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टिफिन बॉक्स लेकर घर से निकलें, आज हैं अरबों की कंपनी के मालिक, कौन हैं बिहार के अनिल अग्रवाल?

Success Story: बिहार के अनिल अग्रवाल की कहानी साबित करती है कि सच्ची लगन और मेहनत से कुछ भी संभव है. टिफिन बॉक्स लेकर मुंबई पहुंचे इस युवा ने संघर्षों का सामना करते हुए कबाड़ के धंधे से शुरुआत की और आज वेदांता रिसोर्सेज के मालिक हैं.

Success Story: अगर किसी ने कभी सोचा हो कि बिना बड़ी डिग्री और पुश्तैनी धन के भी कोई इंसान अरबों का साम्राज्य खड़ा कर सकता है, तो बिहार के अनिल अग्रवाल की कहानी उसकी सोच को बदलने के लिए काफी है. बिहार के पटना से निकलकर मुंबई पहुंचे इस युवा ने सपनों को सच करने का जुनून अपने दिल में रखा और हर असफलता को सीख में बदलते हुए एक ऐसा साम्राज्य खड़ा कर दिया, जिसकी गूंज देश से लेकर विदेशों तक सुनाई देती है.

संघर्ष की शुरुआत: खाली हाथ, मगर सपने बुलंद

साल 1954 में पटना में जन्मे अनिल अग्रवाल ने 20 साल की उम्र में सपनों को साकार करने के लिए मुंबई का रुख किया. हाथ में सिर्फ एक टिफिन बॉक्स, बिस्तर और आंखों में बड़े सपने थे. जब पहली बार विक्टोरिया टर्मिनस (आज का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) पहुंचे, तो मुंबई की रफ्तार और चकाचौंध से दंग रह गए. लेकिन डरने की बजाय उन्होंने खुद को इस भीड़ में साबित करने का फैसला किया.

शुरुआत में उन्होंने छोटी-मोटी नौकरियां कीं, लेकिन यह उनके सपनों की मंज़िल नहीं थी. उनका ध्यान बिजनेस की ओर था और उन्होंने कबाड़ के धंधे में हाथ आजमाने का फैसला किया.

कबाड़ से लेकर कंपनी के शिखर तक

1970 के दशक में उन्होंने केबल कंपनियों से स्क्रैप मेटल खरीदकर उसे मुंबई में बेचने का काम शुरू किया. शुरुआती मुनाफ़ा देखकर उन्होंने 1976 में कर्ज़ लेकर शमशेर स्टार्लिंग कॉर्पोरेशन नाम की एक कंपनी खरीदी. यह कंपनी कॉपर केबल बनाने का काम करती थी, लेकिन यह सौदा उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ. इसके बाद उन्होंने लगातार नौ बार नए बिजनेस शुरू किए और हर बार असफलता हाथ लगी.

लेकिन हार मानना उनकी फितरत में नहीं था. “अगर सपने देखने की हिम्मत है, तो उन्हें पूरा करने की ताकत भी होनी चाहिए.” इसी सोच के साथ उन्होंने 1993 में स्टरलाइट इंडस्ट्रीज की नींव रखी और भारत में पहली बार कॉपर स्मेल्टर और रिफाइनरी स्थापित की. यह उनका पहला बड़ा कदम था, जिसने उनकी किस्मत बदल दी.

वेदांता का उदय: भारत से विदेश तक छाया नाम

1995 में उन्होंने मद्रास एल्युमिनियम का अधिग्रहण किया और खनन उद्योग की दुनिया में कदम रखा. यह वही समय था जब उन्होंने अपने बचपन का सपना याद किया- वो सपना जब उनके पिता उन्हें बनारस के हिंडाल्को प्लांट में एल्युमिनियम खरीदने के लिए ले जाया करते थे. तब उन्होंने खुद से कहा था, “एक दिन मेरी भी अपनी फैक्ट्री होगी.”

फिर साल 2001 में अनिल अग्रवाल ने भारत के पहले सरकारी एल्युमिनियम संयंत्र BALCO (भारत एल्युमिनियम कंपनी) को खरीदा. यह सौदा उस समय काफी विवादों में रहा, लेकिन अनिल अग्रवाल का विश्वास अडिग था. उन्होंने इसे अवसर के रूप में देखा और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.

आज वेदांता समूह का दबदबा

आज उनकी कंपनी वेदांता रिसोर्सेज दुनिया की टॉप मेटल और माइनिंग कंपनियों में से एक है. उनकी कंपनी का मार्केट कैप 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है और भारत, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, और आयरलैंड जैसे देशों में कारोबार फैला हुआ है. वेदांता रिसोर्सेज में 64,000 से अधिक कर्मचारी और कॉन्ट्रैक्टर्स काम कर रहे हैं.

दौलत से बड़ा दिल: 75% संपत्ति दान करने का संकल्प

अनिल अग्रवाल सिर्फ एक बिजनेसमैन नहीं, बल्कि समाज सेवा के लिए भी जाने जाते हैं. उन्होंने गिविंग प्लेज पर हस्ताक्षर कर यह वादा किया कि वह अपनी संपत्ति का 75% हिस्सा दान कर देंगे. वे शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ा योगदान देने की दिशा में भी काम कर रहे हैं.

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बिहार को गर्व, दुनिया को सबक

अनिल अग्रवाल की कहानी बिहार के हर युवा के लिए एक प्रेरणा है. उन्होंने यह साबित कर दिया कि सपने पूरे करने के लिए डिग्री नहीं, बल्कि जुनून और मेहनत की जरूरत होती है. उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा संदेश यही है- “अगर ठान लिया तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं. असफलता सिर्फ एक पड़ाव है, आखिरी मुकाम नहीं.”

Abhinandan Pandey
Abhinandan Pandey
भोपाल से शुरू हुई पत्रकारिता की यात्रा ने बंसल न्यूज (MP/CG) और दैनिक जागरण जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अनुभव लेते हुए अब प्रभात खबर डिजिटल तक का मुकाम तय किया है. वर्तमान में पटना में कार्यरत हूं और बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को करीब से समझने का प्रयास कर रहा हूं. गौतम बुद्ध, चाणक्य और आर्यभट की धरती से होने का गर्व है. देश-विदेश की घटनाओं, बिहार की राजनीति, और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि रखता हूं. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स के साथ प्रयोग करना पसंद है.

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