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बिहार की विरासत को मिलेगी नई उड़ान, इन 59 प्रोडक्ट्स को मिल सकता है GI टैग

Bihar News: बिहार की पारंपरिक विरासत को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा रहा है. अब तक पांच खास उत्पादों को मिल चुके GI टैग के बाद, बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी ने 59 और स्थानीय उत्पादों को GI टैग दिलाने की तैयारी शुरू कर दी है. जिससे राज्य की सांस्कृतिक पहचान को नया आयाम और किसानों को आर्थिक लाभ मिलने की उम्मीद है.

Bihar News: बिहार की पहचान अब सिर्फ लिट्टी चोखा तक ही सिमित नहीं है. यहां की धरती से कई ऐसे खास प्रोडक्ट्स निकलते हैं, जो न सिर्फ स्वाद में लाजवाब हैं, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक और पारंपरिक पहचान भी हैं. अब इन प्रोडक्ट्स को दुनिया के सामने लाने की तैयारी जोरों पर है. बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (बीएयू) की टीम इन खास प्रोडक्ट्स को जीआई (Geographical Indication) टैग दिलाने के लिए तेजी से काम कर रही है.

अब तक पांच प्रोडक्ट्स को मिल चुका है GI टैग

बिहार के 5 खास प्रोडक्ट्स जर्दालू आम, मुजफ्फरपुर की शाही लीची, कतरनी चावल, मिथिला मखाना और मगही पान को GI टैग मिल चुका है. इससे इनकी मांग बढ़ी है और किसानों को सीधा फायदा हुआ है. मखाना जैसे प्रोडक्ट की कीमतों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है और अब यह देश ही नहीं, विदेशों में भी भेजा जा रहा है.

59 और प्रोडक्ट्स की पहचान पर काम शुरू

बीएयू अब ऐसे 59 और पारंपरिक प्रोडक्ट्स की पहचान कर उन्हें GI टैग दिलाने में लगा है. बीएयू के कुलपति डॉ. दुनियाराम सिंह का मानना है कि बिहार की विरासत को नई पहचान मिलनी चाहिए. इसी सोच के साथ इस पहल की शुरूआत की गई है ताकि राज्य के कुछ पारंपरिक प्रोडक्ट्स समय के साथ गुम हो गए हैं, उन्हें दोबारा जीवित कर के अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाया जा सके.

GI टैग के लिए कैसे होती है तैयारी

बिहार एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी में नाबार्ड की मदद से GI फैसिलिटी सेंटर खोला गया है. डॉ. ए.के. सिंह की अगुआई में वैज्ञानिकों की एक टीम काम कर रही है. सबसे पहले उन उत्पादों को सेलेक्ट किया जाता है जो किसी खास क्षेत्र या जिले से जुड़े होते हैं. फिर खासियत, डाक्यूमेंट्स और जरूरी जानकारी इकट्ठा कर GI रजिस्ट्रेशन के लिए फाइल तैयार होती है. अगर कोई आपत्ति नहीं आती, तो उस प्रोडक्ट को GI टैग मिल जाता है.

कई प्रोडक्ट्स फाइलिंग के अंतिम स्टेज में

डॉ. ए.के. सिंह ने बताया कि दर्जनभर प्रोडक्ट्स के लिए GI टैग की फाइलें GI कार्यालय में भेज दी गई हैं. वहीं एक दर्जन और प्रोडक्ट्स, प्रोसेस के आखिरी चरण में हैं. इसके बाद तीसरे फेज में 30 और प्रोडक्ट्स को GI टैग दिलाने कि तैयारी की जाएगी.

‘विरासत से व्यापार’ की राह पर बिहार

GI टैग मिलने के बाद इन उत्पादों की कीमत और मांग में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. अब एक हजार से ज्यादा यूजर्स (उद्यमी) इन प्रोडक्ट्स को देश और विदेश के बाजारों में बेच रहे हैं. भागलपुर का जर्दालू आम, कतरनी चावल और मखाना जैसे उत्पाद छोटे आकर्षक पैकेट्स में विदेशों में भेजे जा रहे हैं और लोगों को अच्छी कमाई भी हो रही है.

(इंटर्न श्रीति सागर की रिपोर्ट)

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Abhinandan Pandey
Abhinandan Pandey
भोपाल से शुरू हुई पत्रकारिता की यात्रा ने बंसल न्यूज (MP/CG) और दैनिक जागरण जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अनुभव लेते हुए अब प्रभात खबर डिजिटल तक का मुकाम तय किया है. वर्तमान में पटना में कार्यरत हूं और बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को करीब से समझने का प्रयास कर रहा हूं. गौतम बुद्ध, चाणक्य और आर्यभट की धरती से होने का गर्व है. देश-विदेश की घटनाओं, बिहार की राजनीति, और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि रखता हूं. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स के साथ प्रयोग करना पसंद है.

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