक करने की मान्यता है. कई मंदिरों से बाबाधाम के तर्ज पर कांवर यात्रा निकलती है. इसके साथ ही श्रावणी मेला भी लगता है . बिहार के इन मंदिरों का विशेष मान्यता भी है . जैसे- लखीसराय के अशोकधाम मंदिर, मुजफ्फरपुर के श्री गरीबनाथ मंदिर, सोनपुर के हरिहरनाथ मंदिर, बक्सर के ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर, मधुबनी के विदेश्वर मंदिर में बाबा के दर्शन करने के लिए हजारों की सख्यां में भक्त कांवर लेकर पहुंचते है. आइए एक-एक करके जानते है इन सभी मंदिरों के बारे में…
मुजफ्फरपुर के श्री गरीबनाथ मंदिर में कांवड़ लेकर पहुंचते हैं हजारों श्रद्धालु
श्री गरीबनाथ मंदिर बिहार के मुजफ्फरपुर के पुरानी बाजार के पास स्थित है. इस मंदिर में शिवलिंग स्थापित है. सावन में बाबा पर जल चढ़ाने के लिए लाखों श्रद्धालु यहां पर प्रति दिन पहुंचते है. धार्मिक मान्यता है कि इस इलाके में घने जंगल के बीच सात पीपल के पेड़ थे. शहरीकरण के लिए पेड़ की कटाई के दौरान धरती से अचानक खून जैसा पदार्थ निकलने लगा. जब यहां खुदाई की गई तो एक विशालकाय शिवलिंग मिला . खुदाई के समय कुदाल से कटने का दाग आज भी है. यहां के लोगों का मानना है कि जमीन मालिक के सपने में भगवान शिव ने दर्शन दिए और वहीं शिवलिंग को स्थापित करने और पूजा शुरू करने का आदेश भी दिए. श्री गरीबनाथ मंदिर के लिए सावन के महीने में हाजीपुर के पहलेजा घाट से कांवड़ यात्रा निकलती है. मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सावन में बाबा पर जल चढ़ाते है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.

सावन में लखीसराय के अशोकधाम मंदिर पहुंचते हैं मुंडन करवाने श्रद्धालु
अशोकधाम मंदिर को इंद्रेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर लखीसराय में स्थित है. लखीसराय जिला के आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इस मंदिर का खोज अशोक नाम का एक लड़का ने 7 अप्रैल 1977 को गिल्ली- डंडा खेल खेलने के दौरान किया था. इस युवक के नाम पर ही इस मंदिर का नाम आशोकधाम रखा गया है. इस मंदिर का पुननिर्माण का उद्धाटन जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य के द्वारा 11 फरवरी 1993 को किया गया. सावन में हजारों लोग शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करने के लिए आते हैं . यहां पर सावन भर मेला भी लगता है. मनोकामना पूर्ण होने पर कुछ लोग मुंडन करवाने के लिए भी आते है.

सावन में जल चढ़ाने लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर पहुंचते हैं बाबा हरिहरनाथ मंदिर
बाबा हरिहरनाथ मंदिर बिहार के हरिहर क्षेत्र के सोनपुर में गंगा नदी और गंडक नदी के संगम स्थल के किनारे स्थित है. यह मंदिर देश का एकमात्र मंदिर है, जिसमे भगवान विष्णु और भगवान शिव एक साथ एक ही शिवलिंग में विराजमान है . इसी मंदिर के कारण इस क्षेत्र को हरिहर क्षेत्र कहा जाता है. सावन में यहां पूजा अर्चना का खास महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि सावन में जल चढ़ाने पर भगवान शिव की विशेष कृपा के साथ भगवान विष्णु की भी कृपा मिलती है. इस मंदिर का संबंध श्री गरीबनाथ मंदिर से भी है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा अर्चना करके गंडक नदी से जल भरकर भक्त कांवड़ लेकर गरीबनाथ मंदिर जाते हैं. गरीबनाथ के लिए कांवड़ यात्रा तभी सफल होगी, जब भक्त हरिहरनाथ में जल चढ़ाकर उनसे कांवड़ यात्रा की अनुमति प्राप्त करेंगे.

बाबा बैधनाथ का छोटा भाई है मधुबनी के विदेश्वर बाबा
विदेश्वर बाबा मंदिर मधुबनी के झंझापुर में स्तिथ है. इस मंदिर को मिथिला का बाबाधाम भी बोला जाता है . धार्मिक मान्यता है कि प्राचीन काल में भगवान भोलेनाथ के प्रिय शिष्य भैरवनाथ रुष्ट होकर मिथिला आ गए, तब से अपने सपारिवार के साथ भगवन शिव के इस मंदिर में आते रहें. दूसरी मान्यता यह भी है कि जो भक्त झारखण्ड स्थित बाबा बैद्यनाथ नहीं जा पाते हैं उनको यहां पूजा करने से बाबा बैधनाथ का ही पूजा का फल प्राप्त होता है. इस मंदिर में मिथलांचल के अलावा नेपाल से भी भक्त आते हैं . इस मंदिर में कई धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जैसे की बच्चों का मुंडन, जनेऊ, शादी -विवाह , रुद्रा अभिषेक आदि. मधुबनी से विदेश्वर बाबा मंदिर की दूरी 25 किलोमीटर एवं बिहार की राजधानी पटना से इस मंदिर की दूरी 167 किलोमीटर है .

बक्सर के ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर में ब्रह्म जी ने किया था शिवलिंग की स्थापना
ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर बक्सर जिला के ब्रह्मपुर में स्तिथ है. बक्सर से इस मंदिर की दूरी 40 किलोमीटर है . इस मंदिर की जानकारी कई पुराणों में मिलता है . इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं ब्रह्म जी के द्वारा किया गया था, इसका जिक्र कई पुराणों में भी मिलता है. यही कारण इसका नाम ब्रह्मेश्वर नाथ रखा गया है. शिव महापुराण के अनुसार यह मंदिर काम, धर्म, अर्थ और मोक्ष देने वाला है. इस शिवलिंग के दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है, इसलिए इसको मनोकामना महादेव के नाम से भी जाना जाता है . इस मंदिर का एक खासियत यह भी है कि इसका दरवाजा पश्चिम की ओर खुलती है. इतिहास के अनुसार मोहम्द गजनी ने इस मंदिर को तोड़ने के लिए आया था. तभी गांव वालों ने रोका तो उनलोगों को गजनी ने बोला कि अगर सुबह तक इस मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर हो जाएगा, तो वह मंदिर को छोड़ देगा. सुबह ऐसा ही हुआ इसके बाद गजनी मंदिर छोड़कर भाग गया.
