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शवदाह गृह को मंदिर के रूप में किया जायेगा तैयार, महादेव की मूर्ति भी लगायी जायेगी

बांसघाट क्षेत्र में निर्माणाधीन शवदाह गृह परिसर को अगस्त माह के दूसरे सप्ताह से शुरू करने की तैयारी चल रही है.

संवाददाता, पटना बांसघाट क्षेत्र में निर्माणाधीन शवदाह गृह परिसर को अगस्त माह के दूसरे सप्ताह से शुरू करने की तैयारी चल रही है. इसे लेकर निर्माण कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है. परिसर में निर्माणाधीन तालाब तक गंगाजल पहुंचाने की व्यवस्था पूरी कर ली गयी है. वहीं, परिसर के मुख्य द्वार को मंदिर के स्वरूप में विकसित करने का नगर आयुक्त व बिडको के एमडी अनिमेष कुमार पराशर ने निर्देश दिया है. इसके अलावा, परिसर में प्रवेश करते ही श्रद्धालु भोलेनाथ के दर्शन कर सकें, इसके लिए शिव की मूर्ति स्थापित की जायेगी. गौरतलब है कि यह राज्य का पहला अत्याधुनिक शवदाह गृह होगा, जो अंतिम संस्कार की प्रक्रिया और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अनुकूल होगा. करीब 4.5 एकड़ भूमि में 89.40 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा यह शवदाह गृह पुराने शवदाह गृह से तीन गुना बड़ा होगा. 1795 मीटर की दूरी में बिछायी गयीं दो पाइपलाइन परिसर में चार विद्युत शवदाह यूनिट, छह लकड़ी आधारित शवदाह स्थल और आठ पारंपरिक शवदाह स्थल होंगे. दो तालाब भी बनाये जा रहे हैं, जिनका उपयोग अस्थि विसर्जन और स्नान के लिए किया जायेगा. स्नान के लिए तालाब की लंबाई 45 मीटर और अस्थि विसर्जन वाले तालाब की लंबाई 65 मीटर है. इन तालाबों तक गंगा नदी से पाइपलाइन के माध्यम से जल आपूर्ति की जायेगी. इसके लिए गंगा नदी से बांसघाट तक 1795 मीटर लंबी दो पाइपलाइनें बिछायी जा चुकी हैं. नदी में तैरती हुई मोटर जेट्टी भी स्थापित कर दी गयी है, जिसमें 10-10 एचपी के दो पंप लगाये गये हैं. अब तालाब का निर्माण कार्य पूरा होते ही ट्रायल किया जायेगा. उपयोग के बाद तालाबों के जल को दीघा एसटीपी भेजा जाएगा परिसर में दो प्रतीक्षा कक्ष, दो प्रार्थना भवन और दो पूजा हॉल बनाए जा रहे हैं, जिससे परिजनों को अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में सहूलियत मिल सके. सिविल वर्क लगभग पूरा कर लिया गया है. नये शवदाह गृह में छह ब्लॉक शौचालय, एक प्रशासनिक कार्यालय और दो चेंजिंग रूम भी बनाए जा रहे हैं. इसके अतिरिक्त कैंटीन, मंदिर और स्टाफ क्वार्टर का भी निर्माण किया जा रहा है. परिसर में स्थापित सब-स्टेशन के जरिए विद्युत आपूर्ति लगातार बनी रहेगी. तालाबों के उपयोग के बाद उनका जल दीघा सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भेजा जाएगा. यहां से उपचारित जल को ही दोबारा गंगा नदी में छोड़ा जाएगा, ताकि पर्यावरण को नुकसान न हो.

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