सुबोध कुमार नंदन/ Shaheed Diwas 2025: पटना. सत्य ही है कि बिहार की पावन भूमि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है, और यहां न केवल स्थानीय क्रांतिकारी, बल्कि दूसरे राज्यों के स्वतंत्रता सेनानी भी आए और यहां के राजनीतिक एवं सामाजिक माहौल में अपने विचारों को फैलाया. यह भूमि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल रही है, और इसका इतिहास गवाह है कि यहां क्रांतिकारियों ने अपनी योजनाओं को लागू किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने आक्रोश को व्यक्त किया. इस सिलसिले में भगत सिंह का बिहार से गहरा और लंबा संबंध था, और इसे ब्रिटिशकालीन दस्तावेजों और भगत सिंह के साथियों के संस्मरणों में भी उल्लेखित किया गया है. 1857 के बाद पहली बार अंग्रेजों पर बम से हमला इसी सूबे में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने किया. इसी तरह बिहार न केवल दूसरे राज्यों के क्रांतिकारियों को अपने गले लगाया और दबे पैर उनके काम को अंजाम तक पहुंचाने में सहायता भी की. ऐसे क्रांतिकारियों में शहीद-ए-आजम भगत सिंह (पंजाब) का नाम भी शामिल है.
भगत सिंह ने असेंबली में बम धमाके की बताई थी योजना
जयचंद्र विद्यालंकार लाहौर में नेशनल कॉलेज (लाहौर) में शिक्षक थे. उन्हें विश्वास था कि जब तक भारत के युवाओं में अंग्रेजों का भय रहेगा, तब तक देश आजाद नहीं होगा. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव उनके शिष्यों में थे. सांडर्स हत्याकांड पूर्व विद्यालंकार पटना आ गए और 1921 में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित बिहार विद्यापीठ में शिक्षक बन गए. और उसी में विद्यापीठ के परिसर में रहते थे. 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने सांडर्स की हत्या कर लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया. पुलिस के नजरों से ओझल रहने के लिए पहले कलकत्ता आये और उसके बाद अलग-अलग जगहों पर क्रांति की अलाव जलाते रहे. कलकत्ता में रहते हुये भगत सिंह को जानकारी मिली की गुरु विद्यालांकर पटना में हैं. वे रात वाली ट्रेन से पटना पहुंच गये. उस समय जयचंद जी चौकी पर लेटे हुये थे और एक चादर ओढ़ रखी थी. भगत सिंह उसी चादर में लेट गये और आपस में बातें करते हुए भविष्य की योजनाओं पर विचार करने लगे. इस दौरान भगत सिंह ने असेंबली में बम धमाके की योजना बताई लेकिन जयचंद ने उन्हें ऐसा करने से मना किया.
23 मार्च 1931 को लाहौर में दी गयी थी फांसी
जयचंद ने कहा कि वह सरदार अजीत सिंह का भतीजा है. वह चाहे तो जापान जाकर विदेशी क्रांतिकारियों से संपर्क कर भारत के लिये क्रांतिकारियों की एक बड़ी फौज तैयार कर सकते हैं. उन्होंने दूसरा राय देते हुए कहा कि सांडर्स की हत्या के बाद युवाओं का मनोबल बढ़ा है, जिसे आगे बढ़ाने की जरूरत है. विद्यालांकर से बात कर भगत सिंह विद्यापीठ से बाहर निकले और दीघा घाट पर गंगा नदी पार कर छपरा की ओर निकल पड़े. 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त एसेंबली में बम विस्फोट किया और पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. अब इन्हें दोनों कांड में आरोपी बनाया गया. इधर विद्यालांकर ने क्रांति के साथ शांति का पहाड़ा भी पढ़ने लगे. 23 मार्च 1931 को लाहौर के सेंट्रल जेल में भगत सिंह को फांसी दी गयी उस समय विद्यालांकर लाहौर में ही थे. इसके बाद विद्यालांकर बनारस जाकर अध्ययन करने लगे. आजादी के बाद उन्होंने आत्मकथा प्रकाशित करवाई. यदि भगत सिंह अपने गुरु जयचंद विद्यालंकार की बात मान गये होते तो आज का क्रांतिकारी इतिहास कुछ अलग पन्नों का होता.